Friday, November 16, 2007

तारीख़ के गलियारों की सैर

दिल्‍ली की उत्‍तरी रिज़ या तो अपनी कॅटीली झाडि़यों, सघन वनस्‍पति (अत: प्रेमी युगलों की शरणस्थली) के लिए जाना जाता है तथा किसी भी महानगर की तरह हम अपने शहर के खंडहरों को भुला बैठते हैं। इस सप्‍ताह हमें एक मोका मिला इसी रिज के रास्‍ते छानने का, ताकि उसमें छिपी उन इमारतों तक जा सकें जिनका संबंध महत्‍वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं विशेषकर 1857 के विद्रोह से रहा है। दरअसल 1857 के 150 साला समारोह के ही अंतग्रत विश्‍वविद्यालय ने अपने विद्यार्थियों के लिए कुछ कार्यक्रमों का आयोजन किया है जिनमें से एक है- तारीख़ के गलियारों की सैर: उत्‍तरी रिज़ के स्‍मारक और 1857

taareqh

कार्यक्रम की शुरुआत सुबह नौ बजे से हुई, पहले अल्‍काजी न्‍यास की 1857 के चित्रों की अति दुर्लभ प्रदर्शनी से हुई, जो एक पूरी पोस्‍ट की मॉंग करती है, उसे अभी  छोड़ा जा रहा है । इसी प्रकार वाइस रीगल लॉज के बॉलरूम व संग्रहालय भी जाना हुआ पर वह तो कई पोस्‍टों की मॉंग में प्रतीक्षा करेगा।

इस रिज व हिंदूराव क्षेत्र में कम स कम 5-6 अहम स्‍मारक हैं। 1857 में जब मेरठ से विद्रोही दिल्‍ली पहुँचे और दिल्‍ली शहर पर कब्‍जा हुआ तो वे शहर, किले आदि में काबिज हुए। उनका संपर्क शेष विद्रोहियों से बरास्‍ता दिल्‍ली गेट रहा। पर कश्‍मीरी गेट वाले इलाके से भागकर अंग्रेज दिल्‍ली रिज के इलाके में जा छिपे तथा वहीं से उनकी लड़ाई विद्रोहियो से जारी रही- सबसे पहले वे उस जगह पहुँचे जो आजकल बाउंटा के नाम से जानी जाती है यानि फ्लैग स्‍टफ टॉवर

 flagstaff tower

लगभग 200 अंग्रेज इस बेहद छोटी सी इमारत में आकर जम गए और तोपों से हमला करने और बचाव में जुटे

 chauburja

दूसरी ओर बिद्रोही इस चौबुर्जा मस्‍िजद में जमे थे और लड़ रहे थे। बाद में अंग्रेजों को अंबाला व करनाल से मदद मिलनी भी शुरू हुई

hindurao 1857

पर दिल्‍ली पर फिर से कब्‍जा करने के उपक्रम में अंग्रेजों का असली जमावड़ा  इस इमारत यानि कोठी हिदूराव (आज का हिंदूराव अस्‍पताल) रहा।

 peer gayab

पीर गायब है तो तुगलक कालीन इमारत पर लड़ाई में इसकी आड़ में होकर भयंकर लड़ाई लड़ी गई।

 mutiny memorial

और जब विद्रोह को पूरी तरह कुचल दिया गया तो अंगेजों ने अपनी जीत के स्‍मारक के रूप में बनवाया म्‍यूटिनी मेमोरियल जिसके शिलालेख 'शत्रु' तो छोडि़ए अपनी ओर से सेना में लड़े व मरे भारतीय सैनिकों तक को उपेक्षा से नेटिव की कैटेगरी में डालते हैं तथा कोई नामोल्‍लेख नहीं करते।

विशेष आभार - डा. संजय शर्मा जो इस कार्यक्रम के समन्‍वयक हैं

6 comments:

Arun Arora said...

तो आजकल आप इतिहास की धूल झाड पौछ रहे है..अच्छा है पर खुद कही खो ना जाना इन गलियारो मे...:)

सुजाता said...

bahut badhiyaa jaankaari. dhanyavad! jo sabse paas thaa use hee nahi jana .shahri jeevan ki yahi niyati hai.ajnabiyat.apne shahar se bhi khud se bhi.

Pratyaksha said...

अच्छी जानकारी !

Tarun said...

हमने तो बुद्धा गार्डन का सुना था आंखमचोली खेलने के लिये। लेकिन आपने इतिहास की अच्ची जानकारी दी है।

Shastri JC Philip said...

इस लेख के लिये आभार. आजकल इतिहास में मेरी काफी रुचि है अत: मुझे यह लेख काफी उपयोगी प्रतीत हुआ -- शास्त्री

मेरा नया एतिहासिक चिट्ठा:
GwaliorFort.Blogspot.Com

अनूप शुक्ल said...

अच्छी जानकारी है।