क्योंकि मसिजीवी के दिमाग में ही कोई लोचा है। बात आर्काइव में दब जाए इससे पहले ही कह देना ठीक है। हम इसलिए परेशान नहीं हैं कि पंकजजी ने हमारी टिप्पणी अपने ब्लॉग से मिटा दी (स्क्रीनशाट देखें)
वो तो उनका ब्लॉग है और उन्हें हक कि वे हमारी बकबक वहॉं रहने दें या नहीं, यूँ भी हमने ही उन्हें लिख दिया था कि अगर उन्हें पसंद नहीं तो वे हमें वहॉं से मिटा दें। उन्होंने मिटा दिया। पर हर कोई जो हमें पसंद नहीं हम उसे मिटाते चलेंगे...कितने धुरविरोधी मारे जाएंगे। ज्ञानदत्तजी ने वहॉं लिखा है कि वे कुछ कुछ समझ रहे हैं पर अन्य लोग जो नहीं समझ पाए हों उनके लिए पूरी कहानी इस तरह है-
बाजार नाम के कोई बेनाम ब्लागर (भले ही शैली से खूब पता लगता हो कौन, पर सिद्धांतत: ये गलत है कि बेनाम को जबरन सनाम किया जाए) हैं बिना लाग लपेट के जो कहा जाए वही सच है नाम का बलॉग चलाते हैं। ये ब्लॉग हमें विशेष पसंद नहीं रहा है, पर पसंद तो हमें बैंगन भी नहीं उससे क्या, तो हम उस ओर नहीं जाते थे, लेकिन उसके बने रहने के अधिकार की प्राणपण से पैरवी करते हैं। वहॉं एक पोस्ट आई
इस पोस्ट में हमें याद पड़ता है कि लिंक के साथ ही संजयजी के चिट्ठे से पंकजजी की निम्न टिप्पणी दी गई थी
संजय जी एक और संशय दूर करिये। आपको तो पता है कि कुछ ही दिन मे साल के पहले विवादास्पद इनाम दिये जाने है, रायपुर मे। कुछ लोग मुझसे सम्पर्क कर रहे है कि रवि जी कैसे ब्लागिंग करे इसकी क्लास लेंगे। मैने तो इंकार कर दिया है और कहा है कि यदि मिलना हो तो मै आ जाऊंगा पर इस तरह की कार्यशाला प्रायोजित होती है और व्याख्यान देने वालो को खूब पैसे मिलते है। - ऐसा मैने सुना है। क्या आप इस पर कुछ प्रकाश डाल सकते है? यह भी बताये कि क्यो गूगल ने एक आदमी को हिन्दी ब्लागिंग का मसीहा बनाके रखा है। सब जगह एक ही व्यक्ति की पूजा। यह तो इस जगत की सेहत के लिये अच्छा नही जान पडता है। खालिस गुटबाजी को बढावा देता है। क्या रवि जी के आस-पास डोलने ही को पुरुस्कार मिलेंगे या आप सफल ब्लागर कहलायेंगे। लानत है ऐसी मानसिकता पर।
यहॉं तक तो सब ठीक है, ब्लॉगिंग है ही ये, कुछ छिछली कुछ गंभीर। पर अचानक पंकज अवधिया की बमकी पोस्ट आती है- उन्होंने गूगल में एब्यूज नोटिस भेजा और अदालती कार्रवाई शुरू की- जीतूजी ने झट बधाई दे डाली
बहुत अच्छा कदम। आपका यह कदम मील का पत्थर साबित होगा।
हमे अपनी बौद्दिक सम्पदा के प्रति सजग होना ही पड़ेगा। अपने लेखों की चोरी को रोकने के प्रति सजग रहे।
मेरे जीतू भाई से लाख मतभेद हों पर इतना समझ सकता हूँ कि उन्होंने ये टिप्पणी ये समझकर की है पंकजजी के किसी लेख को किसी ने अपने नाम से प्रकाशित कर लिया है, वरना वे इस बात पर तो प्रसन्न हो नहीं सकते कि किसी ने नाम देकर, लिंक देकर, संजयजी के चिट्ठे से कोई टिप्पणी विचारार्थ प्रस्तुत की इस पर पंकज चले मुकदमा करने। हमारे लिए अफसोस यह कि शायद कानूनी पचड़े से डरकर बाजार साहब ने ब्लॉग डिलीट कर दिया या हटा लिया। ये एक ओर धुरविरोधी का जाना हुआ। हमने अपनी टिप्पणी में पंकजजी से अनुरोध किया था कि मित्र अगर कोई किसी सामग्री का केवल अंश पूरे लिंक व क्रेडिट के साथ संदर्भ प्रस्तुत करने के लिए समीक्षा, चर्चा, समाचार के लिए प्रस्तुत करता हे तो इसे प्लेगिरिजम न मानें...तिसपर टिप्पणी उनके नहीं संजय के चिट्ठे पर है जिन्होंने आपत्ति दर्ज नहीं की है। टिप्पणी पर कापीराइट किसका है ये मसला खुद अभी अनिर्णीत है।
इसके अलावा पंकजजी की दिक्कत है कि 'परेशान हैं पंकज अवधिया' शीर्षक गैरकानूनी है क्योंकि उनके नाम का इस्तेमान बिना अनुमति के किया गया...उई दइया... लोग नाम लेकर गंदा नेपकिन कह गए, आज ही कांइया और फरेबी कहा नाम लेकर किसी ने किसी को। यहॉं जो लिख रहा है 'संशय में हूँ' उसे 'परेशान' लिखने के लिए अनुमति। पत्रकार तो बेरोजगार हो जाएंगे- अमिताभ लिखने के लिए बच्चन से और सोनिया लिखने के लिए गांधी से पूछना पड़ेगा। चिट्ठाचर्चा, भड़ास, मोहल्ला, टिप्पणीकार और हममें से अधिकांश लोगों के चिट्ठे इस तर्क से बंद करने होंगे।
मेरा पुन: अनुरोध पंकज भाई आप चिट्ठाकारी में विविधता लाने का अहम काम कर रहें हैं कृपया थोड़ा इस माध्यम की प्रकृति भी समझिए। इतनी असहनशीलता हम आप जैसे अकादमिक लोगों को शोभा नहीं देती। और हॉं, हो सके तो वकील भी बदलिए अपना :))।
एक अनुरोध उन सज्जन/मोहतरमा से भी जो बिना लाग लपेट के सच वाला ब्लॉग चलाते हैं। आप पाठकों के प्रति और संवेदनशील होने का प्रयास करें। पर अन्यथा भी आप अपना ब्लॉग डिलीट न करें। इसे संघर्ष मानें। पंकजजी के नाराज होने वाले दोनों कुकृत्य मैंने भी इस पोस्ट में किए हैं- शीर्षक में उनका नाम है (और दिल में उनके लिए सम्मान) और लिंक व नाम के साथ वही टिप्पणी फिर से दी है। फिर भी मुझे उम्मीद हैं पंकजजी मुझसे नाराज नहीं होंगे। आप भी भय छोड़ें और ब्लॉग फिर से जारी रखें। अगर ये ब्लॉग डिलीट गूगल ने किया है तो बताएं इस लड़ाई को वहॉं ले जाएंगे।
12 comments:
१) हम अपना नाम नही देना चाहते,आप चाहे तो टिप्पणी मिटा दे
२)आपको डा.शीना याद है ?
नही पता तो चिट्ठाजगत के विपुल जी से पता करले
३)बकया ये काम उन्ही की सलाह पर है अत: जीतू तो हे हे करगे ही/चंडूखाना याद है ना.
पंकज जी पहले ही परेशान कम थे जो आप भी आ गये। ये अच्छी बात नै है।
बहुत ही संतुलित लेखन!!
काबिले तारीफ है आपका धैर्य!!
ये कमेन्ट उनके ब्लॉग पर डाला हैं श्याद सोमवार तक वो इसे उप कर दे और गूगल abuse मे लिंक भी दे दिये है अच्छा रास्ता खुला हैं
"
आप का प्रयास मील का पत्थर साबित हो इसी कामना के साथ आप को आपके ही लिंक दे रहें है । पब्लिक लिटिगेशन के तहत इन पर भी कार्यवाही हो तो बहुत आगे जा सकती हैं हिन्दी ब्लोग्गिंग ।
आप की इस पोस्ट मे http://dardhindustani.blogspot.com/2008/01/blog-post_12.html
रवि रतलामी जी पर आक्षेप हैं
आप की इस पोस्ट मे http://dardhindustani.blogspot.com/2007/08/blog-post_05.html
शास्त्री जी पर आक्षेप हैं और आपने भी उनकी लिखी लाइन को "हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्रमे पिरो सकती है " को सीधा कोपी किया है यानी आपने जितेंदर जी के शब्दों मे शास्त्री जी की " बौद्दिक संपदा " की चोरी की हैं ।
आप की इस पोस्ट http://dardhindustani.blogspot.com/2007/10/blog-post_8517.html
मे समीर जी के ब्लॉग उड़न तश्तरी का सीधा उलेख हैं ।
आप के अलावा भी हिन्दी चिट्ठाजगत मे बहुत सी साईट केवल इसलिये चल रही हैं की वह किसी और की लिखी हुई पोस्ट को अपने ब्लॉग पर दाल ते है कही चर्चा के बहाने , कही अवलोकन के बहाने , कही तिप्पिनी के बहाने
कही कही सीधा कविता मधुशाला को पुरा दुबारा लिखा गया है । अभिव्यक्ती की स्वंत्रता का नाम पर सब कुछ हो सकता है । और पब्लिक लिटिगेशन मे आप बहुत से लोगो को ले सकते हैं अपने आप को भी मिला कर । न्याय तभी होगा जब आप उसकी शुरुवात अपने घर से करे ।
अगर ये ब्लॉग डिलीट गूगल ने किया है तो बताएं इस लड़ाई को वहॉं ले जाएंगे।
गुगुल कए पास बहुत काम और भी हे जब वोह डिलीट करेगे तब देखे गे
आप ने इस ब्लोग को संघर्ष कहा हमने माना
whistle blowing
हे भगवान
पंकज अवधिया क्यों है परेशान?
क्योंकि नहीं मिला सृजन सम्मान
धन्यवाद मसीजीवी। आपके सन्देश के बाद मैने कार्यवाही आगे न बढाने का फैसला कर लिया था। अभी भी उस पर कायम हूँ।
बेनाम जी के लिये
पंकज अवधिया क्यों है परेशान?
क्योंकि नहीं मिला सृजन सम्मान
अरे नही बेनाम
दिमाग पर लगा लगाम
हमने तो किया नही था आवेदन
आगे भी न करेंगे ऐसा निवेदन
:)
पता नहीं पिछले दिनों से ये हो क्या रहा है, बात बात पर विवाद... हम कब परिपक्व होंगे?
मसीजीवी जी, कुछ देर पहले उन कानूनी सलाहकार से मिल कर लौटा हूँ। यह मामला तो खत्म हो गया पर जब मैने उनके द्वारा तैयार बीस पेजो की शिकायत पढी तो मेरे होश उड गये। यहाँ तो आप जैसे लोग है जो बीच-बचाव से मामला निपटा देते है पर यदि दुर्भावनावश केस करे तो मामला पेचीदा हो सकता है। यदि वे अनुमति देंगे तो मै इस रपट को ब्लाग पर डाल दूंगा। फीस तो मैने दे दी है। न तो इस रपट मे शीर्षक पर आपत्ति है न ही ब्लाग के कन्टेंट पर जैसा आपने लिखा है। पर उन्होने गूगल का ही एक नियम पकडकर इसे तैयार किया है। मुझे लगता है नये हिन्दी ब्लागरो को इसके बारे मे बताना जरूरी है। मुझे लगा कि आपके माध्यम से हिन्दी ब्लाग जगत को यह बताना चाहिये। अब मुझे भी इसे पढकर सम्भलकर ब्लागिंग करनी होगी।
अपने ब्लाग पर इस पर चर्चा के लिये आभार।
पंकज जी, किस्सा क्या था पता नहीं, परन्तु आपका मसिजीवी जी की बात को सही मन से लेना अच्छा लगा ।
घुघूती बासूती
हिन्दि मे खोज!
http://www.yanthram.com/hi/
हिन्दि खोज अपका सैटु के लिये!
http://hindiyanthram.blogspot.com/
हिन्दि खोज आपका गुगुल पहेला पेजि के लिये!
http://www.google.com/ig/adde?hl=en&moduleurl=http://hosting.gmodules.com/ig/gadgets/file/112207795736904815567/hindi-yanthram.xml&source=imag
"उई दईया!!"
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