कल से यशवंत तथा कई और भड़ासी हमें गलिया रहे हैं (वे कब नहीं गलियाते, किसे नहीं गलियाते) ये तब है जबकि हम खूब जानते हैं कि कम से कम हमारे और यशवंत के बीच ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ है कि आप हमें गालियों दो हम तुम्हें (हम नहीं कह रहे हैं कि यशवंत व अविनाश के बीच ऐसा कोई समझौता है)। पर ये थोक गालियॉं क्यों आ रही हैं ? जाहिर है कि एक वजह तो आदत है और दूसरी है कल NDTV पर हुई चर्चा। आप में से कुछ ने चर्चा देखी थी बाकी क्रिकेट मैच देख रहे होंगे। हम भी चर्चा में नहीं होते तो मैच ही देख रहे होते। खैर हमें बताया गया था कि चर्चा हिन्दी ब्लॉगिंग पर होगी किंतु हमें ऐसा कोई भ्रम न था हम ताड़ चुके थे इसलिए जाते ही पूछा कि अमिताभ के ब्लॉग का ही मामला है न ...खैर हमें बताया गया कि हॉं वही और ये कि क्या ब्लॉग भड़ास है। अपनी भड़ास मसले पर हमेशा से राय रही है कि भड़ास ब्लॉगिंग का एक स्वाभाविक सोपान है जिसे मटिआया नहीं जा सकता, नहीं जाना चाहिए- ये भी कि भड़ास तत्व की स्वाभाविक एंट्रापी आकार बढ़ने पर पोजीटिव हो जाती है तथा वह अस्थिर हो जाता है। हमले भड़ासत्व को मजबूत बनाते हैं जबकि उसके प्रति सहज होना उसकी जरूरत को खुद ब खुद कम कर देता है। इसी किस्म की राय हमने वहॉं भी रखी थी(इससे कहीं कम मौका मिला इसलिए इससे कम स्प्ाष्ट रूप में कह पाए)।
आप इन वीडियो में इस चर्चा को देख सकते हैं-
ब्रेक के बाद
7 comments:
हमने तो इस प्रोग्राम को शब्द दर शब्द देखा.
मेरी निगाह में तो मामला अमिताभ के ब्लाग को लेकर था. अमिताभ ने ब्लाग क्यों शुरू किया? क्या अमिताभ अपने ब्लाग को शुरू करके अपनी भड़ास निकाल रहे हैं? क्या अमिताभ ब्लाग के जरिये मीडिया से अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं? एसे ही प्रश्न थे. अमिताभ के ब्लाग को भड़ास कहकर NDTV क्या कहना चाहता था, पता नहीं.
विष्णु खरे, आप और अजय ब्रह्मात्मज हिन्दी ब्लाग का प्रतिनिधित्व कर रहे थे लेकिन हिन्दी ब्लागिंग पर चर्चा तो थी ही नहीं. अजय जी ने अमिताभ के नज़रिये को बखूबी बताया और आपने भी सही प्रतिनिधित्व किया. अविनाश के सूत्रधार शब्द भी सही थे. रवीश भी दिखे लेकिन बात कुछ जमीं नहीं. प्रस्तोता की लाइन सिर्फ अमिताभ के ब्लाग को मीडिया पर हमला मानकर तलवारें भांज रहे थे.
मुझे नहीं लगता कि टीवी के ब्लाग प्रोग्रामों से ब्लागिंग का कुछ भला होने वाला है. इससे पहले भी बरखा दत्त ने ब्लागिंग पर एक प्रोग्राम किया था जिससे यही लगता था कि ब्लागिंग में सिर्फ गे, विकृत सेक्स वाले व्यक्ति ही बचे होते हैं. दरअसल ब्लाग इस इलेक्ट्रोनिक मीडिया से होड़ लेने वाला है और अपने प्रतिद्वन्दी को घी कौन पिलाना चाहेगा.
एक बात और, टीवी पर आप एकदम चिकने चुपड़े राजा बबुआ नजर आ रहे थे.
दोनो ही विडियो के अंत में एक बात मिसिंग रही- दिस पार्ट ऑफ प्रोग्राम इज स्पोन्सर्ड बाई भड़ास.कॉम डिंग डाँग...अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
पता नहीं क्यूँ-क्या आवश्यक्ता आई है भड़ास को निशाना बना कर ही अपनी बात कहने की. उनकी अपनी सोच है-और अब यह सब देख लगता है कि सफल सोच है. भड़ास के आसपास घूमता यह कार्यक्रम भड़ास की सफलता की गवाही देने के सिवा कुछ नहीं कर पाया-यही मेरा मानना है.
दोनों अनजान बँधुओं से अपनी सहमती जताता हूँ..आप जो कहना चाहते थे नहीं कह पाये मॉडरेटर के हस्तक्षेप के चलते, यह महसूस कर सकता हूँ. महसूस तो क्या, जान सकता हूँ.
एक अलग से पोस्ट लिखिये कि अगर इस प्रोग्राम में आपको अकेला छोड़ दिया जाता तो आप क्या कहते.
इन्तजार रहेगा.
चलिए किसी बहने ही सही हिन्दी ब्लोग्गिंग चर्चा का विषय बनी है विष्णु खरे जी की बात का समर्थन करूँगा की ब्लोग्गिंग का दायरा विस्तृत होना चाहिए, समय लगेगा पर यह होगा जरूर.... मसिजीवी जी आप बहुत जचे हैं धन्येवाद इस video को यहाँ दिखाने का, आजकल टीवी कहीं पीछे छूट गया है, जैसा की अनाम साब ने कहा की ब्लोग्गिंग टीवी की पर्तिस्पर्धा में खड़ी है, सही लगती है, वैसे भडास से क्यों हमे इतनी आपत्ति है समझ नही पाता हूँ....:)
सजीव सारथी
हिंद युग्म
समीरलालजी की बात पर गौर फरमायें.
अमीताभजी के ब्लॉग के बारे में आपने सही कहा.
लगता है, अमिताभ व भड़ास पर भड़ास निकालने के लिए ही विशेष कार्यक्रम बनवाया गया था.
क्या ब्लॉग पर केवल भड़ास ही निकाली जा रही है? कमाल लगता है, टीवी वालो की सोच और जानकारी पर.
कुछ देर के लिए हमने देखा था इस प्रोग्राम को।
दर-असल कार्यक्रम बेस्ड था ही नही हिंदी ब्लॉग्स पर ,यह तो बेस्ड था अमिताभ के ब्लॉग और इस सवाल पर कि क्या ब्लॉग्स भड़ास ही हैं।
पहले बेनामी से तो हम सहमत है कि आप एकदम नहाए धोए दिख रहे थे टीवी पे ;)
सौ बात की एक बात जो अज्ञात भाई कह रहे हैं- "दरअसल ब्लाग इस इलेक्ट्रोनिक मीडिया से होड़ लेने वाला है और अपने प्रतिद्वन्दी को घी कौन पिलाना चाहेगा."
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