Thursday, January 08, 2009

तर्कविरोध के बरक्‍स विचार की बस

हाल में अनुजा की पोस्‍ट की पोस्‍ट पढ़ी थी फिर आज लंदन में चल रहे अनीश्‍वरवादियों के अभियान का भी परिचय मिला। मिलीटेंट नास्तिक नहीं हूँ पर सहानुभूति अनीश्‍वरवादियों के ही साथ रही है जिसकी वजह तार्किकता पर उनकी आस्‍था तथा व्‍यवहार का अधिक लोकतांत्रिक होना रहा है। अनीश्‍वरवादी ईश्‍वर को नहीं मानते इसलिए 'उनका ईश्‍वर' किसी दूसरे के ईश्‍वर से श्रेष्‍ठ नहीं होता, पाप पुण्‍य का हिसाब नहीं रखा जाता जो डरा धमकाकर दलित, स्‍त्री या अन्‍य वंचितों का मातहतीकरण हो सके। ये अलग बात है कि मिलीटेंट किस्‍म के निरीश्‍वरवाद में कभी कभी आस्‍थावादियों के लिए उपहास देखने को मिलता है जो हमें नही रुचता (लेकिन पूरी तरह दावा नहीं कर सकते कि हम इससे मुक्‍त हैं वरना पड़ोस के मंदिर से फिल्‍मी धुनों के आधार पर बने भक्ति गीतों की कर्कशता इतना न चिढ़ाती) कुल मिलाकर हमारा पंथ रहा है कि प्रत्‍येक को अपनी आस्‍था का, जिसमें आस्‍थाहीन भी शामिल हैं, का अधिकार है। हालॉंकि मानवता का इतिहास बताता है कि धर्मों ने क्रूरता को बढ़ावा ही दिया है और अनीश्‍वरवाद ने तार्किकता को।

इस सब के बावजूद अनीश्‍वरवादी सदैव अल्‍पमत में ही रहे हैं इसलिए वे कभी एकजुट हो कोई संप्रदाय नहीं बन सके हैं। ऐसे में लंदन की बसों पर ईश्‍वर में विश्‍वास न होने के आनंद का प्रचार बेहद सुखद महसूस होता है। काश ऐसा कभी अपने शहर में भी हो। यूँ चार्वाक तथा बौद्ध दर्शन मूलत: ईश्‍वर के न होने में ही विश्‍वास करते हैं लेकिन वे आधुनिक समय में इसका ऐसा उत्‍सवीकरण नहीं कर पाते।

 atheistbus460

यहॉं इस अभियान के बीज शब्‍द प्रोबेबली (शायद) पर जोर देखें। ईश्‍वरवादियों की तरह त्रिशूल और ऐके सैंतालीस के दम पर 'हम ही ठीक हैं' के स्‍थान पर संदेह की गुंजाइश ही इसे इतना आनंददायी सोच बनाती है। ये बात भी कि यदि ईश्‍वर नहीं है तो वर्तमान जीवन अनूठा तथा खूबसूरत है क्‍योंकि ये अब फिर नहीं आएगा। इसके बरक्‍स लंदन की बस पर ही  ईश्‍वरवादियों के निम्‍न संदेश को देखें-

londonbus

आतंकवाद से डरे लोगों को पहले विस्‍फोट की तस्‍वीर से डराया फिर संदेश: ईसा ने कहा कि जो मुझमें विश्‍वास रखता है उसका उद्धार होगा- सवाल है जो ईसा में विश्‍वास नहीं रखता उसका   क्‍या होगा, मतलब मेरा। जवाब है कि नर्क में आग की झील है जिसमें जलना पड़ेगा (मानो ईश्‍वर झील का लाइफ गार्ड हो, और अगर वो इतना ही अच्‍छा है तो कमबख्‍त आग की झील जैसी बुरी तकलीफ देनेवाली चीज बनाई ही क्‍यों...उफ्फ देखा मैं उपहास करने लगा)  इस अभियान का आधिकारिक अंतर्जालस्‍थल ये है तथा एक वीडियो जिसमें वे अपने अभियान के पक्ष को स्‍पष्‍ट कर रहे हैं आप नीचे देख सकते हैं।

 

 

 

11 comments:

roushan said...

शायद का प्रयोग ही बहुत कुछ कह देता है अनीश्वरवादियों के बारे में और उनके डर के बारे में

डा. अमर कुमार said...


ईश्वर और अनीश्वर दोनों ही मानवजनित सुविधाजनक व्याख्यायें हैं..
क्या ईश्वर क्रुसेड.. ज़ेहाद या धर्मयुद्ध के बल पर ही जीवित है ?

बड़ा घालमेल है, भाई !

मसिजीवी said...

@ रौशन
'डर' :)

'हॉं शायद'
या फिर हो सकता है कि जैसा कि वीडियो में कहा गया ये ईश्‍वरवादियों को ठेस न पहुँचाने के लिए किया गया हो।

'या शायद'
इसलिए कि तर्क बिना संदेह के जमीन ही नहीं पाता जबकि असंदिग्‍ध विश्‍वास केवल अंधविश्‍वास को ही जगह देता है बाकी सब लील लेता है

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

agree. masijeevee you are right.

संजय बेंगाणी said...

इतिहास बताता है कि धर्मों ने क्रूरता को बढ़ावा ही दिया है और अनीश्‍वरवाद ने तार्किकता को। यही हमारा भी मंत्र है.

Anonymous said...

वैसे तो किसी शायर ने कहा है :
जुल्म नामे खुदा पर वो देखा
डूब मरता अगर खुदा होता

लेकिन वाल्टेयर के शब्दों में :
भगवान का विश्वास सामाजिक व्यवस्था की रक्षा के लिए आवश्यक है.यदि भगवान नहीं है तो हमें एक भगवान गढ़ लेना चाहिए.

Anonymous said...

ईश्वरवादियों को अपनी आस्था बचाने के लिये इतने सारे जतन करने पड़ते हैं कि इससे तो अनीश्वरवादी होना ही अच्छा है.

Gyan Dutt Pandey said...

अनीश्वरवाद क्या है? व्यक्ति है - वह क्या है?

Abhishek Ojha said...

"अगर वो इतना ही अच्‍छा है तो कमबख्‍त आग की झील जैसी बुरी तकलीफ देनेवाली चीज बनाई ही क्‍यों." ये उपहास नहीं सोचने वाली बात है... !

Unknown said...

मानो तो देव न मानो तो पत्थर | हमारे जिंदगी में बहुत सारी ऐसे बातें होती है जिन्हें हम तर्क की कसौटी पर नही कस सकते हैं | तार्किकता सिर्फ़ अनीश्वरवादी में नही है , ईश्वरवादी भी तार्किकता का सहारा लेते हैं | पाण्डेय जी ने बहुत सही सवाल पुछा है ........अनीश्वरवाद क्या है? व्यक्ति है - वह क्या है?

राज भाटिय़ा said...

लेकिन पूरी तरह दावा नहीं कर सकते कि हम इससे मुक्‍त हैं वरना पड़ोस के मंदिर से फिल्‍मी धुनों के आधार पर बने भक्ति गीतों की कर्कशता इतना न चिढ़ाती,
आप ने यह बात बिलकुल सही कही, ओर मै मंदिर कभी जाता भी नही , ओर कभी पुजा पाठ भी नही करता, लेकिन भगवान को मानता हुं, उसके बने लोगो को प्यार दे कर उन की मदद कर के, बस यही है मेरी पुजा
धन्यवाद