यदि आपको भी चड्डी-चड्डी पढते ब्लॉगिया थकान होने लगी है तो मुझे अपना साथी समझें, और अथक किस्म के प्राणी फिर से समझ लें कि इस पोस्ट में भले ही चड्डी प्रकरण का इस्तेमाल किया गया हो लेकिन ये इस मुद्दे का इस्तेमाल भर है। चड्डी मसला ऐसा एकमात्र मसला नहीं है, आरंभ, उत्साह, विवाद तथा थकान, हर ब्लॉग मुद्दा इन चरणों से गुजरता है। कोई नहीं जीतता... हार भी भला कोई क्योंकर मानेगा। लेकिन इस वाद विवाद में जो भी इस्तेमाल होता है उसे हर पक्ष 'तर्क' का नाम देता है, मानों तर्क कोई रमी का जोकर है कि जो भी वाक्य कहा जाए उसे तर्क करार दिया जाए। किस बात को तर्क माना जाए किसे तर्क न माना जाए इस बात का भी एक तर्क होता है।
मसलन चड्डी प्रकरण के सबसे ज्यादा यूज्ड (या अब्यूज्ड) तर्क को लें। सुरेशजी ने कहा...
क्या रत्ना जी को यह मालूम है कि गोवा में स्कारलेट नाम की एक लड़की के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या की गई थी और उसमें गोवा के एक मंत्री का बेटा भी शामिल है, और वे वहाँ कितनी बार गई हैं?
क्या निशा जी को केरल की वामपंथी सरकार द्वारा भरसक दबाये जाने के बावजूद उजागर हो चुके “सिस्टर अभया बलात्कार-हत्याकांड” के बारे में कुछ पता है?
इंटरव्यू लेने वाले पत्रकार को दिल्ली की ही एक एमबीए लड़की के बलात्कार के केस की कितनी जानकारी है?
न न थके ब्लॉगर डरें नहीं मैं तो केवल उद्धरण की संरचना पर बात कर हा हूँ... ये कथन संरचना सैकड़ो, शायद हजारों बार इस्तेमाल होती है.. तुम अमुक के बारे में बात करते हो..अमुक अमुक अमुक के बारे में नहीं करते इसलिए बात गलत है। अजीब कथन है... यह किसी भी कुतर्क की मूल संरचना है। विद्यमान कार्य कारण की उपेक्षा कर असंबंधित के संवेग, भावना या रिटोरिक को तर्क की तरह पेश करना। अमित ने जब उपरोक्त सवालों के जबाब दिए तो इसी संरचना का इस्तेमाल किया (कुतर्क का उत्तर तर्क से नहीं दिया जा सकता... कुतर्क तर्क को नहीं कुतर्क को ही सुनता है) अमित ने कहा-
चलिए कुछ जवाब आप भी दे दीजिये .......
१) जब गोवा में स्कारलेट नाम की एक लड़की के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या की गई थी और उसमें गोवा के एक मंत्री का बेटा भी शामिल है, तब आपने उसके बारे में क्यूँ नही लिखा |
2) केरल की वामपंथी सरकार द्वारा भरसक दबाये जाने के बावजूद उजागर हो चुके “सिस्टर अभया बलात्कार-हत्याकांड” के बारे में आपने क्यूँ नही लिखा ?
3) एक एमबीए लड़की के बलात्कार के केस के बारे में आपने क्यूँ नही लिखा ?
4) जिन उलेमाओं ने सह-शिक्षा को गैर-इस्लामी बताया है के बारे में आपने क्यूँ नही लिखा ?
लॉजिकल फैलेसी की अपनी संरचना है और आवश्यक नहीं कि ये केवल वही लोग इसका इस्तेमाल करें जो तर्क व्यवस्था की सैद्धातिंक समझ से अनभिज्ञ हैं कई बार पेशेवर तर्क प्रयोक्ता भी इस्तेमाल करते हैं ये अलग बात है कि वे ऐसा अनजाने नहीं करते इसलिए बेहद शातिर अंदाज में करते हैं। मसलन शास्त्रीजी की पोस्ट देखें
इसका मतलब है कि सुरेश जैसे देश-प्रेमी पुरुषों का विरोध करना चाहिये लेकिन जो स्त्रीचिट्ठा डंके की चोट पर कह रहा है कि वह चालू या छिछोरी स्त्रियों का चिट्ठा है उसका अनुमोदन होना चाहिये
जब तर्क अपनी वैधता के लिए इस बात पर आश्रित हो कि 'तर्क' देने वाला कौन है, तब तर्क प्रथम दृष्टया अवैध होता है, या कम से कम इस आधार पर तो वैध नहीं ही होता कि कि देखो तर्क अमुक ने दिया है गलत कैसे हो सकता है। (इस बाइनरी में भी देशभक्त बनाम छिछोरी की शर्त) अब पाठक की दिक्कत ये कि उसे खुद की 'राष्ट्रभक्ति' की स्थापना के लिए 'राष्ट्रभक्त' का ही साथ देना होगा।
भाषा का शिक्षक हूँ और वाद विवाद की संरचना में रूचि है इसलिए तर्क ही नहीं कुतर्क भी मुग्ध करते हैं कि देखो किस पैंतरे से फट्टा फेंका है। इससे ये न समझ लिया जाए कि हमारा अपना कोई पक्ष नहीं है, हमारा साफ मानना है कि मुतालिक और इस किस्म की तमाम सेनाएं देश के अस्तित्व मात्र के लिए भयानक खतरा हैं जिनका हर कदम पर दमभर विरोध होना चाहिए। जिन्हें एक तरीके का विरोध पसंद नहीं वे दूसरे तरीके से कर लें लेकिन अपनी ऊर्जा विरोध का विरोध करने की बजाए इन मुतालिकों के विरोध में लगाएं, तथा वे जो खुद इसी सेनाई मानसिकता से हैं वे भी सामने आकर अपनी बात रखें इस उस चड्डी के बहाने छिपकर वार न करें।
11 comments:
Logical Fallacy पर अच्छी प्रस्तुति. इस विषय में मेरी भी काफी रुचि है एवं काफी लिख चुका हूँ अत: आप का यह आलेख मुझे स्वाभाविकत: यहां खीच लाया.
लिखते रहें !!
सस्नेह -- शास्त्री
"भाषा का शिक्षक हूँ और वाद विवाद की संरचना में रूचि है इसलिए तर्क ही नहीं कुतर्क भी मुग्ध करते हैं कि देखो किस पैंतरे से फट्टा फेंका है।"
यह "अपने मुँह मियाँ मिट्ठू" भी क्या तर्क का ही हिस्सा है? यदि ऐसा आप कहते हैं तो गणित या कम्प्यूटर विज्ञान का विशेषज्ञ अपनी प्रशंशा में क्या कहेगा जिसकी सबसे तेज दिमाग वाले शिक्षार्थियों से पाला पड़ता है और वह भी उसी तरह का विद्यार्थी रहा होगा (जीवन भर कक्षा में पीछे बैठने वाला नहीं)।
यदि आप कुतर्क को अच्छी तरह समझते होते तो यह भी समझते कि समान स्थितियों में दो अलग तरह का व्यवहार अपने-आप में "करनी का कुतर्क" या सरल शब्दों में दोगलापन कहलाता है। सुरेश जी का उपरोक्त उद्धरण आप इसी सन्दर्भ में लें। किसी वक्तव्य या कथन को अलग सन्दर्भ में लेना भी एक प्रमुख तार्किक-त्रुटि (फेलासी) है।
बहुत अच्छी प्रस्तुती |
चड्ढी शब्द पढ़-पढ़ के परेशान हो गया. मुझे नहीं पता था इतना पोपुलर हो गया है नहीं तो कुछ नहीं लिखताइस शब्द से जुडा हुआ. अब तो बुरा फील हो रहा है !
@ अनुनाद- आपका मेरे प्रति प्रेम अब टपक टपक पड़ता है :), आभार, स्नेह बनाए रखें।
हमने तो ये दावा तक नहीं किया कि हम इस संरचना को समझ चुके हैं, केवल रुचि रखना भी आत्मप्रशंसा में गिन लिया गया।
वैसे हम जैसे आत्मदंभी, अयोग्य, (और जो अलंकरण 'शूरा' में तय किए गए हों) जैसे लागों के लिए क्या सजा निश्चित की गई है सेनाई न्याय में- ये तो बता दें, आपके हमारे प्रति उबलते प्रेम व स्नेह के चलता इतना जानना तो हमारा हक बनता ही है :)
आप से सहमत, लगता है लिखने को चड़्डी के सिवा कुछ बचा ही नहीं।
अब तो हमारे स्कूल में इसकी चर्चा होने लगी। न्यूयार्क टाईम्स वाले आर्टिकल के बाद। आपकी पूरी पोस्ट से सहमति है।
सही है जी। हम आपसे भी सहमत हैं और अनुनादजी से भी। अब इस वाक्य की तार्किक परिणति में कृपया न जाएं...
माहौल हल्का हो चुका है....
:)))
पोस्ट के बारे में हम कुछ न कहेंगे। फ़िर कभी आराम से समझ के। लेकिन मास्टर साहब का यह अंदाज वैसे हम जैसे आत्मदंभी, अयोग्य, (और जो अलंकरण 'शूरा' में तय किए गए हों) फ़िक्स टाइप का हो गया है। कोई ज्यादा विरोध कर तड़ से अपने को मूर्ख,जाहिल ... कह डालो। ये हथियार धांसू है। लेकिन मुश्किल है कि कोई झुट्ठै भी नहीं कहता नही,नहीं मसिजीवी जी आप तो विद्वान व्यक्ति हैं।
मास्टर साहब की बात काटने की हिम्मत किसमें है भाई!
कभी इस बात का अध्ययन करने का मन होता है कि कौन ब्लागर अपने खिलाफ़ पेश किये तर्कों के जबाब कैसे देता है।
बकिया वेलेंटाइन दिवस मुबारक! घर में सबको शुभकामनायें!
प्रोफ़ेसर साहब, नज़रे-इनायत और इज़्ज़त-अफ़ज़ाई के लिये शुक्रिया… अब ये एलेसी-फ़ेलेसी तो मैं जानता नहीं क्या होती है (इतना पढ़ा-लिखा नहीं हूँ मैं), लेकिन इतना जरूर जानता हूँ कि मैं दिल से सोचता हूँ, दिमाग से नहीं और वही लिखता भी हूँ। ऐसे में "देशभक्ति" को लेकर जो व्यंग्य आपने शास्त्री जी के चिठ्ठे पर लिखा है उसका भी मैंने कतई बुरा नहीं माना… बहरहाल इतना तो मुझे समझ में आ रहा है कि ब्लॉग हिट करवाने के लिये सामाजिक, देशभक्ति, साम्प्रदायिकता आदि मुद्दों पर लिखने की बजाय चड्डी पर लिखना चाहिये… ताकि हिट्स, टिप्पणियाँ, सब्स्क्राइबर धड़ाधड़ मिलें… हालांकि मैं ऐसा करूँगा नहीं क्योंकि यह "ट्रिक" अंग्रेजी पत्रकारों के लिये गर्व की बात होगी, मेरे लिये नहीं है… स्नेह बनाये रखें… मेरे ब्लॉग पर सबका खुले दिल से स्वागत होता है बगैर मॉडरेशन लगाये… :) :)
चड्डी प्रकरण धर्म व आधुनिकता के नाम पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का स्टंट मात्र होता है. इस विषय पर दार्शनिक अंदाज़ में आपका तर्क सोचने के लिए बाध्य करता है. शैली प्रभावशाली है.लिखते रहिए
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