Thursday, February 19, 2009

ओसामा की खोज गणितीय फार्मूलों से

जब गणित के बारे में कोई बात होती है तो हम एक टीस के साथ उसे पढ़ते हैं गणित के साथ हमारा रिश्‍ता एक ऐसी प्रेमिका का सा हे जिससे विवाह न हो पाया हो। (गणित से विवाह करने वाले जानें कि कि पत्नी के रूप में गणित वाकई पत्‍नी जैसा ही दु:खी करता है या नहीं...)

इस बार हमें यह टीस इसलिए उठी कि कुछ अमरीकी भूगोलविदों ने गणितीय पद्धति से यह खोज की है कि ओसामा बिन लादेन कहॉं छिपा हुआ है। शुद्ध गणितीय फार्मूले और इनसे अफगानिस्‍तान/पाकिस्तान सीमा के शहर पानाचिनार को पहचाना गया जहॉं ओसामा छिपा है उसपर भी शहर के कुल जमा तीन मकान भी पहचान लिए गए हैं जिनमें से किसी एक में वह छिपा है। लीजिए हम आपके लिए ओसामा के ठिकाने की तस्‍वीर दिए देते हैं-

ScreenHunter_02 Feb. 18 22.42 

आप आसपास के इलाके की भी तफरीह करना चाहें तो विकीमैपिया पर इन निर्देशांकों पर जाएं और उन गलियों का दीदार करें जहॉं ओसामा टहलता है।

पूरी तकनीक का विवेचन तो कोई भूगोलविद या गणितज्ञ ही कर पाएगा पर गूगल से जो कुछ हमें समझ आया कि यह तकनीक मूलत: लुप्‍तप्राय जानवरों को खोजने के लिए प्रयोग में लाई जाती है तथा इसका मूल सिद्धांत यह है कि जानवर के देखे जाने के समाचारों से जो पैटर्न बनता है उसका गणितीय रूपांकन किया जा सकता है तथा इसके आधार पर यह गण‍ना करना संभव है कि यह जानवर अब कहॉं मिलेगा। 

काश कोई फार्मूला ये भी गणना कर सके कि और लुप्‍तप्राय चीजें अब कहॉं मिलेंगी मसलन ईमानदारी, मित्रता, निष्‍ठा, सत्‍य....।

6 comments:

Arvind Mishra said...

आपकी चिंता जायज है -पर अफ़सोस यही कि इंगित चीजों के लिए कोई सांख्यिकीय फर्मूला नही है -अब तो जब लादेन ही नही मिल रहा तो विस भी इन तकनीकों की शत प्रतिशत विस्वसनीयता भी संदिग्ध है १

Anonymous said...

शायद अभिषेक ओझा कुछ और प्रकाश डाल सकें

roushan said...

गणित चीज ही ऐसी है कि उससे रिश्ता कम होने के बाद टीस सी बनी रहती है
ओसामा मिल जाय फ़िर इस उपलब्धि को भी बधाई दे लेंगे

Anonymous said...

गणितीय पद्धति का यह फार्मूला सही है तो ज्योतिषीय गणना पर विश्वास करने का भी आधार हो जायेगा.

Abhishek Ojha said...

अधूरे प्रेम का अपना ही मजा है, ये अपना हिन्दी के साथ है ! और शादी वाली बात पर तो शादी के बाद ही कमेन्ट किया जा सकता है :-)

'ईमानदारी, मित्रता, निष्‍ठा, सत्‍य....'
अभी कुछ दिनों पहले ही (वैलेंटाइन के दिन) प्यार पर गेम थियोरी के कुछ आर्टिकल पढ़ रहा था. इन मसलों पर भी कुछ काम तो हुआ ही है... पर उतने ही कारगर हैं जितने ओसामा का पता बताने वाले !

मानविक व्यवहार पर गेम थियोरी और प्रोबैबीलिटी मिलकर थोड़े बहुत मॉडल भी बनाए गए हैं पर ज्यादातर मस्ती के लिए. सीरियस काम होना अभी बाकी है. कोई कर्मचारी किन स्थितियों में काम करेगा या फिर किन स्थितियों में कोई वादे से मुकरेगा इसकी कितनी संभावना होगी जैसे मुद्दों पर काफ़ी अच्छे रिसर्च हुए है और कुछ लोगों ने इसे अन्य मानवीय क्षेत्रों में भी बढ़ाने की कोशिश भी की है.
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जहाँ तक एक साथ दो लोगो के एक ही बात सोचने की सम्भावना है तो किसी ख़ास दिए गए हालात और उन लोगों के पहले की सोच को मिलकर मॉडल तो बनाया ही जा सकता है. गेम थियोरी लगाकर कई बार ऐसे काम किए जाते हैं की अगर ये व्यक्ति ये सोच रहा है तो दूसरा क्या सोच रहा होगा. अगर आपने 'डार्क नाईट' फ़िल्म देखी है .तो उसमें एक दुसरे की नाव को डुबाने के लिए जोकर जो चाल रचता है वो गेम थियोरी का एक सिद्धांत होता है. ... फिर कभी !

अजित वडनेरकर said...

गणित ? भगवान बचाए....
तौबा....