अब घंटों बाद ये कोई खबर नहीं रह गई है कि ब्लॉगवाणी बंद हो गया है। क्रोध, आश्चर्य, पीड़ा और भी कई संज्ञाओं से उस भावना को व्यक्त करने की कोशिश कर सकता हूँ जो इस खबर को जानने के बाद उपजी हैं। ये सभी संज्ञाएं ठीक भी होंगी पर सच बताने को जी चाहता है और वह ये कि सबसे ज्यादा जिस भाव को महसूस किया वह है अपमान। मैथिलीजी व सिरिल से बहुत कुछ सीखा है तथा हम किताबी लोगों में उद्यमी लोगों के प्रति जो अवहेलना का भाव होता हे उससे खुद को जितना कुछ मुक्त कर सका हूँ उसमें इस गुप्तद्वय की विशेष भूमिका है। पर इस प्रकरण में ब्लॉगवाणी की हत्या कर दिए जाने ने मुझे आहत किया है शुद्ध व्यक्तिगत हानि। मैथिलीजी तथा सिरिल से संबंध बेहद अनौपचारिक हैं, इतने कि झट से फोन कर दो-चार हजार का उधार मॉंग लेने तक में कभी शर्मिंदगी महसूस नहीं हुई पर इस प्रकरण में इतना अपमानित महसूस कर रह हूँ कि हिम्मत नहीं हुई कि फोन या ईमेल कर कुछ कह सकूँ। लगता है एक झटके से उन्होंनें कुछ कहने का अधिकार ही हमसे छीन लिया।
एकाध जगह जहॉं हमने टिप्पणी की वहॉं हमने कहा
''ये पूरा प्रकरण ही अत्यंत खेदजनक है। न केवल आरोप-प्रत्यारोप खेदजनक हैं वरन नीजर्क प्रतिक्रिया में ब्लॉगवाणी को बंद किया जाना भी। क्या कहें बेहद ठगा महसूस कर रहे हैं...अगर ब्लॉगवाणी केवल एक तकनीकी जुगाड़ भर था तो ठीक है जिसने उसे गढ़ा उसे हक है कि उसे मिटा दे पर अगर वह उससे कुछ अधिक था तो वह उन सभी शायद लाख से भी अधिक प्रविष्टियों की वजह से था जो इस निरंतर बहते प्रयास की बूंदें थीं तथा इतने सारे लोगों ने उसे रचा था.... हम इस एप्रोच पर अफसोस व्यक्त करते हैं। यदि कुछ लोगों की आपत्ति इतनी ढेर सी मौन संस्तुतियों से अधिक महत्व रखती है तो हम क्या कहें...''
जिन ब्लॉगरों की आपत्तियों के परिणामस्वरूप ये हुआ उनसे मुझे कुछ खास नहीं कहना, इसलिए भी नहीं कहना चाहता कयोंकि मुझे नहीं लगता उन्हें सीधे संबोधित करने का कोई अधिकार मुझे है, मैं ठीक से उन्हें जानता पहचानता भी नहीं। शेष कुछ लोगों को सहज ही नारद प्रकरण तथा धुरविरोधी की हत्या याद होगी। काश धुरविरोधी आस पास होता तो वो देख सकता कि कैसे ब्लॉगवाणी प्रकरण में एक हत्या को आत्महत्या करार दिया जा रहा है। नारद में हमारा पैसा नहीं लगा था पर उसे उन लोगों द्वारा मिल्कियत समझने पर हम खुद को ठगा महसूस कर रहे थे जिनका साझे का ही सही पर पैसा व मेहनत इसमें लगी थी। पैसा अपना ब्लॉगवाणी में भी नहीं लगा था पर इसे भी हम अपना सा ही समझते थे...गलती हमारी ही थी...एक बार में नहीं सीखे तो धोखा तो होना ही था।
बहुत कुछ कहने की इच्छा नहीं पर दर्ज कर देना चाहते हैं कि भले ही विधिक या जिस भी नजरिए से कोई 'अपनी' साइट मिटा देने से आपको रोक नहीं सकता पर फिर से बेव 2.0 की प्रकृति पर विचार करें... इसमें लगे कोड भले ही आपने रचे हों पर ये कोड जिन शब्दों से मिलकर वास्तविक अर्थ गढ़ते हैं वे प्रयोक्ता रचित (यूजर जेनरेटिड) होते हैं अत: इन प्रयोक्ताओं को संभलने का कोई मौका दिए बिना उनके पैरों से कालीन से यह कहकर छीन लेना कि भई ये हमारा कालीन है, हमें न्यायपूर्ण नहीं जान पड़ता।
बस और कुछ कहने को जी नहीं चाहता !!!
20 comments:
जब ब्लागिरी में प्रवेश हुआ तो नारद प्रकरण निपट चुका था। ब्लागवाणी के संबंध में जिस दृष्टि से आपने लिखा है उस दृष्टि से कभी सोचा भी न था। जिन के नीचे से कालीन खिसका है वे तो हतप्रभ ही हैं।
हमने धुरविरोधि से लेकर नारद प्रकरण तक सब मौन साधे देखे हैं-आप जानते हैं.
दुखी तो तब भी उतना ही थे जितना कि आज हल्का फुल्का बोलना सीख लेने के बाद हैं.
आपके कथन और आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ.
बस, पुनः मैथली जी पुनर्विचार की अपील!
दुःख तो सभी को है, लेकिन इस मामले में कल से आज तक विभिन्न ब्लॉग्स पर टिप्पणियों में कई वरिष्ठ ब्लॉगरों की चुप्पी भी खल रही है…। हो सकता है कि "वरिष्ठ" लोग सिर्फ़ पोस्ट ठेलकर रह जायें, लेकिन "विवाद" से बचना और किसी विवाद पर टिप्पणी न करना, अच्छी प्रवृत्ति नहीं कही जा सकती…। इस प्रकरण में सबसे अधिक नुकसान नये ब्लागरों का हुआ है…
नारद, अक्षरग्राम और धुरविरोधी की असमय "मौत" के समय हम ब्लाग जगत में नये-नये ही आये थे, इसलिये उस वक्त अंदाज़ा नहीं था कि इस हिन्दी ब्लॉगिंग के इस "छोटे से पोखर" में भी राजनीति, षडयन्त्र, दबाव, हथकण्डे आदि चलते हैं… अब जान गये हैं…।
असली संवेदना की अभिव्यक्ति कर दी है आपने । सुरेश जी की इस बात से पूर्णतः सहमत हूँ कि इससे नुकसान नये ब्लॉगर्स का हुआ है ।
mai to in prakarano ke bare me ekdam unbhidnya hoon par hatprabh to hoon hee, ki aisa kaheen bhee ho sakta hai.
बहुत आभार ,आपने इस पूरे प्रकरण की संभवतः बहुत महत्वपूर्ण बात रेखांकित कर दी है जो उपेक्षित रह गयी थी ! हाँ निशित तौर पर यह मनुष्यता के उदात्त उदाहरणों के विपरीत कदम है -पुनर्विचार की जोरदार अपील है !
निजी टंटों में शहर से बाहर था, अभी नज़र गई, बड़े दुख की बात है्..
मैथली जी से पुनर्विचार की अपील है मेरी
Blogvani wapas aa gayee hai..:)
गम छोड़ के मनाओ रंगरेली ...
देर आयद दुरुस्त आयद।
खुशखबरी मिल चुकी है ... ब्लॉवाणी फिर शुरू हो चुका है ...
धन्यवाद ब्लॉगवाणी!!!
मुझे खुसी है की ब्लोग्वानी वापस आ गई
धन्यवाद टीम ब्लोग्वानी ..आपने हजारों प्रशंसकों के निवेदन का मान रखा . ..बाकि विवादों का निपटारा होता रहेगा.
कालीन का खिसकना
शालीनता के चलते
कैसे संभव था
सदा सभी को शालीन रहना चाहिए।
नारद प्रकरण को मौन साधे देखता रहा था.. उस समय बहुत नया तो बहुत पुराना भी नहीं था हिंदी ब्लौगिंग में.. मगर ईमानदारी से कहूं तो थोड़ी चिढ़ भी थी नारद से क्योंकि अथक प्रयास के बाद भी उसने मुझे रजिस्टर नहीं किया था.. मगर समय के साथ जब हिंदी ब्लौगिंग की समझ हुई तब समझा की नारद के साथ क्या खोया था हिंदी ब्लौगजगत ने..
फिलहाल तो खुश हूं कि ब्लौगवाणी वापस आ गई..
बहुत खुश हैं कि ब्लागवाणी वापिस आ गयी आपसब केप्रयास के लिये धन्यवाद
चंद पहली टिपण्णीयाँ हमें नारद के माध्यम से मिली थी. जिनमें से एक आपकी टिपण्णी भी थी. तो इनके महत्तव को नकार तो नहीं सकता. पर जैसा कि आपने कहा चंद कोड्स से अधिक...
यूँ तो ब्लोग्वानी का वापस आना सुखद रहा पर, मुझे लग रहा था कि कुछ दिनों में कोई और आएगा ही. विवादों की विस्तृत जानकारी ना तो नारद के समय थी ना अब है. लेकिन जो भी कारण रहे हों दुखद रहा ये पूरा प्रकरण.
सुरेश जी की टिपण्णी ही मेरी टिपण्णी समझे... लेकिन हमे ब्लांग बाणी से लगाव ओर प्यार हो गया है, इस लिये सब को इस बात का बेहद दुख था,
धन्यवाद
मैं तो ब्लोगिंग का 'ब' सीख ही रहा था उन दिनों. मैथिली जी के कार्यालय में हुई 14-7-2007 की ब्लोगर मीट का ज़िक्र मैने अपनी पोस्ट मे किया था ( 26-9-09 शनिवार रात -अपने तीनों ब्लोग्स पर). आपका ज़िक्र भी आया है उस सन्दर्भ में .
चलिये, अंत भला तो सब भला.
लेकिन मास्टर साहब, ब्लोगिंग से इतर कार्यों में अधिक व्यस्त हो गये लगते हैं.
दिल से जो बात निकलती है असर करती है।
Think Scientific Act Scientific
Blogvani ke vapas aane ki khushi hai.
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