मन की बात में मोदीजी
ने इस बार नशे को अपना निशाना बनाया है, बहुत निरापद सी बात लगती भी
है, नशा अंतत: एक
व्यसन है तथा इसके कोई लाभ हमारे जाने हैं भी नहीं। हॉंलाकि यह भी अहम है कि हमें इतिहास
का ऐसा कोई कोना ज्ञात भी नहीं है जहॉं नशा मौजूद नहीं था, नही
ही हम तारीख के ऐसे किसी मोड़ को ही जानते हैं जब आम लोग नशे की बुराइयों से ऐसे अपरिचित
हों कि उन्हें किसी शासनाध्यक्ष द्वारा इसकी जानकारी दिए जाने की जरूरत महसूस हो।
लोग अक्सर शराब से बरबाद हुए घरों के
दास्ताँ सुनाते हैं इसे पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता किन्तु मुझे लगता है इसकी
वजह यह द्रव्य स्वयं में उतना नहीं है जितना शराब पीने की हमारे यहाँ की प्रचलित
व्यवस्था है। स्कूल कॉलेज के होस्टलों की बीयर पार्टियों से लेकर गली मोहल्ले के
अँधेरे कोनों की देसी दारु बैठकों तक हमारे यहाँ शराब पीना लगभग पूरी तरह एक
मर्दाना स्पेस है बल्कि मर्दवाद की नर्सरी है। शराब के घूँटों के साथ चलने वाली
बातें लगभग पूरी तरह स्त्री विरोधी तथा मर्दवादी अहम् को ग्लोरिफाई करने वाली होती हैं ... घर पहुंचकर होने वाली चीखपुकार
व हिंसा तथा पत्नी पिटाई शराब के नशे के प्रभाव में शायद कम होती और इस कोचिंग ओवर
अ ड्रिंक के नशे में ज्यादा होती है। शराब बुराई है तो किसी को नहीं पीना चाहिए
किन्तु यदि इस स्वर्ग को पाना कठिन हो तो शराब पीने की संस्था व स्पेस का डी
जेण्डरीकरण किया जाना चाहिए। औरत मर्द को साथ पीने दें ये सिर्फ मर्दों के वेवड़ेपन
से कम नुकसानदेह रहेगा। शराब को अँधेरे कोनों से निकालिये भले ही घर में आने देना
पड़े।
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