Tuesday, January 12, 2016

लिखना दरअसल मिटाना है होने को

जब जब लिखता हूँ कुछ
लगता है मिटा रहा हूँ सबकुछ
वह सब मिटता है 
जो मुझे लिखना था दरअसल
मुझे लिखना था मैं, और लिखना था तुम्‍हें
किंतु कविता के ढॉंचें में अँटा नहीं मेरा अहम
कहानी में तुम अकेले आ नहीं पाईं
और पात्रों ने तुम्‍हें तुम रहने न दिया
निबंध औ उपन्‍यास भी थके से लगे पराजित
विधाएं दगा करती हैं
जब तुम पर या कि
खुद पर चाहता हूँ कुछ लिखना।

लिखने की कोशिश
शब्‍दों के दर्प यज्ञ में आहूति है बस
वरना
कविता भी भला सच कहती हैं कभी

3 comments:

HARSHVARDHAN said...

सुन्दर प्रस्तुति। सादर ... अभिनन्दन।।

नई कड़ियाँ :- स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर विशेष - स्वामी विवेकानंद जी के महत्वपूर्ण उद्धरण और विचार

Vikram Gupta said...

वाह.. बहुत सुन्दर सर

Vikram Gupta said...

वाह.. बहुत सुन्दर सर