
PDVD_081
Originally uploaded by masijeevi.
आज का समाचार है कि दिल्ली में कम से कम 500 लोग हर साल जानबूझकर जेल इसलिए चले जाते हैं ताकि सर्दीभर उन्हें एक कम्बल नसीब हो सके। जाहिर है और बहुत से लोग बाहर रह जाते हैं।
उनके सपने
रेहन होते हैं
शहर की ऋतुओं के हाथ
वे
ठिठुरते हैं, कंपकंपाते हैं
सिकुड़ते हैं, फैलते हैं
तड़पते हैं
मर जाते हैं
लाल्टू ने कहा
हाँ मसिजीवी, ठंड से भी, गर्मी से भी, ऐसे मरते हैं लोग मेरे देश में, कहीं भगदड़ में, कहीं आग में जलकर, कभी दंगों में, कभी कभी त्सुनामी ...
2 comments:
बिलकुल सही लिखा आपने,
कुछ सपने
जो नसीब के बावजूद
कहीं साँस लेते हैं,
अँधेरे कोनों में
वो भी दम तोड दें
मौसम के हाथ
फिर बचा क्या ?
मरने के बहाने
क्या पहले से
कम थे ?
प्रत्यक्षा
हाँ, आपने अरंगेत्रम के विषय में लिखा था, ये देखें
http://www.tlca.com/youth/anusha_arangetram.html
सटीक शब्द।
लिंक के लिए धन्यवाद :)
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