मसिजीवी
हिन्दी कलमघसीट का चिट्ठा
Sunday, December 25, 2005
मुक्तिबोध से उधारी
मुक्तिबोध से उधारी
Originally uploaded by
masijeevi
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रात के दो हैं,
दूर दूर जंगल में सियारों का हो-हो
पास-पास आती हुई घहराती गूंजती
किसी रेलगाड़ी के पहियों की आवाज
किसी अनपेक्षित असंभव घटना का भयानक संदेह
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