Wednesday, November 14, 2007

चिट्ठा आत्‍महत्‍या : कुछ स्‍फुट विचार

नीलिमा अरोरा ने एक पोस्‍ट ना अभी ब्लॉग डिलीट नहीं करूंगी में लिखा -

पिछले दो दिन तो ऐसे बीते कि एकबारगी तो ब्लाग ही डिलीट करने वाली थी, पर जब तक जिन्दगी सामान्य ना हो जाए आपको कोई कदम नहीं उठाना चाहिए सो मैंने भी डिलीट नहीं किया। आखिरकार ये आपके अपने होने जैसा है 

हिन्‍दी ब्लगजगत में अपने चिट्ठे को डिलीट कर देने का विचार कोई बिल्‍कुल नया हो ऐसा नहीं है। यदा कदा लोग ऐसा विचार व्‍यकत करते रहे हैं। मसलन धुरविरोधी तो ऐसा कर ही गुजरे। कुछ अन्‍य के मन में भी हो सकता है ऐसा विचार आया हो। ब्‍लॉग हमने भी डिलीट किया था पर बस तकनीकी लोचा था, लगा कि हटो मिटाते हैं, नया बना लेंगे, इसके कोई अन्‍य निहितार्थ तब पता न थे। लेकिन खुद की नेट शख्सियत को मिटा देना, ब्‍लॉगजगत से खुदकशी कर खत्‍म हो जाना एकदम अलग विचार है।

एक परिचित ब्‍लॉगर हैं- रिवर। उनका ब्‍लॉग हमारे पसंदीदा ब्‍लॉगों में से रहा है  वे मई से अक्‍तूबर तक 194 दिन तक नदारद रही ब्‍लॉगजगत से। 194 दिन.. ध्‍यान रहे कि यह ब्‍लॉग गूगल पेजरैंक 5 का ब्लॉग था, कुल टेक्‍नोराटी उस समय 20000 के आस पास था। यथार्थ जगत में कोई घनिष्‍टता नहीं है, पर मिलीं, तो पूछा कि क्‍या विचार है, कहॉं गायब हैं तो गोलमोल सा टालू जबाव मिला, हम टल गए। अब अपनी इस पुनरागमन पोस्‍ट में उन्‍होंने मंशा जाहिर की कि वे 'ब्‍लॉग स्‍यूसाईड' करने पर विचार कर रही थीं।

मौत पर जो आधे शटर वाला चिंतन पिछले दिनों आलोकजी कर रहे थे उसी क्रम में मेरा भी मन बहक रहा है कि भला कोई चिट्ठा क्‍यों आत्‍महत्‍या करता होगा ? गूगल खोजा तो कुछ खास नहीं मिला, एक कारण तो ये दिखा कि कभी कभी चिट्ठे के हिट, लिंक, टिप्‍पणियों से खुद उसके चिट्ठाकार का ही  अहम हिलने लगता है - अरे ये मेरा ही तो बच्‍चा है और इसका कद खुद मुझसे बढ़ गया है (शायद भड़ास के साथ हुआ था  ऐसा, पर यशवंत मानेंगे थोड़े ही) एक ब्‍लॉग पर विचार मिला कि ब्‍लॉग स्‍युसाईड इसलिए भी की जाती है कि ब्‍लॉग खुद उस जिंदगी के दुश्‍मन हो जाते हैं जो उस चिट्ठे को चलाती है। पर सच कहूँ तो मैं बहुत आश्‍वस्‍त नहीं हूँ कि चिट्ठे को सुबह शाम तक खटना नहीं होता, रोज रोज एक ही किस्‍म की जिंदगी की ऊब से दो चार नहीं होना होता, चिट्ठों के देश में बलात्‍कार कर किसी चिटृठे को सड़क पर छोड़ नहीं दिया जाता।  चिट्ठों अपने मिट जाने के बाद किसी पुनर्जन्‍म, स्‍वर्ग की उम्‍मीद नहीं होती तो फिर वे भला क्‍यों आत्‍महत्‍या करते है?

13 comments:

Shastri JC Philip said...

आपने बहुत ही सामयिक मुद्दा उठाया है. इस विषय की अगली कडी आप 17 तारीख को सारथी पर देख सकेंगे. मेरा जीवन ही आत्मविनाश करने वाले लोगों की रक्षा के लिये अर्पित है अत: यह कैसे हो सकता है कि मैं चर्चा आगे न बढाऊं -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
इस काम के लिये मेरा और आपका योगदान कितना है?

मीनाक्षी said...

किसी पुनर्जन्‍म, स्‍वर्ग की उम्‍मीद नहीं होती तो फिर वे भला क्‍यों आत्‍महत्‍या करते है? --- मेरे विचार में पुर्नजन्म हो सकता है.. नए रूप और नई सोच के साथ दुबारा जन्म लेने की चाह अपने आप को खत्म करने को उकसाती है.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

यह मुद्दा तौ विचारणीय है.

Anonymous said...

-विचारणीय विषय।
-मुझे भी अपना ब्लॊग नष्ट करना पडा़, किन्तु वे तकनीकी समस्याओं के चलते। अभी उसकी कॊपी रखी है।
विस्तार से यहाँ इस पर- http://blog.360.yahoo.com/blog-Lio3gFY6bacEj2CzNoysKv6H.Og-;_ylt=AkxH_xQkoWkzQwtZbjHqUTKkAOJ3?cq=1
लिखा भी।

परमजीत सिहँ बाली said...

मसीजीवी जी,आज कल मेरा चिट्ठा भी परेशान कर रहा है....मैं जब भी कोई पोस्ट सहेजना चाहता हूँ तो वह सहेजता ही नही...कोई उपाय हो तो बताए...लगत है कोई तकनिकी खराबी है...पर क्या है? और कैसे ठीक होगी? समझ नही आ रहा।
सहेजने पर यह लिखा आता है(postTime: Illegal post time (format is: 9:35 अपराह्न))

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

मसिजीवी, सच कहूँ तौ मैं ब्लॉग डिलीट ही करने वाली थी पर पता नही क्यों रूक गई. इसे आप ब्लॉग सुसाईड का नाम देना चाहे तौ दे सकते हैं. नही मैं ब्लॉग की बढ़ती पोपुलारिटी या उसके अपने शख्सियत को लेकर बिल्कुल नही था. ये मेरे अपने निराशा और डिप्रेशन के दौर का परिणाम था, इसलिए निर्णय को होल्ड किया. जब तक सामान्य नही होंगी कोई कदम नही उठायुंगी. अच्छा हुआ अभी रुकी जैसे जैसे ज़िंदगी सामान्य हो रही है मुझे अपने निर्णय पर खुशी हुई.
पर ब्लॉग सचमुच आपके अपने होने जैसा ही है अगर आप अपना ही अस्तितत्व नही चाहते हैं तौ ब्लॉग आपके बगैर क्या करेगा.

Tarun said...

masijivi, waqai me sfut vichaar hain aapne shabdo ko achha piro kar post likhi hai.

काकेश said...

कभी कभी ऎसे भाव आते हैं मन में. लेकिन इन भावों की उम्र बहुत कम होती है. उस समय अपने को संयत कर लें तो फिर सब ठीक हो जाता है.

ये ब्लॉग वगैरह तो नयी चीज है हमारे साथ पहले भी ऎसा ही हुआ. इसी तरह के किसी एक फेज में मैने अपनी दो डायरियां जला दीं जिनमें कई कविताऎं, कुछ नाटक , दो कहानियां और ढेर सारे कोटेशन थे.यह लगभ 15 साल पहले की बात है लेकिन इस बात का दुख आज तक है. कभी कभी लगता है लाइफ में ctrl+Z यानि UnDo का ऑप्सन होना चाहिये.लेकिन ऎसा होता तो नहीं ना.

Arvind Mishra said...

यह तो एक निजी मामला है -व्यक्ति की अपनी निजी गरिमा और निर्णय की आज़ादी से जुडी हुई बात !यदि कोई गरिमा ऑर स्वाभिमान के साथ जी नही पा रहा तो उसकी गरिमामयी मृत्यु को लेकर इतनी हाय तोबा क्यों ?आख़िर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी तो कोई चीज है ? चिट्ठा भी व्यक्ति की अपनी निजता है यही सोच वहां क्यों लागू नही हो सकती?

यशवंत सिंह yashwant singh said...

मान लिया भाई.....

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

पहले तो मैं 'आत्महत्या' शब्द से असहमत हूं ,इस सन्दर्भ में.
क्योंकि चिट्ठा खुद जन्मता नही तो खुद मर कैसे सकता है. हां चिट्ठे की 'हत्या' हो सकती है.

अब हत्या कोई क्यों करता है. प्यार करके भी धोखा खाना, संघर्ष करने की मानसिक क्षमता का अभाव, गुस्से की पराकाष्ठा, घृणा, ईर्ष्या, आदि कुछ भी कारण हो सकते हैं हत्या के.अपनी पहचान / छवि से नफरत, भी कारक हो सकता है.
मीनाक्षी जी ने कहा- पुनर्जन्म ,( या पुनर्जन्म की चाहत)- सही है. चिट्ठाकर अपने आपको नये, संवारे हुए रूप में प्रस्तुत करना चाहता है.

परंतु, कारण कुछ भी हो. हत्या से सहानुभूति तो उपजती ही है. लेकिन यहां हम उस शख़्स से सहानुभूति पैदा कर रहे हैं ,जो हत्यारा बनते बनते रह गया .

मसिजीवी said...

आप सबने इसे पढ़ा व प्रतिक्रिया दी, शुक्रिया।

विचार स्‍फुट ही थे, इसलिए शायद बहुत स्‍पष्‍ट नहीं हो पाए मेरी ही ओर से,
हमें तो लगता है कि हम चिट्ठाकार से अलग, चिट्ठे की शख्सियत के विकसित होने की बात को पचा नहीं पा रहे हैं। चिट्ठे में चिट्ठाकार का अंश होता है पर फिर भी चिट्ठा अपने रचनाकार से इतर भी एक व्‍यक्तित्‍व रखता है, ये हमें लगता है इसलिए चिट्ठाकार के अवसाद, हताश, निराशा से अनंतर चिटृठे के बने रहने की हिमायत भर कर रहे हैं-
मिटा कर नया बनाना, क्‍यों। बिना मिटाए ही नया क्‍यों नहीं। क्‍योंकि पुराने का बना रहना हांट करता रहेगा?

Anonymous said...

aap ke baare mae hamne bhi kuch likha he