Saturday, March 15, 2008

चलो कहीं तो पत्रकार की कीमत संपादक से ज्‍यादा है

हम इधर कुछ ज्यादा ही टाईम ब्‍लॉगिंग पर खोटी कर रहे हैं। ऐसा नहीं कि कुछ ज्‍यादा लिख रहे हैं पर फिर भी बहुत सा समय पढ़ने में लगा रहे हैं। जितना हो सके समझने की कोशिश कर रहे हैं। अनाप शनाप सैद्धांतिकियॉं भी सामने आ रही हैं। जितना हो पा रहा उतना  समझ रहे हैं बाकी को बाद के लिए टाल दे रहे हैं। काफी ताकत इस बात को समझने में लगा रहे हैं कि यह ट्रेफिक क्‍या बला है, कहॉं से आता है, क्‍यों आता है और क्‍याकर लाता है साथ में। सवाल हमने लगभग साल भर पहले पूछा था, अब भी वैध सवाल है। इस सवाल पर कई मित्रों ने उत्‍तर में पोस्‍ट लिखीं थीं

सवाल ये कि पेशेवर चिट्ठाकारी से कितना दूर है हिन्‍दी ब्लॉगिंग- उत्‍तर है 'काफी दूर'। सही बात ये है कि हिन्‍दी में लिखने से कहीं ज्‍यादा फायदे का सौदा है हिन्‍दी के बारे में अंग्रेजी में लिखना। भले ही वह टूटी फूटी घटिया अंग्रेजी हो- हम जैसी- हिन्‍दी के झोलाटाईप मास्‍टर की अंग्रेजी। बावजूद इसके कि कई लोगों ने अपने अपने ब्‍लागों पर एडसेंस चेप रखे हैं पर मुझे नहीं लगता कि हममें से कोई नियमित कमाता है। और यकीन मानिए इसका कारण ठीक वही नहीं है जो आपको लगता है, यानि ट्रेफिक की कमी। यह सही है कि ट्रेफिक कम  होने से फर्क पड़ता है पर ये भी सही है कि यदि आप अपने ट्रेफिक का विश्‍लेषण करें तो कई नई चीजें आपको पता लगेंगी। मैं कई की चर्चा करना चाहता हूँ पहली आज केवल एक बात और वो ये कि इस दुनिया में रिपोर्टर संपादक से बड़ा होता है- मतलब कमाई के बारे में। हिन्‍दी में लिखने पर विज्ञापन तो कम हैं ही, पर विज्ञापनों के क्लिक होने पर मिलने वाला पैसा भी बहुत कम है- देखो न

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इसके विपरीत अंगेजी में लिखते समय आप गूगल एडवर्ड के ट्रेफिक एस्‍टीमेटर से अनुमान लगाकर अपने लेखन को बेहतर कमाई के लिए व्‍यवस्थित कर सकते हैं।  अगर आप अंग्रेजी में देखें तो

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यहॉं एक एक क्लिक डालर भर का है। इससे ज्‍यादा के भी हैं पर केवल बानगी के लिए ये रखें हैं। पत्रकार मित्रों को खुश करने के लिए भी कि देखो कोई तो जगह है जहॉं पत्रकार की 'कीमत' संपादक से ज्यादा है :)) [वैसे गूगल अर्थव्‍यवस्‍था में हैं सब बिकाऊ ही :)) आप नाराज न हों इसलिये अध्‍यापक भी जोड़ दिए हैं सूची में]

तो भैया हिन्‍दी के चिट्ठाकारों के हीथ रीते इसलिए हैं कि एक तो पाठक गजब कंजूस हैं जो अंगुली हिलाकर चटका लगाने से भी परहेज करते हैं ऊपर से कोई क्लिक हो भी जाए तो जिन कीवर्ड पर हिन्‍दी में लिखा जा रहा है उनका बाजारभाव ही कौडि़यों से भी कम है। हमने तो सोचा है कि अभी इंतजार ही करें।

6 comments:

Arun Arora said...

क्या बात है गुरूजी जी,आपको तो पता होना ही चाहिये शिक्षक (गुरूजी) को धन से कोई लोभ लालच नही होना चाहिये.(कार्य है केवल देना शिक्षा,बाम्हण का धन केवल भिक्षा)
क्या वाकई कलयुग आ गया है,जो शिक्षक देशी लोगो के टिकटिकाने से आये छुद्र विदेशी पैसे की और देख रहे है..:)

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

हम तो इंतजार भी नहीं कर रहे बंधू. पूरे इत्मीनान में हैं. एक बात और, सम्पादक और रिपोर्टर से अलग अध्यापक है भी नहीं. इसलिए आप न भी जोड़ते तो हम समझ लेते. रही बात ट्रैफिक की, तो वह हिन्दी ब्लागिंग में तब तक नहीं मिलेगी जब तक हिन्दी के लोग हिन्दी के कंटेंट पर भरोसा नहीं करेंगे.

azdak said...

पढ़ा..

रवीन्द्र प्रभात said...

अच्छा लगा , बधाईयाँ !

Anita kumar said...

हमारे लिए काफ़ी जानकारी देने वाला पोस्ट, धन्यवाद

रवि रतलामी said...

सटीक विश्लेषण. और उचित चिंताएं :)