आजकल हिंदी में ब्लॉगिंग के विषय में अपने शिथिल पड़े ब्लॉग "Hindi Blog Reporter" पर भी समय दे रहा हूँ। आपको शायद पता ही हो कि हम मास्टर बिरादरी के लोगों के पास मार्च अप्रैल में खूब समय आ जाता है और जुलाई वुलाई तक इसका आमद बनी रहती है (मानो बाकी समय में हम कोई पहाड़ खोद रहे होते हैं)। तो ब्लॉग रिपोर्टर में लिखने के उपक्रम में पढ़ना भी हो रहा है। बहुत कुछ पढ़ रहे हैं तथा इसी से अंदाजा भी लग रहा है कि कितने सारे बिष्ाय हैं जिन पर हिन्दी ब्लॉगिंग में लिखा नही जा रहा है। तिब्बत पर कोई दमदार पोस्ट नहीं दिखी, वार्डरोब मालफंक्शनिंग होकर बीत गई पर किसी ने खास तवज्जोह न दी। अभी तक हिन्दी में होली के संदेश, एसएमएस आदि वाली पोस्टें भी नहीं दिखीं (ये सब हिन्दी के वो शब्द थे जो गूगल के हॉट सर्च थे) इसी क्रम में इस खबर पर भी नजर गई।
खबर ये है कि भारत से जो रईसजादे विदेश में उच्च शिक्षा के लिए जाते हैं वे हर साल लगभग 13 अरब डालर (सीधे गणित से 52000 करोड़ रुपए) बाहर ले जाते हैं। मेरा विश्वविद्यालय देश के ठीक ठाक विश्वविद्यालयों में है और सौ करोड़ से कम खर्च करता है। यहॉं ये रईसजादे जिनकी संख्या केवल 450000 है, इतना पैसा खर्च करते हैं जबकि दूसरी ओर हम मिड डे मील में 4 रुपए प्रति छात्र का प्रावधान करने में हांफ रहे हैं।
अब जिसके पास पैसा है वो जाकर खर्च कर रहा है हमें मिर्च क्यों लग रही हैं। अब सावधान मुद्रा में दम साधे जन गण मन छाप देशभक्ति से भी परे पहुँच गए हैं लेकिन फिर भी सच्चाई इतनी तो है ही कि अगर इतना खर्च कर गए ये लोग वापस आना चाहेंगे तो इनकी कीमत चुकाना देश की वयवस्था के लिए मुश्किल होगा। दूसरी परेशानी ये है कि इन संख्याओं को दिखाकार और आई आईटी/आई आई एम की मांग की जाती है ताकि इतना ही पैसा खर्च करके देश में लोग तैयार हों जो इनके ही साथ मोटे पैकेजों पर विदेश के लिए काम करें। हम तो तय ही नहीं कर पा रहे हैं कि ये देश में देश तैयार होने को लेकर खुश हों कि दु:खी।
2 comments:
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