Saturday, March 24, 2007

ढीली अदवायन की खाट और खचेढ़ू चाचा

लीजिए जब मिला है तो छप्‍पर फाड़ के मिला है। मतलब वक्‍त...। कहॉं लोग काम न होने के मानसिक तनाव में जी रहे थे और हम बेतरह सुलग रहे थे क्‍योंकि काम के बोझ में दबे थे अब देखिए कैसा वक्‍त बदला है, एक तो देश की टीम ने कृपा की, समीर के तमाम दिलासों के दरकिनार कर घर वापस आ रही है अपने जीवित कोच के साथ। यानि कि अब हमारी रात अपनी है...ऑंखे फोड़ मैच देखने से बचे। दूसरा 23 तारीख आकर गई हमने विद्यार्थियों के एसाइनमेंट्स को अंकम् पुष्‍पं प्रदान कर दफ्तर दाखिल कर दिया है और अब तीन महीने तकरीबन छुट्टी है, तकरीबन इसलिए कि परीक्षा के ढक्‍कन किस्‍म के काम अभी भी करने होंगे पर वे न तो ज्‍यादा समय लेते हैं न ही किसी किस्‍म मानसिक शिरकत की उम्‍मीद ही रखते हैं, परीक्षा देते अपने ही विद्यार्थियों की चौकीदारी है....हो जाएगी।
हमारा वक्‍त बीतेगा खचेढ़ू चाचा के साथ। अब जब वक्‍त है ही तो क्‍यों न आपकी भेंट खचेढ़ू चाचा से करा दी जाए...न न मेरे चाचा नहीं हैं या कहें कि वे सिर्फ मेरे चाचा नहीं हैं वरन वे तो मेरे चाचा के भी, मेरे भी और बच्‍चों के भी चाचा हैं यानि वे दरअसल जगतचाचा हैं। अगर आप खचेढ़ू चाचा को नही जानते तो ये दुर्भाग्‍य है और भगवती चरण वर्मा के हीरोजी की तर्ज पर कहें तो दुर्भाग्‍य खचेढ़ू चाचा का भी है कि वे एक और अपने मुरीद से मिलने से वंचित रह गए।
खचेढ़ू चाचा दिल्‍ली के गॉंव गढ़ी मेंडू (दिल्‍ली के निवासी ध्‍यान दें कि यह गॉंव यमुना खादर में बजीरावाद के दूसरे किनारे पर स्थित है) के बाशिंदें हैं और हर चीज नाचीज़ पर वे अपनी मुख्‍तलिफ राय रखते हैं मसलन कल उन्‍होंने ढीली अदवायन की खाट पर धँसे धँसे ये राय व्‍यक्‍त कीं-
बाबरी मस्जिद मामले में दरअसल गॉंधी परिवार ही शामिल है। ये जो कहते हैं कि बाबरी मस्जिद ढहा दी , निरे बाबले हैं। अरे वह तो सोनिया गॉंधी ने चुपचाप एक जहाज पर लदवाकर दिल्‍ली मँगवा ली थी और गढ़ी गाँव के पास छुपाई हुई है। वो तो लोग ज्‍यादा बोलने लगे तो बचवा राहुल को कहना पड़ा कि उनका कुनबा ही तारनहार है। .....
ओर भी काफी कुछ कहा उन्‍होंनें ..पता नहीं सच कि झूठ, अब हम क्‍या करें हम तो रोज ही खचेढ़ू चाचा से मिलेंगें...मजबूरी है।

3 comments:

Jitendra Chaudhary said...

चलो ये तो अच्छा हुआ कि अब तीन महीने कम से कम आपका लेखन लगातार हमे देखने को मिलता रहेगा। आपके लेखन में शब्दों का चयन सदैव ही परफैक्ट रहता है। उम्मीद है, रोजाना दो लेख तो जरुर छापेंगे।

खचेड़ू चाचा से मुलाकात अच्छी रही, उनसे सभी मसलों पर बात करिए ना। चाचा तो हमारे मिर्जा साहब जैसे दिखते है। लगे रहिए।

आलोचक said...

खचेढू चाचा चिटठा शासत्र के बारे मे क्या कहता है ।

Udan Tashtari said...

अब हमने तो अपने स्तर पर सभी प्रयास किये और अभी भी बंगलादेश के पेरों पर नजर गड़ाये हैं कि भईया, हार जाओ और जीत के सारे पैसे फिर भी ले लेना...मगर यह नालायक लोगों की शूटिंग की डेट्स भी तो क्लैश कर रहीं हैं.

अब बढ़िया, तीन महिने तक आपकी ही आपकी चलेगी...खूब मिलो खचेडू चाचा से और हमारा सलाम भी बोल देना.