अब मामला काफी अलग है। कंप्यूटर बाकायदा एक संचार माध्यम है और बहु ऐंद्रिय है- टेक्स्ट, आडियो, वीडियो की गुंजाइश के साथ है। यह भाषा को उसकी आखिरी सीमा तक ले जाकर परखता है और फिर उसका बाकायदा अतिक्रमण करता है। ब्लॉग यही कर रहा है। हिंदी की दुनिया का व्यक्ति हूँ किंतु यहॉं देखता हूँ कि टेकीज लोग ई पंडित, रवि, अनूप, आलोक सब उसी दुनिया के हैं ये अलग बात हे कि हिंदी की विषय वस्तु के भी माहिर ही हैं। हमें कई बातें बेचैन करती हैं उनमें से कुछ आपको हमारी अल्पज्ञता का प्रमाण लगें तो उन्हें सहेजें नहीं क्योंकि हम ऐसे ही बता देते हैं कि बुड़बक आदमी हैं- प्रभुजी मेरे अवगुण चित्त न धरौ...
कुछ लोगों को अभी भी लगता है कि हिंदी और इंटरनेट अलग चीजें हैं और हिंदी पढ़ने ओर लिखने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पढ़ती है। पता नहीं मुझे तो अतुल की यह टिप्पणी जायज जान पड़ती है-
‘जीतू भाई , यह बात स्वामी की पोस्ट पर भी लिख चुका हूँ, मेरी नजर में वह हिंदीभाषी
लोग जिनकी रोजी रोटी कंप्यूटर की बदौलत है या जिनका पाला आये दिन कंप्यूटर से पड़ता
है, अपने ब्लाग पर आकर अगर फोन्ट का रोना रोते हैं “कि बाक्स दिखता है” उनसे बड़ा
ढकोसलेबाज , बहानेबाज और लुच्चा कोई इंसान नही हो सकता। जिस शख्स ने माँ को पुकारना
भी हिंदी मे सीखा हो आज अगर कंप्यूटर पर बैठे बैठे पाँच दस साल निकाल चुका है और
उसने एक भी हिंदी साईट नही देखी तो इससे बढा झूठ क्या होगा? कोई जरूरत नही ऐसे
बहानेबाजो को स्पूनफीडिंग कराने की। मैने शुरू में बहुतो को आपकी तरह पकड़ पकड़ कर
पढाया, अब नहि करता। पढना है तो खुद ढूढों फोंट और पड़ लो वरना देखते रहो कटिंग
चाय।‘
हॉं गैर हिंदी या गैर कंप्यूटर के लोगों के साथ फिर भी थोड़ी रियायत की जा सकती है।
सही कहें तो अब सिवाय चंद्रबिंदु (ँ ) के कोई विशेष परेशानी आती। मतलब यदि मैं Indic IME ही इस्तेमाल करना चाहूँ और रेमिंगटन कीबोर्ड इसतेमाल करूँ तो किसी किसी जगह चंद्रबिंदु ँ की जगह कॉं की तरह दिखती है लेकिन चूँकि मैं उतना शुद्धतावादी हूँ नही इसलिए काम चला लेता हूँ ।
मेरी असल दिक्कतें विषय वस्तु को लेकर ज्यादा हैं। क्यों हम लोग दुनिया जहान के विषयों पर नहीं लिख पा रहे हैं। मसलन आज आशीष नंदी को सुना उन्होंने डा. गिरींद्रनाथ का उल्लेख किया। ये भारत में मनोविज्ञान के पिता कहे जाते हैं। लेकिन जिस बात से मैं ज्यादा आकर्षित हुआ वह यह कि ये बंगाली और अंग्रेजी दोनों में मनोविज्ञान पर लिखते थे लेकिन मजेदार बात यह है कि इनका लेखन जो बंगाली में है वह अधिक प्रामाणिक है, साहसी है मौलिक है और आज प्रासंगिक है। काश हुगली के किनारे पर बैठा कोई पुरबिया उनके लेखन को हिंदी में ब्लॉगरों के लिए लिखता। हो सकता है उसे आज पढ़ने वाले चंद लोग ही हो पर चिट्ठा तो यहॉं हमेशा के लिए है। कोई लिखो तब तक वर्तनी जॉंचने का काम मैं देख लेता हूँ कोई गलती हो भी गई तो आप आकर सुधार देना।
9 comments:
गजब याददाश्त है आपकी। कहाँ से ढूँढ़ ली हमारी यह पाषाणकालीन टिप्पणी प्रभू?
बात आपकी जायज है। हमें अपने आस-पास की सार्थक बातें नेट पर लानी चाहियें। क्योंकि हम ऐसे ही बता देते हैं कि बुड़बक आदमी हैं- प्रभुजी मेरे अवगुण चित्त न धरौपढ़कर मुस्कराया गया दुई-तीन बार!
बिलकुल सही !
मै भी इस बात पर आपसे सम्मति रखता हूँ की अब अन्तरजालीय हिन्दी समाज को दुनिया-जहान से जुड़े मुद्दों पर लिखना और विचारना चाहिये। और विशेष रूप से बेतुकी कविताओं के बजाय विज्ञान, तकनीक, शिक्षा, अर्थ, खेती-किसानी, व्यक्तित्व-निर्माण, स्वास्थ्य, मनोविज्ञान, कला, सहित अनेकानेक विषयों पर लिखना चाहिये, जिससे हिन्दी जगत मे ज्ञान की विविधता आये और विभिन्न रुचि के पाठक और लेखक इससे जुड़े।
"बिबिध कला शिक्षा अमित,ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से लै करहु, भासा माहिं प्रचार ॥"
-- भारतेन्दु
बस यही प्रयास नेट पर हिंदी के माध्यम से ज्ञान के साहित्य के प्रचार-प्रसार की दिशा में भी होना चाहिये.
आपकी पोस्ट की शुरुआत अलग मुद्दे पर हुई और अंत अलग मुद्दे पर। जहाँ तक पहले मुद्दे की बात है तो मैं क्या कहूँ। कई दोस्त हैं सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल आदि कंप्यूटर की दुनिया के महारथी लेकिन हिन्दी में लिखने/पढ़ने के नाम से निरे अनपढ़ की तरह डरते हैं। इस विषय में काफी दिनों से लिखने की सोच रहा हूँ शायद जल्द ही लिखूँ।
रहा दूसरा मुद्दा विषयों की विविधता का तो उसका तो मैं घनघोर समर्थक हूँ, कई बार कह चुका हूँ। अब यहाँ कई साथी हैं जो डॉक्टर, इंजीनियर से लेकर बहुत कुछ हैं लेकिन सब कवि बने बैठे हैं। ठीक है जी करो कविता लेकिन अपने विषय पर भी एक अलग ब्लॉग बनाकर हफ्ते/पंद्रह दिन में एक पोस्ट तो लिख ही सकते हो। इस बारे में डॉक्टर प्रभात टंडन का उदाहरण अनुकरणीय है।
बाकी सब तो ऊपर अनुनाद जी अपनी टिप्पणी में कह ही गए हैं।
अनुनाद की टिप्पणी है -
"...और विशेष रूप से बेतुकी कविताओं के बजाय..."
तो मैं स्पष्ट कर दूं -भई, मैं तो कविता तुक मिलाकर ही करता हूँ:)
वैसे मसिजीवी जी, आप यदि एमएस वर्ड इस्तेमाल करते हैं तो बायाँ आल्ट बटन दबाए रखकर न्यूमेरिक पैड से 2305 लिखेंगे तो जहाँ चाहे वहाँ चन्द्र बिन्दु लिख सकते हैं. (अन्यत्र काम नहीं करता )
मैं चंद्रबिंदु वाली समस्या जरा समझा नहीं। मैंने रेमिंगटन कीबोर्ड मैप देखा इसके लिए Shift+W, A की हैं। या तो शायद आप कह रहे हैं कि इसे टाइप करना काफी लंबा काम है या फिर यह कि इंडिक IME से टाइप किया गया चंद्रबिंदु कुछेक जगह सही नहीं दिखता।
"जिस शख्स ने माँ को पुकारना
भी हिंदी मे सीखा हो आज अगर कंप्यूटर पर बैठे बैठे पाँच दस साल निकाल चुका है और
उसने एक भी हिंदी साईट नही देखी तो इससे बढा झूठ क्या होगा? कोई जरूरत नही ऐसे
बहानेबाजो को स्पूनफीडिंग कराने की। मैने शुरू में बहुतो को आपकी तरह पकड़ पकड़ कर
पढाया, अब नहि करता। पढना है तो खुद ढूढों फोंट और पड़ लो वरना देखते रहो कटिंग
चाय।"
बिल्कुल सोलह आने सच और खरी बात , मैने भी बहुत झेला इन वाहियाद लोगो को , अब झेलने की कवायद खत्म , सीखना हो तो सीखो नही तो भाड मे जाओ.
Post a Comment