यूँ तो बार बार पीछे मुड़ के देखना ओर हाय हमारा अतीत....हाय वे मोहक दिन.....वो पीली छतरी वाली लड़की.....वो काले छाते वाले मास्टरजी......वो सफेद टोपी वाले इरफान साहब......वो बड़े छाते वाली यूनीवर्सिटी स्टाल......वगैरह वगैरह ये पीछे मुड़ मुड़ के देखना, ये अपना डोमेन नहीं है। अविनाश, इरफान, जितेंद्र वगैरह इसे अच्छा कर पाते हैं हालांकि इसकी चैंपियन फिर भी प्रत्यक्षा ही हैं ;) पर थोड़ा बहुत होली की पिनक में हम भी बहक गए थे। पर सच मानिए अपने ही पॉंवों पर खड़े हैं और 'मैं कुछ हूँ' की खामख्याली अब छोड़ चुके हैं। इसलिए उन अतीत की फाइलों को रहने ही देते हैं जिसके यूनीकोड में परिवर्तन के बाद साझा करने का आदेश (था तो सुझाव ही पर हम उसे भी आदेश की तरह ही लेते हैं) हमें रविजी, श्रीशजी और अनूपजी ने दिया। इसलिए कि मुझे लगता है कि डींगें और शौर्यगाथाएं तब गाएंगे जब जंग जीत लेंगे अभी तो लड़ाई जारी है। इसलिए पीछे नहीं चलिए आगे देखें। और बॉंटनी ही हैं तो मोहक अतीत की बजाय चलिए अपने सपने बॉटूं, मोहक सपने भी होते हैं लेकिन उनके साथ एक जिम्मेदारी भी होती है कि या तो उन्हें पूरा करो नहीं तो कम से कम ऐसा पत्थर तो बन ही जाएं जिसपर होकर भविष्य के अद्यतन लोग उसे पूरा करने निकलेंगे।
मैं टाफलर नहीं न ही जो मैं भविष्य के रूप में देख रहा हँ वह कोई प्रो़द्योगिकीय अनुमान है मैं तो केवल सपने की तरह इसे देख रहा हँ पर अलौकिक व अवास्तविक की गुंजाइश पैंतीस साल की उम्र में बहुत नहीं रह जाती है। हिंदी चिट्ठाकारिता को लेकर जिस बात की मैं सबसे पहले कामना करता हँ वह यह है कि ये पिता की अपने पिता से बात करने भर की भाषा न हो वरन अपने बच्चों से बात करने की भाषा हो। मेरा मतलब है मैं इस चिट्ठा समुदाय को किशोर किशोरियों से भरा देखना चाहता हूँ जो कभी कभी किसी गुरू गंभीर विषय पर र्भी बात कर लें तो मुझे कोई हर्ज नहीं लेकिन आम तौर पर वे आपसी छेड़छाड़, इश्क मोहब्बत, हम बड़ों की बुराइयॉं, कूल, हैंगिंग आउट, पढ़ाई .....ये सब बातें करते ही दिखें ( न कि हमेशा किसी गुरूभार में दबे कि ये सब वे अपनी भाषा के संरक्षण या बढ़ावे वगैरह के लिए कर रहे हैं) कुछ ऐसे चिट्ठाकार बिरादरियॉं हों जहॉं देशी विदेशी गीत-संगीत नाच आदि की बातें होती हों और तीस साल से बड़े लोगों को वहॉं मुँह न लगाया जाता हो। मतलब हिंदी की चिट्ठाकारिता सॉंस लेने की हद तक स्वाभाविक हो कोई महत कार्य न रह जाए, न तो तकनीकी तौर पर ना सांस्कृतिक तौर पर। वैसे तकनीकी तौर पर तो ये बस एक कदम भर दूर है आज एक अच्छा हिंदी स्पीच रेकगिनिशन औजार आया जो हिंदी में बोले को झट यूनीकोड में बदल दे बस फिर क्या है....सांस्कृतिक तौर पर जरूर एक लंबी लड़ाई है। यानि हमें चाहिए हिंदीटीन (हिंदी के किशोर)। वैसे ये ना समझें कि हमें रैप-रॉक पसंद हैं अरे हम तो बस इतना चाहते हें कि ये हिंदी की दुनिया इतनी बड़ी हो जाए कि भले बुरे सब करम होने लगें इसमें।
चिट्ठाकारिता का दूसरा सपना जरूर ऐलिस इन वंडरलैंड किस्म का है। जाहिर है चिट्ठाकारिता की दुनिया विशाल होती जाएगी ओर फिर गूगलदेव के नित नवीन अवतारों के आते जाने के बाद भी कितना मजा आए कि ऐसे ही तफरीह करते हुए हम बाहर निकलें और कोलम्बस की तरह हमें कोई नया अमरीका मिल जाए। यानि चिट्ठाकारिता की एकदम अनदेखी दुनिया जिससे हम अब तक अपरिचित थे। किस्से कहानी जैसी बात है पर सबकुछ संभव है। नए आबाद ग्रह मिलना अगर स्वीकृत सपना है तो दस-बीस नारद क्यों नहीं मिल सकते......चलते चलते जमीन पर ऑंखें गढ़ाकर चलता था बचपन में कि शायद कोई सिक्का पड़ा मिल जाए। सच बड़ा मजा आए।
7 comments:
Bahut hee uttam vichaar hain !
iss blogging kee duniyaa mein aise parivartan aap jaldee hee dekheinge...
Physics wale vector kaa resultant ham zero nahin hone deinge.
kuch prateekshaa karein, aap ke sapane zaroor poore hone wale hain !
Might Knight
मसिजीवि बहुत ही सच्चा सीधा बयान किया है आपने ..नए पुराने चिट्ठाकार मिलकर इस नयी दुनिया को खडा कर सकते हैं जहां हिन्दी चिट्ठाकारिता सांस लेने की हद तक स्वाभाविक होगी ।यहीं भाषा अकृत्रिम रूप में बनी रह सकती है नयी चिट्ठाकार पीढी के लिए मेरी भी यही शुभाकांक्षा है ।
"मेरा मतलब है मैं इस चिट्ठा समुदाय को किशोर किशोरियों से भरा देखना चाहता हूँ जो कभी कभी किसी गुरू गंभीर विषय पर र्भी बात कर लें तो मुझे कोई हर्ज नहीं लेकिन आम तौर पर वे आपसी छेड़छाड़, इश्क मोहब्बत, हम बड़ों की बुराइयॉं, कूल, हैंगिंग आउट, पढ़ाई ....."
मसिजीवी आश्वर्य है कि कई बार मेरी कुछ सोच आपसे बहुत मिलती है। आपके ब्लॉग 'शब्दशिल्प' में भी कई बातों में मुझे ऐसा लगा।
ये ऊपर वाली बात मैंने भी सोची है। कुछ दिन पहले पंकज भाई से गूगल टॉक पर हुई थी इस बारे में। हिन्दी चिट्ठाजगत में हम ज्यादातर लो ३०+ के ही हैं। कुछ समय से आए हैं २०-३० के बीच वाले। मेरा मानना है कि कोई भी ट्रेंड टीनेजर चलाते हैं। अगर एक बार उनमें हिन्दी ब्लॉगिंग चल निकले तो फिर यह आग की तरह फैलेगी।
दूसरी बात हिन्दी चिट्ठाकारी में विषयों का दायरा अभी तक सीमित ही है। व्यंग्य, कविताएं सीरियस किस्म के लेख आदि। टीनेजरों की रुचि का कुछ नहीं है यहाँ। अब जैसे ये सिनेमा वाला ब्लॉग है इसी तरह की और चीजें होनी चाहिए आपके शब्दों में "कुछ ऐसे चिट्ठाकार बिरादरियॉं हों जहॉं देशी विदेशी गीत-संगीत नाच आदि की बातें होती हों और तीस साल से बड़े लोगों को वहॉं मुँह न लगाया जाता हो।"
मैं चाहता हूँ नेट पर हिन्दी की दुनिया नवरंग हो, भिन्न भिन्न विषयों पर ब्लॉग हों। तकनीकी, कहानी कविता हास्य आदि तो पहले से हैं ही टीनेजर के लिए फ्रैंडशिप साइट हों, फिल्में, वीडियो गेम से लेकर हर विषय पर ब्लॉग हों (एडल्ट छोड़कर)।
"वैसे तकनीकी तौर पर तो ये बस एक कदम भर दूर है आज एक अच्छा हिंदी स्पीच रेकगिनिशन औजार आया जो हिंदी में बोले को झट यूनीकोड में बदल दे बस फिर क्या है...."
इस बारे में भी मैंने सोचा है। एक बार ऑफिस एक्स पी का स्पीच रिकग्नीशन भी आजमाया पर वो बेचारा इंग्लिश में ही ठीक से काम नहीं करता हिन्दी में क्या खाक करता। वैसे तो अभी तक इस मामले में इंग्लिश के लिए भी कोई कामयाब टूल आया नहीं। हिन्दी के लिए तो ऐसा होना दूर की कौड़ी है, लेकिन हिन्दी कम्प्यूटिंग का अब तक का इतिहास देखते हुए ये असंभव भी नही लगता।
विचार काफी सराहनीय है और दुआ है मेरी की आपके सोंच के जैसा ही कुछ हो,प्रयास से ही बदलाब आयेगा…।बधाई हो जो इतना अच्छा कहा!!
सच ! बडा मज़ा आये :-)
ऐसा जरूर होना चाहिए . पर जैसी स्थितियां हैं, अभी दिल्ली दूर दिखती है.
हिंदी की चिट्ठाकारिता सॉंस लेने की हद तक स्वाभाविक हो
बिल्कुल ठीक कहा है मसिजीवी आपने और आपका इस प्रकार का स्वत: और बेबाक लेखन इसमें एक मील का पत्थर होगा। जैसे कि पहले की पोस्ट - ओपेन सोर्स वाली भी थी, जेब से निकलती हुई!
यह बात भी है कि पाठक-संख्या भी कम है हिन्दी की और उसी अनुपात में लेखक भी कम। इतनी यंत्रणा भी है इसमें लिखना (यूनीकोड के बावजूद भी) तो आयेंगे तो कम लोग ही, जो इस मशक्कत को झेल कर भी कुछ लिखना ही चाहते हैं। तब तक जो हैं इसमें, वही करेंगे विविधता पूर्ण लेखन, बेबाक लेखन। नीलिमा जी ने भी अपने चिट्ठे में इसी से मिलते जुलते विचार रखे थे।
एवमस्तु।
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