किसी बुजुर्ग से बात करें या तीस चालीस साल पुराने किसी शहरी उपन्यास को पढ़ें, आपको घंटाघर का जिक्र अवश्य मिलेगा। घंटाघर लगभग हर शहर का महत्वपूर्ण निशान (लैंडमार्क) हुआ करता था। सामान्यत यह टाउनहॉल की इमारत में होता है तथा इस तरह इसे शहर के बीचोंबीच माना जाता था इसका समय शहर का मानक समय होता था। घडि़यॉं कम घरों में होती थीं तथा कलाई घड़ी एक महँगी चीज थी। पूरा शहर घंटाघर से अपनी घड़ी को मिलाया करता था। लेकिन समय से अधिक घंटाघर अपने वास्तु व शहरी संस्कृति का केंद्र होने के कारण अहम थे। यही वजह है कि शहर का हर प्रमुख संस्थान अपने स्तंभ में घड़ी लगाकर घंटाघर बन जाने की अपनी महत्वकांक्षा रखता था।
फिर देसी विदेशी घड़ियों की क्रांति हुई, इतना अधिक कि अब हमारे शहर में तो घड़ी किलो के हिसाब से मिलती हैं। ऐसे में कम से कम समय देखने के उपकरण के लिहाज से घंटाघर का कोई महत्व नहीं ही रह जाएगा। ज्ञानदत्तजी ने तो घोषित किया ही कि खुद हाथ घडी रिनंडेंट हो गई है। ऐसे में भला शहर भर की घडी की कौन कहे। लेकिन प्रकार्यात्मकता (फंक्शैनिलिटी) से परे भी इन घंटाघरों का एक महत्व हो सकता है ये याद के मूर्तिमान रूप हैं। कितनी ही यादें इन घंटाघरों से जुड़ी होती है इसलिए भी अरसे तक ये सबसे अहम लैंडमार्क रहे। विदेशों में तो इनकी कलात्मकता के ही कारण इन्हें सहेजने पर बल रहता है। हमारे शहर के घंटाघरों की बात करें तो टाउनहाल, फतेहपुरी, हरिनगर, मूलचंद, एसआरसीसी आदि कई महत्वपूर्ण घंटाघर देखे हैं दिल्ली में। जैसे कि अँधेरे में लिपटा ये मूलचंद अस्पताल का घंटाघर जिसे संयोग ठीक तीन साल पहले भी पोस्ट किया गया था।
लेकिन घंटाघर नाम से प्रसिद्ध जगह वह है जो जाहिर है घंटाघर कहलाती है। बिरला मिल्स के पास। अंग्रेजो के समय यह गैर यूरोपीय पॉश दिल्ली के केंद्र में था। हाल में इस घंटाघर का जीर्णोद्धार किया गया है। कम शाम ये ऐसा दिख रहा था।
8 comments:
हमें अपने शहर का घंटाघर याद आ गया ।
उफ जबलपुर । हाय मुंबई ।
अच्छी जानकारी देने का शुक्रिया . बडा दिन बहुत बहुत मुबारक हो जी !
हमारे शहर संस्कारधानी जबलपुर का घंटाघर एतिहासिक है . भाई बहुत बढ़िया पोस्ट .बडा दिन बहुत बहुत मुबारक हो...
जब इतना लिख दिया है तो और शोध कीजिए। किस तरह घड़ी ने हमें बदला। शहर को समय दिखाने का मकसद क्या रहा होगा। वो भी इतनी ऊंचाई से।
घंटाघर तो हमारे शहर जोधपुर में भी है... काफी रौनक वाली जगह है..
हमारे शहर में घंटाघर भी है और अन्टाघर भी। ये अन्टाघर की बात फिर कभी।
सही है, लगभग हर शहर में घंटाघर और एक अदद टाउन हाल
अपने में इतिहास संजोये है !लीक से हट कर एक अच्छी पोस्ट..
चलिए एक घंटाघर का तो उद्धार हुआ .हमारे बरेली मे तो घर तो है घंटे गायब है . विज्ञापन पट बन गया हमारा घंटाघर हमारे शहर की पहचान
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