Wednesday, February 03, 2016

अनाथ शब्द

बियावान में भटकते
आकाशगंगाओं परे जाते
सरहदों की बाड़ के कॉंटों में उलझे
हिमस्खलनोँ के नीचे दबे
हर टूटे पुल से लटके
अपने सभी अनाथ शब्दों को
जिनकी मोमदार रस्सी से
निरपराधों को लटकाया गया
मैं एतद द्वारा इन्हें बुलाता हूँ अपनी गोद
स्वीकार करता हूँ इनका स्वामित्व
प्रस्तुत हूँ
तारीखी इंंसाफ के लिए।
क्योंकि दुनिया का कोई शब्द
त्रिशंकु नहीं होना चाहिए
चुप्पियों के ब्रह्मांड
बनने से कहीं पहले रोकने जरूरी हैं

2 comments:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस : वहीदा रहमान और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और गहनं अभिव्यक्ति...