बियावान में भटकते
आकाशगंगाओं परे जाते
सरहदों की बाड़ के कॉंटों में उलझे
हिमस्खलनोँ के नीचे दबे
हर टूटे पुल से लटके
अपने सभी अनाथ शब्दों को
जिनकी मोमदार रस्सी से
निरपराधों को लटकाया गया
मैं एतद द्वारा इन्हें बुलाता हूँ अपनी गोद
स्वीकार करता हूँ इनका स्वामित्व
प्रस्तुत हूँ
तारीखी इंंसाफ के लिए।
क्योंकि दुनिया का कोई शब्द
त्रिशंकु नहीं होना चाहिए
चुप्पियों के ब्रह्मांड
बनने से कहीं पहले रोकने जरूरी हैं
आकाशगंगाओं परे जाते
सरहदों की बाड़ के कॉंटों में उलझे
हिमस्खलनोँ के नीचे दबे
हर टूटे पुल से लटके
अपने सभी अनाथ शब्दों को
जिनकी मोमदार रस्सी से
निरपराधों को लटकाया गया
मैं एतद द्वारा इन्हें बुलाता हूँ अपनी गोद
स्वीकार करता हूँ इनका स्वामित्व
प्रस्तुत हूँ
तारीखी इंंसाफ के लिए।
क्योंकि दुनिया का कोई शब्द
त्रिशंकु नहीं होना चाहिए
चुप्पियों के ब्रह्मांड
बनने से कहीं पहले रोकने जरूरी हैं
2 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस : वहीदा रहमान और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
बहुत सुन्दर और गहनं अभिव्यक्ति...
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