Tuesday, February 06, 2007
चूहा चर्चा: ऐसे ही वक्त में
ब्लागजगत एकाएक घटनाप्रधान हो चला है। रवि रतलामी जी सुचिंतित चिट्ठाचर्चा में लीन हैं, हिंदी ब्लागों से सामग्री बाकायदा चोरी होने लगी है, चोरी के शिकार चर्चा कर रहे हैं, चोरी के कर्ता चर्चा कर रहे हैं और तो और जो चोरी के शिकार बनने लायक सिद्ध न हो सके वे तक चर्चा कर रहे हैं लुब्बालुआब यह कि चिट्ठा चर्चा वक्त की रवायत हो चली है। चर्चा लायक यदि कुछ है तो केवल चिट्ठे और बस चिट्ठे। ऐसे ही वक्त में यह अदना मसिजीवी चिट्ठों पर चर्चा नहीं कर रहा- आपका वक्त खोटी करने के लिए मुआफी चाहता हूँ। हम ठहरे पिछली कतार के ब्लागर तो हम चिट्ठे पर चर्चा के लायक नहीं, मित्र लाल्टू ने नेवले की चर्चा की और मैं कर रहा हूँ चूहे की। किसी खास टॉम व जेरी या मिकी माउस किस्म के चूहे की नहीं एकदम आम चूहे की चर्चा जिसने हमारी नाक में दम कर रखा है। यह आम चूहा इस आम की-बोर्डपीट (शब्द था कलमघसीट, मैं इसका प्रतिशब्द बनाना चाह रहा था) के घर में कहीं रहता है। वैसे मैं जानता हूँ कि वह बाकायदा कैबीनेट में रहता है पर मैं उसका कुछ नहीं कर पाता। क्या मैं इस चूहे से डरता हूँ ? क्या मैं म्यूसोफोबिया विकार का शिकार हूँ ? पता नहीं पर यह सच है कि जब पत्नी के कहने पर जाकर रसोई की लाइट जलाता हूँ तो यही मना रहा होता हूँ कि वह दिखाई न दे...। इसलिए कल जब वह रसोई के दराज में पड़े पैकिंग फॉयल से उछलकूद रहा था तो सीधा दराज खोलकर उससे दो दो हाथ करने के बजाय दराज खटखटाकर उसे भगा दिया फिर फॉयल को कूड़ेदान के हवाले किया और आकर सो गया अब आज चूहेदान लगा दूँगा पकड़े जाने पर उसे जैसे तैसे फेंक आएंगे।
इस मूषक वितृष्णा का कारण है मेरी पत्नी के एम. फिल शोधकार्य, उन्होंने शोध किया था बदीउज्ज़मॉं के उपन्यासों विशेषकर ‘एक चूहे की मौत’ पर यह काफ्का की मेटामॉरफासिस से प्रभावित एक उपन्यास है जो दुनिया विशेषकर नौकरशाही की तुलना चूहेमारी से करता है और चूहे के लिजलिजेपन का बेहद सटीक चित्रण करता है। नायक अंतत: स्वयं चूहा बन जाता है। शोधकार्य के दौरान घर में सारे दिन चूहा, लिजलिजापन, चूहे मारना.....यह सब होता रहा कि चूहे की कल्पना भर भी मजबूर कर देती है कि यदि कहीं से घर में चूहा आ जाए तो यक्क..। तो सच है कि सब तो चूहेमारी में लगे हैं और बाकायदा चिट्ठाक्रांति होने को है पर हमें तो बस कोई इस चूहे से मुक्त कर दे बस।
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7 comments:
इस चिट्ठे पर चुहे को बैठा देख य..क्क... मैं तो उल्टे पाँ लौटने वाला था.
शायद मुझे भी किसी प्रकार का विकार है. पहले यहाँ से चुहा हटाओ...फिर टिप्पणी लिखंगे. :)
bada sundar chuha hai.
मसिजीवीजी, परसाई जी का भी एक लेख है- चूहा और मैं! इसमें चूहा बहादुरी से घर वाले की नींद हराम कर देता है!
आ जाओ भाई, आप भी चिट्ठा चर्चा में. जब चूहे जैसे जीव पर लिख गये तो चिट्ठाकारों की पोस्ट तो उतनी लिजलिजी भी नहीं है, डर भी नहीं लगेगा...इंतजार है आपका. :)
वाह यह भी खूब रही, ब्लॉगियों को बहाना चाहिए, दुनिया में किसी भी चीज पर पोस्ट लिख मारें। :)
मैनें एक उपन्यास पढ़ा था "एक चुहे की मौत" बड़ा अजीबोगरीब था वह आपका यह पोस्ट पढ़कर याद आ गया>>
हॉं संजय बस यही ऐहसास है, यक्क। उसके बावजूद टिप्पणी लिखने का कष्ट उठाने का धन्यवाद
सुन्दर ??? महाशक्ति जी आपकी महाशक्ति को नमन। कल के चूहेदान में तो पकड़ में नहीं आया पर पकड़े जाते ही आपके पास रवाना कर दूंगा
श्रीश, समीर, अनूपजी का आभार
Divine India , सही पकड़ा आपने। हॉं मैने बदीउज्ज़मॉं के उपन्यास ‘एक चूहे की मौत’ का ही संदर्भ लिया है इसीलिए यह पोस्ट मेरे तईं तो एक चूहे के बहाने जीवन की लिजलिजाहट पर की गई टिप्पणी ही है
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