इस पोस्ट का सोर्सकोड यह है ...
मंटो का वक्तव्य 'मैं अफसाना क्यों लिखता हूँ' लिया। फाइंड-रिपलेस कमांड से अफसाना की जगह चिट्ठा चेपा। तदनुसार कागज-कलम की जगह कंप्यूटर के शब्द रखे। .....पोस्ट कर दिया। कॉपराईट या तो मंटो का माना जाए या ओपनसोर्स में माना जाए। हाजिर है-
मुझसे कहा गया कि मैं यह बताऊँ कि मैं चिट्ठा क्यों कर लिखता हूँ? यह 'क्यों कर' मेरी समझ में नहीं आया. 'क्यों कर' का अर्थ शब्दकोश में तो यह मिलता है - कैसे और किस तरह?
अब आपको क्या बताऊँ कि मैं चिट्ठा क्योंकर लिखता हूँ. यह बड़ी उलझन की बात है. अगर में "किस तरह" को पेशनज़र रखूं को यह जवाब दे सकता हूँ कि अपने कमरे में कुर्सी पर बैठ जाता हूँ. कीबोर्ड पकड़ता हूँ और बिस्मिल्लाह करके चिट्ठा लिखना शुरू कर देता हूँ. मेरे तीन बच्चे शोर मचा रहे होती हैं. मैं उनसे बातें भी करता हूँ. उनकी आपसी लड़ाइयों का फैसला भी करता हूँ, अपने लिए "सलाद" भी तैयार करता हूँ. अगर कोई मिलने वाला आ जाए तो उसकी खातिरदारी भी करता हूँ, मगर चिट्ठा लिखे जाता हूँ.
अब 'कैसे' सवाल आए तो मैं कहूँगा कि मैं वैसे ही अफ़साने लिखता हूँ जिस तरह खाना खाता हूँ, गुसल करता हूँ, सिगरेट पीता हूँ और झक मारता हूँ.
अगर यह पूछा जाए कि मैं चिट्ठा 'क्यों' लिखता हूँ तो इसका जवाब हाज़िर है.
मैं चिट्ठा अव्वल तो इसलिए लिखता हूँ कि मुझे चिट्ठा लिखने की शराब की तरह लत पड़ी हुई है.
मैं चिट्ठा न लिखूं तो मुझे ऐसा महसूस होता है कि मैंने कपड़े नहीं पहने हैं या मैंने गुसल नहीं किया या मैंने शराब नहीं पी.
मैं चिट्ठा नहीं लिखता, हकीकत यह है कि चिट्ठा मुझे लिखता है. मैं बहुत कम पढ़ा लिखा आदमी हूँ. यूँ तो मैने किताबें लिखी हैं, लेकिन मुझे कभी कभी हैरत होती है कि यह कौन है जिसने इस कदर अच्छे चिट्ठे लिखे हैं, जिन पर आए दिन विवाद चलते रहते हैं.
जब कलम मेरे हाथ में न हो तो मैं सिर्फ़ कखग होता हूँ जिसे हिंदी आती है न संस्कृत, न अंग्रेजी, न फ्रांसीसी.
चिट्ठा मेरे दिमाग में नहीं, जेब में होता है जिसकी मुझे कोई ख़बर नहीं होती. मैं अपने दिमाग पर ज़ोर देता हूँ कि कोई चिट्ठा निकल आए. कहानीकार बनने की भी बहुत कोशिश करता हूँ, सिगरेट फूंकता रहता हूँ मगर चिट्ठा दिमाग से बाहर नहीं निकलता है. आख़िर थक-हार कर बाँझ औरत की तरह लेट जाता हूँ.
अनलिखे चिट्ठे की घोषणा वसूल कर चुका होता हूँ. इसलिए बड़ी कोफ़्त होती है. करवटें बदलता हूँ. उठकर अपनी चिड़ियों को दाने डालता हूँ. बच्चों का झूला झुलाता हूँ. घर का कूड़ा-करकट साफ़ करता हूँ. जूते, नन्हे मुन्हें जूते, जो घर में जहाँ-जहाँ बिखरे होते हैं, उठाकर एक जगह रखता हूँ. मगर कम्बख़्त चिट्ठा जो मेरी जेब में पड़ा होता है मेरे ज़हन में नहीं उतरता-और मैं तिलमिलाता रहता हूँ.
जब बहुत ज़्यादा कोफ़्त होती है तो बाथरूम में चला जाता हूँ, मगर वहाँ से भी कुछ हासिल नहीं होता.
सुना हुआ है कि हर बड़ा आदमी गुसलखाने में सोचता है. मगर मुझे तजुर्बे से यह मालूम हुआ है कि मैं बड़ा आदमी नहीं, इसलिए कि मैं गुसलखाने में नहीं सोच सकता. लेकिन हैरत है कि फिर भी मैं ब्लॉगिस्तान का बहुत बड़ा चिट्ठाकार हूँ.
मैं यही कह सकता हूँ कि या तो यह मेरे आलोचकों की खुशफ़हमी है या मैं उनकी आँखों में धूल झोंक रहा हूँ. उन पर कोई जादू कर रहा हूँ.
माफ़ कीजिएगा, मैं गुसलखाने में चला गया. किस्सा यह है कि मैं खुदा को हाज़िर-नाज़िर रखकर कहता हूँ कि मुझे इस बारे में कोई इल्म नहीं कि मैं चिट्ठा क्यों कर लिखता हूँ और कैसे लिखता हूँ.
अक्सर ऐसा हुआ है कि जब मैं लाचार हो गया हूँ तो मेरी बीवी, जो संभव है यहाँ मौजूद है, आई उसने मुझसे यह कहा है, "आप सोचिए नहीं, कीबोर्ड पीटिए और लिखना शुरू कर दीजिए."
मैं इसके कहने पर कीबोर्ड पर अंगुलियॉं चलाता हूँ और लिखना शुरू कर देता हूँ- दिमाग बिल्कुल ख़ाली होता है लेकिन जेब भरी होती है, खुद-ब-खुद कोई चिट्ठा उछलकर बाहर आ जाता है.
मैं खुद को इस दृष्टि से चिट्ठाकार नहीं, जेबकतरा समझता हूँ जो अपनी जेब खुद ही काटता है और आपके हवाले कर देता हूँ-मुझ जैसा भी बेवकूफ़ दुनिया में कोई और होगा?
12 comments:
बहुत ही जान्दार लेख है और आपको होली की शुभकामनाएं
वाह! क्या बात है!
ये तो नया आइडिया बताया आपने. अब आपकी रचनाओं में मेरा भी फ़ाइंड एण्ड रीप्लेस का जादू चला करेगा :)
वाह, बहुत खूब! पिछ्ली दो-तीन पोस्टों से आप अपने रंग,मूड में आ रहे हैं ऐसा लगता है मुझे। कमाल है। अच्छा लगा यह पढ़ना!
bahutkhoob likha hai aapane college kesystem se likh rahe hain roman se hi kam chalaiye
बहुत अच्छा लगा आपका अनुभव (या परेशानी ?)
:)
आपकी जेब से निकला माल हमने ग्रहण कर लिया है. :)
वाह भई वाह!! यह हुई ने बात! बढ़िया लिखा है, बधाई!!
--आपको होली की बहुत मुबारकबाद! :)
शुएब, प्रियंकर, रवि, अनूप, नीलिमा, नितिन संजय, समीर इस चेपन को पसंद करने के लिए आभार।
आप सभी को होली की मुबारकबाद
होली की शुभकामनाएँ !
सोचती हूँ कि मैं भी कुछ जेबों का जुगाड़ कर ही लूँ, न हो तो किसी की जेब काटकर ही काम चला लूँ ।
घुघूती बासूती
चिट्ठाकारी की कामयाब कोशिश का नज़ारा। उम्दा।
वाह कॉपी पेस्ट का नया तरीका बताया आपने। बहुत खूब।
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