Sunday, March 04, 2007

वे तीन साथ-साथ थे

कविताएं मैं कम लिखता हूँ। ये भी एक पुरानी कविता है। यूनीकोड में बदलकर देखा, बदल गई। सोचा बॉंटा जाए। पेश है-

कविता

वे तीन
साथ-साथ थे
सड़क साफ थी
अचानक
सामने से धूल भरी आंधी का
एक जबरदस्त झोंका आया
दरअसल तूफान आने वाला था
एक ने झट से उसकी और पीठ कर ली
दूसरे ने मींच लीं आखें
तीसरे ने आखें फाड़ धूल के पार
देखने की चेष्टा की,
वैसे दिखाई उसे भी कुछ खास न दिया
आखें उसकी
रेत से भर गईं
आखें मलते
उसके मुंह से निकला
बड़ी तेज आंधी है, शायद तूफान...
:
:
वह
आंधी लाने के षडयंत्र में
धर लिया गया
उसके दोनों साथी
बने चश्मदीद गवाह।

2 comments:

सुजाता said...

achchi hai brain ki cheerfaad karke ek shadyantrakari dimag ko khojti satta ka bimb ANDHERE ME smaran ho aya.

Neelima said...

सुंदर कविता ।