Friday, December 28, 2007

जमीन के नीचे से केबलचोरी के हुनर का निजीकरण

कम्यूनिस्‍ट नहीं हैं, इस विचारधारा का घणा विरोध किया है इतना कि कई बार तो लोग सिर्फ इस विरोध की बुनियाद पर मानते रहे हैं कि जरूर 'संघी' ही होउंगा। वो भी नहीं हूँ। ये अकेला अंतर्विरोध नहीं है व्‍यक्तित्‍व में अपने और भी ढेरों हैं। दरअसल इस लिहाज से देखा जाए तो सिर्फ ब्‍लागिंग ही एकमात्र जगह हे ज‍हॉं हमारी निभ रही है वरना हर खांचा एक या दूसरी किस‍म की कैडरबद्धता की मांग करता है। ब्‍लॉगिंग में इसलिए चल जाता है कि यहॉं कोई आपसे अंतर्विरोधों से मुक्‍त होने की शर्त नहीं रखता। जिसे अतर्विरोधों से मुक्‍त लोग मिलें वह उनके साथ मिलकर एक अंतर्विरोधों से मुक्‍त दुनिया बसा ले। हमारी सच्‍चाई ये है कि कम्‍यूनिज्‍म का विरोध करते थे पर प्राइवेट की जगह डीटीसी में बैठना पसंद करते थे, पैसा जाए तो सरकारी क्षेत्र में जाए। अब तक लगातार एमटीएनएल का ही फोन लेते रहे हैं जबकि लोग खूब भरमाते रहे हैं कि सरकारी कंपनी है दो धेले की सर्विस नहीं है, लाइनमैन बिना टाई के है वगैरह। एयरटेल की लाइने लैंडलाइन के लिए बिछाई गईं पर हम नहीं माने।

पिछले दिनों एक गड़बड़ हुई, बीस तारीख की बात है, रात को पोस्‍ट  लिखी की सुबह पब्लिश की जाएगी...सुबह देखा तो हो नहीं रही थी। गौर किया तो पाया कि फोन 'डैड' है। 'मौत की घंटी' होती है यहॉं 'घंटी की मौत' हो गई। खैर दो बातों का आसरा था, एक तो ये कि अब जिंदगी फोन पर उतनी नहीं टिकी नहीं होती मतलब लैंडलाइन पर। दोनों वयस्क सदस्यों यानि हम और वे, के पास अपना अपना मोबाइल हैं तो चल जाएगा काम - शाम तक तो ठीक हो ही जाना चाहिए (इधर एमटीएनएल की सेवा काफी सुधरी है, फाल्‍ट रिपेयर के मामले में तो जरूर ही...ऐसा हमें लगने लगा था) सो मोबाइल से शिकायत दर्ज कराई, शिकायत संख्‍या लिखी और इंतजार करने लगे। मिनट बीते, घंटे बीते होते होते दिन बीत गया। अगले दिन भी कोई घंटी नहीं बजी, इंटरनेट नहीं...अब दिक्‍कत होने लगी। तो निकले कि दरियाफ्त्‍ा करें कि पचड़ा क्‍या हे भई। अभी सोसाइटी के गेट पर ही थे कि गार्ड से समाचार मिला कि पूरे सेक्‍टर के फोन बंद हैं- केबल चोरी हो गई है। 

मुझे दो चोरियॉं बहुत ही हैरान करती रही है और ये दिल्‍ली के सरकारी तंत्र की मोस्‍ट अमेजिंग कटैगरी की चोरी हैं- एक तो है अस्‍पताल से 'एक्स-रे' चोरी होना दूसरा है जमीन के नीचे से टेलीफोन के केबल चोरी होना।STREET1 क्या बात है...चोर भी कमाल के- मरीज रपट का इंतजार कर रहा है और साहब उसका एक्सरे ही ले उड़े क्‍यों... बताते हैं कि रासायनिक क्रिया से उस फिल्‍म से कुछ काम की धातुण्‍ निकलती हैं। और दूसरा रहा कि और भी मजेदार जमीन को खोदकर केबल को काटकर चोरी करने वाला चोर। कंबख्‍त को पता है कि कहॉं खोदने से सीवर का पाइप नहीं केबल निकलेगी और इतनी देर तक एन सड़क पर अगले खुदाई करेंगे तार निकालेंगे ये भी सिर्फ उससे निकलने वाले तांबे औ रांगे जैसे पदार्थों के लिए। बड़े जुगाड़ु और मेहनती चोर हैं भई।  

यह समझने के लिए आपको कोई शरलॉक होम्‍स होना जरूरी नहीं हे कि ये दोनों ही चोरियॉं कर्मचारियों की मिली भगत से ही हो पाती हैं। इनसे चोर का फायदा तो बहुत कम ही होता है पर सरकार और आम व्‍यक्ति (मरीज या फोन उपभोक्‍ता की असुविधा के रूप में)  का नुक्‍सान बहुत अधिक होता है।

हम रोजाना कई कई बार पता कर रहे थे हर बार बताया गया कि दिन रात काम जारी है, 3-4 दिन लगेंगे। सिफी के परचे घर घर पहुँचने लगे थे, कि उनका इंटरनेट कनेक्शन लो, अंतत: हम खुद उस खुदी साईट पर पहुँचे कि भैया बताओ इरादा क्‍या है। 7-8 मजदूर कड़कड़ाती ठंड में लगे हुए थे, लाइनमैन व सुपरवाइजर भी थे मैंने लाइनमैन से पूछा तो उसने बिना लाब लपेट के बताया जी ये प्राइवेट कंपनी (एयरटेल) आ गई है उसकी ही कारस्‍तानी है। ठेकेदार को खरीद लिया है कि हमारे केबल काटे ताकि लोगों को गुस्‍सा आए वे फोन कपनी बदल लें। 'साब ये कंपनियॉं बरबाद करने पर उतारू हैं' वैसे इस नए बदलते केबल से निकल स्‍क्रेप को ये मजदूर वहीं एक कबाड़ी को बेच रहे थे।

उफ्फ अंतर्विरोध पीछा नहीं छोड़ते, घोषणा ये कि बाजार में प्रतियोगिता होती है जो खुद ही उपभोक्‍ता को लाभ देती है पर बाजार में कोई नैतिकता नहीं...। निजी क्षेत्र लाभ के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के विकारों को हथिया लेता है। हममें से राष्‍ट्रवाद का कीड़ा पूरी तरह से निकलने को तैयार नहीं इसलिए परेशानी सहकर भी सार्वजनिक क्षेत्र से सद्भाव मिटता नहीं। क्‍या करें...कया बनें कुछ्छे नहीं बूझता। और हॉं हम एक आरटीआई जरूरै फाइल करेंगे (एमटीएनएल सरकारी है वहीं इस तरह सूचना मांगी जा सकती है प्राइवेट में नहीं)

2 comments:

सुजाता said...

'मौत की घंटी' होती है यहॉं 'घंटी की मौत' हो गई
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बहुत खूब!!
बधाई , कि फोन ठीक हुआ ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

हमारे ब्रॉडबेंड का बेंड बजना भी अभी २४ घंटों में बन्द हुआ है। कल देखते हैं इस के पीछे भी कंपीटीशन था या कुछ और?