ऐसा कोई मुगालता नहीं है कि खुद को बुद्धिजीवी मानें। लेकिन पढ़ने पढ़ाने से ही रोटी खाते हैं तो उस टाईप के ही गिने जाएंगे। लेकिन अगर हम इस बिरादरी से हैं तो इसके किस खित्ते से। क्रांति-बिरांति में हमारी के गटरवीथियों में हम घोर भटकाव के दिनों में भी नहीं गए थे, इसलिए एक्टिविस्ट नहीं कहे जा सकते, कहलाना भी नहीं चाहते। शोध वगैरह में भी, भले ही नौकरी की मजबूरी में फील्डवर्क किया है पर मन कभी भी उस चीज में नहीं रमा जिसे एंपिरिकल रिसर्च कहते हैं। तो बस जा बचा वह थ्योरी का इलाका, उसी में जितना हो पाता है हाथ पांव मारते हैं नाक घुसाते हैं।
लेकिन थ्योरी की बड़ी दिक्कत यह है कि प्रेक्टिस से उसे बार बार चुनौती मिलती रहती है काउंटर थ्योरी से तो खैर मिलती ही है। जब हमने कहा कि मोहल्ला और भड़ास के रूप में कम्यूनिटी ब्लॉगों के क्षेत्रीय-घेटो बन जाने की आशंका है तब भी हमें हिन्द युग्म के रूप में एक सामुदायिक ब्लॉग दिख रहा था जो इस सिद्धांत का अतिक्रमण करता है। और फिर तरकश सम्मानों की घोषणा हुई, मोहिन्दर और रंजना (स्वीकार करूंगा कि मैंने भी उनकी पोस्टें यानि कविताएं नहीं पढ़ीं थीं) को स्वर्ण कलम सम्मान मिला और लोग हैरान हुए, परेशान हुए और बाद में तो बाकायदा बेईमानी के आरोप-प्रत्यारोप भी हुए। मास्टर होने के नाते जानते हैं कि नकल-बेईमानी परिणामों को आम तौर पर प्रभावित नहीं करती क्योंकि बेईमानियॉं म्यूच्युअल नेगेशन कर लेती हैं। तब कहीं कहीं से ये बात उठी कि भड़ास-मोहल्ला तो खैर जो हैं सो हैं ही पर समझें कि हिन्द-युग्म भी एक फिनामिना है।
हमें इस बात में एक थ्योरिटिकल चुनौती दिखी उसकी वजहें निम्न थीं-
- अंग्रेजी सहित तमाम बलॉग जगत में माना जाता हे कि कविता मूलत: ब्लॉग विधा नहीं है, कभी कभार हर ब्लॉगर एकाध कविता ठेलता है पर कविता मात्र के भरोसे ब्लॉगिंग नहीं की जा सकती।तब हिन्द युग्म कैसे एक इतने सफल ब्लॉग के रूप में खड़ा दिखाई देता है।
- हम कविता करते कम हों पर पढ़ते पढ़ाते तो हैं ही, इसलिए साफ है कि अधिकांश हिन्द युग्मी रचनाएं उच्चतम स्तर की न होकर...औसत भर होती हैं, कुछ कुछ वैसी जेसी कि हमें कॉलेज पत्रिकाओं के लिए अपने विद्यार्थियों से मिलती हैं। तब इतने लोगों को जोड़ पाने के पीछे क्या है।
- यह सही है कि हिन्दी ब्लॉगजगत का आकार बढ़ा है किंतु इस अनुपात में पाठक नहीं बढे हैं यानि अब सब, सबको नहीं पढ़ते इसलिए इन कवियों को पाठक कहॉं से मिल रहे हैं।
- इतने वोट आए कहॉं से- ध्यान दें कि भले ही संख्या कितनी भी बढ़ गई हो लेकिन अभी भी हिन्दी में उतने ब्लॉगर कतई नहीं हैं जितने कि पिछले साल तक अंग्रेजी में थे। और अगर पिछले साल के आंकड़ें देखें तो साफ होता है कि पिछले विजेता ने इंडीब्लॉगीज हिन्दी श्रेणी में इतने मत नहीं जीते थे जितने मोहिन्दरजी ने तरकश चुनाव में जीत लिए हैं, यही नहीं 280 मतों के साथ तो वे अंग्रेजी श्रेणी को टक्कर दे सकते हैं। मतलब ये कि अगर हिन्द युग्म ने ठान लिया और बाकी हिन्दी वालों का साथ मिला तो वे किसी हिन्द युग्मी को सारी भाषाओं का सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग बनाकर देसी पंडित के समकक्ष ला बैठाएंगे।
इस विचित्र स्थितियों को समझने के लिए जब हमने इस फिनामिना को छाना, इस प्रक्रम में पुस्तक मेले में कई बार हिन्द युग्म के मित्रों से मिला भी। शैलेशजी से भी बात हुई तो जो बात अब तक समझ आई है वह यह है कि हिन्दयुग्म इस स्तर पर है क्योंकि वे हिन्दी ब्लॉगजगत में बाकी सबसे अलग दृष्टिकोण से आगे बढ़ रहे हैं। हिन्द युग्म दरअसल एक हाइब्रिड ब्लॉग है, वह न केवल आनलाइन है वरन आफलाइन भी है, इस मायने में आन व आफ लाइन के बीच का सबसे सक्रिय सेतु ब्लॉग (ब्रिज ब्लॉग) है। वे सम्मेलनों, प्रशिक्षणों, पुरस्कार, पाठक, चित्रकारी कार्यशालाओं, आरकुट, ईमेल, फोन इन सभी माध्यमों का समग्र इस्तेमाल कर रहे हैं। जो अभी तक कोई और ब्लॉग नहीं कर रहा। थोड़ा बहुत मोहल्ला/भड़ास में दिखता है पर तमाम चीजों के बाद भी ये मॉडरेटर ब्लॉग बने हुए हैं जहॉं लिखने वाले, मैं वहॉं भी लिखता हूँ से ही संतोष पाते हैं जबकि हिन्द युग्म का हर कवि रैली के छोटे नेता की तरह अपने टैंपो में पाठक भर कर लाता है- एक सामान्य दिन में हिन्द युग्म के पाठकों की संख्या 1000 से ऊपर बताई जा रही है जो यकीनन उपलब्धि है। तो अब तक तो हमारा जो निष्कर्ष बनता है वह यह कि अभी हिन्दी ब्लॉगजगत एक पूरी तरह आनलाइन समुदाय नहीं है वरन यह आफलाइन का ही आनलाइन विस्तार भर है।
12 comments:
मसिजीवी ने 'प्रक्रिया' को खोजना शुरु किया। युग्म से भी इन्हीं दो लोगों को नुमाइन्दगी देने की प्रक्रिया पर आलोकपात जरूरी है। युग्म के प्रमुख कर्ता धर्ताओं के वैचारिक रुझान और ऑफ़लाइन कार्यक्रमों हेतु आर्थिक स्रोतों पर भी प्रकाश डालना आवश्यक है।
ओ फ़तेहपुर सीकरी के बुलंद दरवाज़ा,
कुछ पठवैया मेरे यहां भी पहुंचा जा,
क्या यूं है कि कविताएं अपनी कम हैं?
वहां पुरनकी लौकी सी मुरझायी हैं
तो अपने यहां खालिस आलू दम है!
दॊ पैसे की बात है कि आप जलते हैं युग्म से
युग्म तॊ हि्दी की नई आशा है। यह बढते ही रहेंगें।
तकनीकी रूप से हिन्दी युग्म काफी एडवांस हो सकता है, लेकिन बात तय है कि हिट्स की संख्या को मैन्यूप्लेट किया जा सकता है ये कोई बहुत मुश्किल नहीं। दूसरा इस बात पर कतई यकीन नहीं होता कि कविता पढ़ने वालों की इतनी बड़ी संख्या है। जबकि इतनी संख्या रेगुलर ब्लाग्स पढ़ने वालों की ही नहीं है।
बहुत सही और शानदार विश्लेषण।
हिन्द युग्म के पाठक आम ब्लागिंग के पाठक कतई नहीं है. कोई भी एग्रीगेटर इनको अधिक पाठक नहीं भेजता, ब्लागवाणी भी नहीं. फिर भी इनके पास किसी भी आम ब्लाग या ब्लाग समूह से अधिक पाठक आते हैं, विश्वास कीजिये, वाकई आते हैं. हिन्दी में ओरकुट का सबसे अच्छा प्रयोग केवल हिन्द युग्म ने किया है.
दूसरी बात, हिन्द युग्म मेरी निगाह में सर्वाधिक समर्पित समूह है. हिन्द युग्म के सदस्य उत्साह से लबालब भरे होते हैं. इन्होंने हिन्दी को अन्तर्जाल पर बढ़ाने के लिये नये सफल प्रयोग किये हैं. इनके पास ठेर सारी योजनायें हैं, और ये सभी की सभी योजनायें प्रेक्टीकल हैं और हिन्दी के भले के लिये हैं.
हां ये भी सच है कि इनकी रचनायें औसत ही होती हैं, कभी कभी औसत से भी कम लेकिन ये दुनियां औसत लोंगो की ही तो है!
आपने हिन्दयुग्म पर अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है. आफलाइन फिनामिना का मतलब मैं यह लगाता हूं कि हिन्द युग्म हिन्दी के लिये आफलाइन से आनलाइन पाठक भेज रहा है.
शुक्रिया मैथिलीजी मेरा आफ/ऑन लाइन सेतु का मतलब यही है- वे जिन्होंने आफलाइन दुनिया को ऑनलाइन से जोड़ा है (सेतु), मौलिक विचार की बात भी सही है।
@ सुनील, नहीं मित्र ईर्ष्या नहीं कुछ कुछ गर्व व आश्चर्य का मिलाजुला भाव है अपना और काफी कुछ प्रशंसा का भी।
भई खूब!
Sach suspash tareeke se kehne ka shukriya.
मसिजीवी जी आपका आश्चर्य स्वाभाविक है, और गर्व आपको यकीनन होना चाहिए, अगर युग्म सफल होता है तो यह तमाम ब्लॉग्गिंग जगत की भी सफलता है, जहाँ तक कविताओं के स्तर का सवाल है, विलक्षण से विलक्षण कलाकार भी अपनी सब रचनाएं एक स्तर की नहीं रख सकता, ये कवितेयें आज की बात कहती है, आज के लोगों से और लोग इनसे खुद को जुदा हुआ पाते हैं तो मैं मानता हूँ की कविता अपने उद्देश्य में सफल है, कवि बेशक एक अदना सा प्राणी होता है जिसके पास संवेदना के सिवा कुछ नहीं होता, पर उसकी सोच, उसका नजरिया, समाज को एक नयी दिशा देती है, कवितायेँ जीवन को बदलने की ताक़त रखती है, उसका कवि से अलग भी एक अस्तित्व होता है, मेरे शब्द सहेज लीजियेगा, आने वाले समय में गौरव सोलंकी, मनीष वंदेमातरम, निखिल आनंद गिरी, राजीव रंजन प्रसाद, और अवनीश गौतम जैसे युग्म के कवि, नयी इबारतें लिखेंगे और पूरे युग्म परिवारको उन पर नाज़ होगा, शेष ब्लॉग्गिंग जगत का मैं कुछ कह नहीं सकता, क्योंकि हम एक दूसरे की टांग खीचने में अधिक रूचि दिखाते हैं, बजे मिल कर आगे बढ़ने के.... वो मकडी वाली कहानी तो सुनी होगी न....
मसिजीवी जी,
आप इस फिनोमिना को कुछ हद तक डिकोड करने में सफल हुए हैं, लेकिन मैं कहूँगा कि यह शायद १०% भी नहीं है। ऑफलाइन गतिविधियाँ तो मुश्किल से ६ महीने पुरानी हैं, पाठक संख्या में उछाल तो ऑनलाइन औज़ारों के ही कमाल हैं।
अफलातून जी ने जिन बातों पर आपका ध्यान खींचना चाहा है। यदि आप उसे भी डिकोड करेंगे तो कुछ और समझ सकेंगे।
मैं कविता के स्तर पर आपकी टिप्पणी से इत्तेफाक नहीं रखता। एक विडम्बना यह भी रही है कि साहित्य को आप तभी साहित्य मानते हैं जब उसपर स्थापित पत्रिकाओं का हॉलमार्क लग जाता है। मैं एक बात का आपको विश्वास दिलाना चाहूँगा कि कुछ दिनों बात यही शब्दशिल्पी हिन्द-युग्म पर प्रकाशित होने में गर्व महसूस करेंगे।
आमलोगों से जुड़ाव होगा तभी फैलाव की संभावना रहेगी, दुनिया में तथाकथित बुद्धिजीवियों ने अपने-अपने क्षेत्रों का जितना नुकसान किया है, शायद उतना किसी ने नहीं किया।
मुझे लगता है कि आप डिकोडिंग का अगला अंक जल्द ही लेकर आयेंगे। अभी तो आपने मात्र मोहिन्दर और रंजना की जीत पर अपनी थ्योरी दी है।
http://www.hindyugm.com
मसिजीवी जी युग्म परिवार पर आपका विवेचन एक ईमानदार विवेचना है, जो अपने स्तर पर काफी सफल है। लेकिन उसकी अपनी सीमाएं हैं। क्योंकि मेरी समझ से किसी भी समूह में शामिल हुए बिना उसकी संस्क्रति को नहीं समझा जा सकता है। यही बात "युग्म" पर भी लागू होती है।
आपकी पोस्ट पर पाठकगणों ने अपनी-अपनी समझ से प्रतिक्रयाएं दी हैं, जोकि स्वाभाविक है। पर मैं सजीव जी टिप्पणी " कविता अपने उद्देश्य में सफल है, कवि बेशक एक अदना सा प्राणी होता है जिसके पास संवेदना के सिवा कुछ नहीं होता, पर उसकी सोच, उसका नजरिया, समाज को एक नयी दिशा देती है, कवितायेँ जीवन को बदलने की ताक़त रखती है, उसका कवि से अलग भी एक अस्तित्व होता है। ...शेष ब्लॉग्गिंग जगत का मैं कुछ कह नहीं सकता, क्योंकि हम एक दूसरे की टांग खीचने में अधिक रूचि दिखाते हैं, बजे मिल कर आगे बढ़ने के.... " से कतई सहमत नहीं हूं। क्योंकि कविता से मेरा जुडाव ज्यादा नहीं तो फिरभी 18-20 सालों का है। और युग्म से भी मैं पिछले लगभग एक साल से तो जुडा ही हुआ हूं। मुझे ऐसा लगता है कि यह टिप्पणी अति उत्साह का परिणाम है। इससे बचा जाना चाहिए।
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