देसी पंडित ने राह दिखाई और जा गिरे इस बेचारे के विलाप पोस्ट पर।
यह पीएच. डी (हॉं भई लिखना सीखना चाहो तो सीख लो, Ph.D. ऐसे ही लिखा जाता है,Ph , फिलासफी के भी लिए और D डॉक्टरेट के लिए, पी. एच. डी. लिखना गलत है) हॉं तो यह भला बला क्या है- 2x3x7 का तो कहना रहा कि कभी यह वह खतरनाक प्राणी प्रतीत होता है कि सावधान !!!! सावधान दो पीएच.डी. सड़क पर छुट्टे घूम रहे हैं...... यह विस्फोटक हो सकता है। अपनी सुरक्षा का ध्यान रखें। या फिर कभी कभी यह एक भिन्न प्रजाति के समान लगती है तार्किकता से परे......अपने नितांत निजी संसार में लीन। इस बेचारे पीएच. डी. के मारे ने और भी कई पीड़ाऍं साझी की मसलन यह कि पता ही नहीं चलता कि हम इस डिग्री के पीछे हैं या ये डिग्री हमारे पीछे है।
और एक बात कहूँ ।। सच है बीडू.....। इस डिग्री की माया अजीब है। इस दुनिया में दो ही तरह के लोग होते हैं एक तो वे जो पीएच. डी. होते हैं और वे जो मनुष्य होते हैं। और क्या कहूँ हमें भी वे दिन खूब याद आते हैं जब हम मनुष्य थे.......
6 comments:
बिल्कुल यही दर्द मेरा भी है जिसे दुनिया से छिपाकर रखा हुआ था आज आपने कह डाला ...गजब कर दिया..
खुदा रहम करे इन पीएच.डी करने वालों पर, आमीन !
ऐसे तो न बोलो...
हाँ गुरू हम भी पीएच. डी की ही राह पर हैं।
हमने तो की नहीं, तो कुछ कह सकने में असमर्थ हैं. :)
चलो (राहत की साँस ) हम तो मनुष्य ही हैं :-)
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