श्रीश द्वारा अपना मत लिखने पर अविनाश की टिप्पणी है कि ये बकवास है, मुझे ऐसा नहीं लगता- मुझे इस मुद्दे पर आप लोगों से संवाद की उतनी ही जरूरत लगती है जितनी राहुल, संजय या अविनाश से।
तकनीकी तौर पर आपकी बातें सही हैं- एक तो यह कि आपको हटाए गए ब्लॉग की सामग्री आपत्तिजनक लगी (मुझे भी लगी), दूसरा यह कि नारद को यह अधिकार है कि वह किसे ऐग्रीगेट करेगा किसे नहीं- इन दोनों सहमतियों के बावजूद हम लगातार इस कार्रवाई पर पुनर्विचार का अनुरोध कर रहे हैं नारद से, आपसे, संजय से और सबसे...क्यों
इसलिए नहीं कि हम सभी आतंकवादी, नक्सलवादी, नस्लवादी, नस्ल, गैंग वगैरह हैं वरन ठीक इसके विपरीत कारणों से।
पहले तो वजह वही जो आपने (श्रीश ने) कही नारद सिर्फ एक एग्रीगेटर नहीं है वह व्यवसाय नहीं है...वह प्रतीक अधिक है तकनीकी चीज बाद में है इसलिए इस प्रतीक में हर मत की साझीदारी जरूरी है- मेरी भी और मुझसे विरोधी की भी इसीलिए मेरे लिए ऐसे नारद की कल्पना त्रासद है जिसमें राहुल को हटा दिया जाए, सागर खुद हट जाएं, धुरविरोधी, नसीर, इरफान, मसिजीवी, अफलातून, अविनाश आदि को उकसाया जाए कि वे खुद हटने की मेल भेजें और जैसा आपने कहा कि बहुत से इसलिए चुप हो जाएं कि उन्हें डर है कि वे अपने मन की बात कहेंगे तो लोग उनपर टूट पड़ेंगे। और फिर इन विवश चुप्पियों की व्याख्या समर्थन के रूप में की जाएगी।
यानि यदि आप भी मेरी तरह नारद को एक प्रतीक मानते हैं जिसमें इतना परिश्रम और स्वप्नों का निवेश हुआ है तो जरूरी है कि आप इसे सेग्रीगेशन का औजार बनने से आहत महसूस करें।
दूसरी बात इससे ज्यादा जरूरी है जैसा श्रीश ने कहा -
‘इन चिट्ठाकारों के इस प्रकार के लेखन का एक अन्य उद्देश्य है - अपनी विचारधारा का प्रचार।इन चिट्ठाकारों में से बहुसंख्यक वामपंथी/माओवादी/नक्सली विचारधारा के हैं। अब वामपंथ तक तो सही है लेकिन नक्सली आदि खतरनाक विचारधारा का ये लोग खुलेआम समर्थन करते हैं। अब सभ्य तरीके से अपनी विचारधारा के बारे में लिखने की बजाय ये इसके लिए हिंसक किस्म के लेखन का सहारा ले रहे हैं। जो इनसे सहमत होता है ठीक वरना उसके खिलाफ ये मोर्चा खोल देते हैं‘मुझे ये धारणाएं घातक प्रतीत होती हैं। अभी हाल में किसी ने संघ के पदाधिकारी का गुणगान करती पोस्ट लिखी थी, ओक की ‘इतिहास दृष्टि’ वाली पोस्ट भी आई- आने दो वैसे ही – ‘आज नक्सली आए हैं कल उल्फा, बोडो और काश्मीरी आतंकवादी भी नारद पर आ धमकेंगे, वे भी 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' की बात करेंगे, तुम्हें भय होगा श्रीश, इस दिन का मुझे तो इंतजार है- अगर इतने भिन्न मत रखने वाले और इतने अतिवादी मत रखने वाले हिंदी में, चिट्ठाकारी में, नारद में, संवाद में आस्था रखने लगेंगे तो फिर और क्या चाहिए। मुझे नहीं पता कि इन सबके विषय में आप कितना जानते व पढ़तें हैं पर मैं तो इनके विषय में और जानना चाहूँगा। और फिर हम सब जानते हैं कि राज्य इन सभी संस्थाओं की तुलना में अधिक क्रूर, अनैतिक व अतिवादी है- पर हम यह भी जानते हैं कि ज्ञानदत्त, अनूप आदि उसी सरकार के ही अधिकारी है अनूप तो इसी आतताई राज्य के गोला बारूद बनाते हैं जो किन किन के खिलाफ इस्तेमाल होता है उसपर उनका कोई वश नहीं। पर क्या इससे वे सरकार की तमाम ज्यादतियों में शामिल हो गए। इसलिए इस आधार पर समर्थन विरोध करना अनुचित है कि कार्रवाई किसके खिलाफ हुई है, वह संघी है कि नक्सली। मैं, आप या देश ही से दूर बैठे संचालक कैसे इसकी चौकीदारी करेंगे और क्यों करेंगे और जब करने लगेंगे तो क्यों उनका विरोध नहीं किया जाना चाहिए।
किया जाना चाहिए इसीलिए किया जा रहा है। और हॉं नारद संचालक मंडल के सदस्यों ने इतना परिश्रम किया है इसे खड़ा किया है कम से कम वे उस खीजे बच्चे की तरह व्यवहार न ही करें जो अपने बनाए घरोंदे पर पैर मारकर तोड़ देजा है और नाचता है कि मेरा था तोड़ दिया...तुझे क्या। लोग अपने चिट्ठों पर क्या लिख रहे हैं जाने दें किंतु नारद की औपचारिक पोस्टों तक में कहा-
’इतनी बड़ी पोस्ट लिखने से अच्छा है, दो लाइनों मे sunonarad at gmail dot com पर लिख भेजें कि हमारा फलां फलां ब्लॉग नारद से हटा दिया जाए। विश्वास कीजिए, आपका भी समय बचेगा, पाठकों का भी और हमारा भी। ‘आपने इसके समर्थन में बड़ी पोस्ट लिखी, अनूपजी ने पोस्ट लिखी है और अगर मैं कहूँ कि लंबी पोस्ट है तो मुझसा बौढ़म और कौन होगा- अरे फुरसतिया ने लिखी है लंबी ही होगी :) मैं भी लिख रहा हूँ, औरों ने भी लिखी पर अब जरा कल्पना करें कि अनूप या आप या जितेंद्र से नारद की ओर से कहा जाए कि अविनाश का लिखा पसंद नहीं तो इतनी लंबी पोस्ट न बघारें चुपचाप एक मेल सुनो नारद पर भेज दें और हट जाएं। मुझे मालूम है कि एक फूहड़ कल्पना है कि भई ‘मालिक’ लोगों से कोई ऐसा कैसे कह सकता है- पर इसका मतलब ये भी है कि अविनाश, राहुल को इसलिए कहा गया क्योंकि वे ‘मालिकों’ को पसंद नहीं थे। अनूपजी पर जो भलमनसाहत का ‘आरोप’ लगाया गया है उसे सच सिद्ध करते हुए उन्होंने माना कि भई जितेंद्र पेड़ आदमी हैं उन्हें प्रवक्ताई नहीं आती है इसलिए उसपर ध्यान न दें, तो क्षमा करें या तो पेड़ को बगीचे में खड़ा करें (यूँ भी आपके अहाते में इसकी खूब गुंजाईश है :)) और प्रवक्ताई खुद संभालें या किसी गैर-पेड़ को दे दें, लेकिन यदि भाषा का मसला इतना मामूली है कि खुद नारद में तो इसे पेड़ों को दे दिया जाता है लेकिन दूसरों की भाषा पर फरमान जारी होते हैं तो शायद बहुत ठीक नहीं।
खैर ऊपर अंत के हिस्से की कुछ बातें आवेश में लिखी गई हैं इसलिए वर्तनी और शिष्टाचार की उसमें भूलें हैं। क्षमा।
11 comments:
आपने वे सारे बातें कह दी जो हम एक पोस्ट में लिखना चाहते थे श्रीश के जवाब में.. अब उसकी ज़रूरत नहीं रही.. आपके इस वक्तव्य से हमारी लगभग पूर्ण सहमति है..
हाशिये पर पड़े वो लोग जिन्हे अपनी बात सुनवाने के लिये बन्दूक और हिंसा का सहारा लेना पड़ता है.. उनके लिये दरवाज़े बंद करना.. और उसकी वकालत करना अगर किसी मंच की नीति है.. तो यह बेहद चिंताजनक है.. मैं जानना चाहता हूँ कि श्रीश के विचार क्या नारद की नीति हैं?
आपके प्रश्नों से सहमति है । लेकिन निवेदन है कि अपने विचारों के लिए 'नारद ' पर रह कर चर्चा चलाइए।राहुलजी का लिखा एक गीत 'भागो मत ! दुनिया को बदलो ' भूल कर यदि कुछ अच्छे चिट्ठाकार इस मंच को छोड़ने का फैसला लेते हैं तो विचारहीन धारा को मजबूती मिलेगी।
जी अफलातून जी, निश्चिंत रहें ये सलाह तो मैं स्वयं नसीर, सागर व अन्य को देता रहा हूँ- मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं है।
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मेरे अच्छा चिट्ठाकार होने के विषय में आपको गुमराह किया गया है, इन अफवाहों पर कान न दें। :)
मैं अपनी बात कह चुका हूं। अब नया कुछ नहीं कहना है। नारद के प्रवक्ता की हैसियत अख्खड़ भाषा में बात करना और एक बात है और किसी के खिलाफ़ व्यक्तिगत रूप से नाम लेकर बेहूदी भाषा में बात करना दूसरी बात है।
मित्र मसिजीवी यही तो कारण है कि हम आपके लेखन के कायल हैं। अगर सब लोग आपकी तरह शिष्ट भाषा में चर्चा करें तो फिर काहे तो विवाद हो और काहे किसी को हटाना पड़े। आपकी सज्जनता पर विश्वास है तभी यहाँ टिप्पणी कर रहा हूँ।
श्रीश द्वारा अपना मत लिखने पर अविनाश की टिप्पणी है कि ये बकवास है, मुझे ऐसा नहीं लगता- मुझे इस मुद्दे पर आप लोगों से संवाद की उतनी ही जरूरत लगती है जितनी राहुल, संजय या अविनाश से।
यही तो कमी है उन साथियों में और र्ये बात मैंने वहाँ कही भी है कि उनकी नीति अमेरिका की तरह है कि या तो हमारी तरह सोचो, हमारी तरह बोलो वरना आप बकवास करते हैं। क्या यह भी एक प्रकार की तानाशाही ही नहीं है?
इसलिए नहीं कि हम सभी आतंकवादी, नक्सलवादी, नस्लवादी, नस्ल, गैंग वगैरह हैं वरन ठीक इसके विपरीत कारणों से।
मसिजीवी जी आप एक अन्य ब्लॉग पर भी इस तरह की बात कह चुके हैं, आपको जबरदस्ती खुद को इस टोली में शामिल कर रहे हैं। आप अच्छी तरह जानते हैं कि ये शब्द आपके लिए नहीं कहे गए हैं। आप के लिए ही नहीं बल्कि ये किसी भी सज्जन व्यक्ति के लिए भी नहीं कहे गए हैं। और हाँ मेरा लिखा फिर से पढ़ें मैंने आतंकवादी और नस्ल वगैरह किसी को नहीं कहा है, हाँ आशंका जताई थी कि आगे इस तरह के लोग आ सकते हैं । इंग्लिश ब्लॉगजगत में इस तरह के लोग मौजूद हैं इसी आधार पर मैंने ऐसी संभावना जताई थी। प्रिय मित्र मैं चाहे किसी भी तरह से सोचूं लेकिन आधारहीन बात मैं कभी नहीं कहता।
आप नीतिगत तौर पर मुझसे असहमत हो सकते हैं, लेकिन आप मानेंगे कि मेरे लेख में कोई असत्य बात नहीं थी।
कोई मेरे बारे में क्या सोचता है मुझे रती भर भी परवाह नहीं, सिवाह उन लोगों के जिनकी ईमानदारी और सज्जनता पर मुझे विश्वास है। इसीलिए आपके ब्लॉग पर अपनी बात रख रहा हूँ
अंत में फिर से कहूँगा कि अगर सब लोग आपकी तरह संयत, स्वस्थ, सभ्य भाषा में बहस करें तो किसे परहेज है, परहेज तो गाली गलौच और कुतर्कों से है। अब आपने मेरे लेख का तर्कों से जवाब दिया, न कि मुझे गरिया कर। इसी तरह की तथ्यात्मक और तर्कपूर्ण बहस हो तो किसे उसमें आनंद न आए।
"अनूप तो इसी आतताई राज्य के गोला बारूद बनाते हैं जो किन किन के खिलाफ इस्तेमाल होता है उसपर उनका कोई वश नहीं। पर क्या इससे वे सरकार की तमाम ज्यादतियों में शामिल हो गए। "
अरे बेफ़कूफ़ आदमी जो कहना है अनूप को कह,तू किसे आताताई कह रहा है,उत्तर प्रदेश को या सेना को,जो तू यहा बैठ कर ये बकवास कर रह है,ये सेना के दम पर है.ये खोल बनाते है समझ गया,तू पहले ढंग से पढ के आ या बस रवीश के साथ खडे होने के लिये सेना को गालिया देगा,जरा होश मे रह,ये सहन नही होगी जयचंद,जहा खायेगा वही छेद करने वाले नामाकूल.
बिल्कुल सही कहा आपने। कुछ लोग नारद को अपनी बपौती समझ क्यों असहनशील हो जाते हैं? उन्हें कम से कम नारद की भूमिका के प्रति सचेत होना चाहिए। आतंकवादी आ जाएंगे तो क्या हो जाएगा? क्या आतंकवाद ब्लाग की देन है? आने दीजिए हम उनके विचारों से भी टकरायेंगे। क्या पुलिस सेना आतंकवाद का मुकाबला नहीं करती। क्या आम लोग नहीं करते। ब्लाग पर आ जाएंगे तो क्या हो जाएगा? उनके लिखे का प्रतिरोध करेंगे देखेंगे कि आतंकवाद लिखता कैसे है? क्यों दिलचस्प नहीं रहेगा? आखिर आतंकवाद को खत्म करने का एक कारकर तरीका तो है ही- बातचीत। बड़ी बड़ी सरकारें करती हैं। अगर कोई आतंकवादी ब्लाग पर हम सबसे बात करना चाहता है। तो उसे यह मौका मिलना चाहिए। हम सब मिलकर उसे बदल देंगे। आतंकवादी को आप ब्लाग से बाहर कर देंगे लेकिन जहां से वह काम करता है वहां से तो नहीं कर पाएंगे। इसलिए मत डरें। यही तो हम कह रहे हैं अभिव्यक्ति से न डरें। हममें से कोई नाबालिग नहीं है जो आतंकवाद के लिखे ब्लाग से प्रभावित होकर हथियार उठा लेगा। जैसा कुछ लोग कर रहे हैं नारद के साथ खड़े होने का नाटक कर।
मुझे लगता है कि नारद को मूल्यांकन करना चाहिए। हमेशा एक ही तरह के लोग नारद के पक्ष में क्यों खड़े होते हैं? क्या नारद हमारा नहीं है? या हम नारद के नहीं हैं?
ं
ये देखो ऐसे करते हैं तुम्हारे नाम से टिप्पणी! :)
हमे तो लगता है श्रीश जी को भाषा से कम ओर नई विचारधारा से ज्यादा डर है।
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