अगर आपको लगता है कि ये ऊपर लिखा शीर्षक कोई ऐसा संवाद है जो केवल किसी नाटक में खलनायक ने किसी को बोला होगा तो जरा थमें। इन शब्दों में तो नहीं पर दिल्ली पुलिस ने ये शिकायत उत्तर-पूर्व की लड़कियों से की है। जी वही जिन्हें दिल्ली के मुखर्जी नगर व कैंप इलाके में बसे दिल्ली वासी जिनमें बिहार उत्तर प्रदेश के छात्र-छात्राएं भी शामिल हैं 'चिंकीज' के नाम से पुकारते हैं। जो पता नहीं क्यों दुपट्टे वाले सूट नही पहनतीं, हमेशा ऐसे कम वाले कपड़े पहनती हैं कि बेचारे भोले-भाले घरबारी मर्दों को उनका गाहे बगाहे बलात्कार करना पड़ता है। पता नहीं से ऐसा क्यों करती हैं- दिल्ली पुलिस भी यह समझ नहीं पा रही है और उसने बाकायदा एक पुस्तिका निकालकर अब इन 'चिंकीज' को ये सलाह दे डाली है कि वे अपने आप को सुधार लें।
सभी ब्लॉगर दिल्ली में नहीं रहते इसलिए थोड़ा पृष्ठभूमि स्पष्ट कर दी जाए। दिल्ली भारत का एक शहर है और इसकी राजधानी है। इस राजधानी वाले भारतवर्ष नामक देश में मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, असम, त्रिपुरा, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर जैसे राज्य हैं जिनकी संस्कृति के सभी तत्व जरूरी नहीं कि दिल्ली जैसे हों- उनका पहनावा, भोजन व दूसरी बातें कुछ अलग हैं, हो सकती हैं। तो इस राजधानी दिल्ली में जैसा कि हर शहर में होती है, एक पुलिस है जिसने अनुभव किया कि यहॉं पर इन क्षेत्रों के से शिक्षा व कामकाज के लिए दिल्ली आने वाली स्त्रियों से बलात्कार व छेड़छाड़ की घटनाएं बढ़ी हैं इसलिए दिल्ली पुलिस ने इन महिलाओं के लिए सुरक्षा की सलाहों वाली एक पुस्तिका जारी की है।
यहॉं तक तो सब ठीक ठाक है पर गड़बड़ खुद इस पुस्तिका की सामग्री में है। पुस्तिका एक तरह से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की जिम्मेदारी एक तरह से खुद इन महिलाओं पर ही डाल देती है। मसलन वह सलाह देती है कि आप ऐसे नहीं वैसे कपड़े पहनें- ये एक पुराना जुमला है कि लड़कियों के इस तरह के कपड़े पहनने की वजह से उनके खिलाफ अपराध होते हैं- सभी जानते हैं कि ये अपराधी को बचाना और शिकार को अपराधी ठहराना है। दिल्ली में पूरी तरह ढंकी महिलाओं, बच्चियों, बेटियों, पड़ोसिनों से बलात्कार किया जाता रहा है।
यही नहीं पुलिस ये भी सलाह देती है कि आप अपनी रसोई में बैंबू शूट्स, अखुनी जैसे पकवान न पकाएं क्योंकि इसकी गंध से लोग परेशान होकर आपके खिलाफ अपराध कर सकते हैं। यह सलाह सिर्फ इतना बताती है कि खाकी वरदी पहनने भर से यह तय नहीं हो जाता कि आप संवेदनशील हो जाएंगे।
वस्तुत: यह केवल पुलिसिया समझ में संवेदनशीलता का अभाव ही नहीं है यह मुख्यधारा संस्कृति की अन्य संस्कृतियों के प्रति घोर अवहेलना भी है। गनीमत है कि पुलिस ने यह सलाह नहीं दी कि अपराध होने पर भी थाने जाने से बचें कहीं वहीं किसी पुलिसवाले को आपका बलात्कार न करना 'पड़ जाए'
हिंदू में कल्पना शर्मा ने दिल्ली पुलिस की इस पुस्तिका पर अपनी टिप्पणी देते हुए व्यंग्य में कुछ काम बताए हैं जो इन 'चिंकीज' को करने से बचना चाहिए-
- रात में अकेले बाहर मत जाओ- इससे पुरुषों को बढ़ावा मिलता है
- किसी भी समय अकेले बाहर मत जाओं - कुछ पुरुषों को किसी भी हालत में बढ़ावा मिलता है
- घर पर मत रहो - घुसपैठिए या रिश्तेदार बलात्कारी हो सकते हैं
- कम कपड़ों में बाहर मत जाओ- इससे पुरुषों को बढ़ावा मिलता है
- किसी कपड़े में बाहर मत जाओ- किसी कपड़े से पुरुषों को बढ़ावा मिलता है
- बचपन से बचें- कुछ बलात्कारी बच्चियों को देखते ही उत्तेजित हो जाते हैं
- वृद्धवस्था से बचें- कुछ बलात्कारी ज्यादा उम्र की औरतें अधिक पसंद करते हैं
- पिता, दादा, अंकल व भाइयों से बचें- ये युवा स्त्रियों के बलात्कार में अधिक लिप्त पाए गए रिश्तेदार हैं
- पड़ोस के बिना रहें- वे अक्सर बलात्कारी पाए जाते हैं
- विवाह न करें- विवाह में किया गया बलात्कार वैध है
- बचने का सबसे सही रास्ता है - तुम गायब हो जाओं
8 comments:
Nice advices from Kalpna Sharma. Delhi Police with you for you, NEVER
वाह कमाल के सुझाव हैं दिल्ली पुलिस के.
कहीं आगे से ऐसा न हो कि पुलिस बलात्कारी के बजाय इन चिंकीज पर ही कम कपड़े पहनने का अपराध दर्ज करने लगे.
खेद सहित स्पष्ट कर दूँ कि उत्तर-पूर्व के भारतीयों के लिए 'चिंकीज' जैसे शब्द सम्मानसूचक नहीं हैं- मैंने इनका प्रयोग कोटेशन चिन्हों के साथ केवल व्याप्त अलगाव पर व्यंग्य के लिए किया है- इसे मुझे स्वीकार्य अभिव्यक्ति न माना जाए
दिल्ली पुलिस का ये कहना दोस्ताना फिल्म से प्रेरित लगता है। जिसमे अमिताभ जीनत अमान से यही कहते है की अगर आप ऐसे कम कपडे पहनेगी तो लोग तो आप को तंग करेंगे ही।
वह री दिल्ली पुलिस।
कल्पना शर्मा जी का हर स्टेटमेंट अपने आप में संपूर्ण मारक है और फिर पंच लाईन...अंत में. क्या कसा हुआ व्यंग्य है. आभार यहाँ तक लाने का.
सही व्यंग्य किया है कल्पना शर्मा ने। दिल्ली पुलिस अपना फटा छुपाने के लिए दूसरे के फटे की ओर इशारा कर रही है और कुछ नहीं!!
हां बिलकुल सही कहा कल्पना ने -हमें गायब हो जाना चाहिये क्योन्कि अपराधी कहीं भी ,कभी भी ,किसी उम्र,किसी हाल ,किसी वस्त्र मे॓ आपसे उत्तेजित हो सकता है ।
बहुत खूब ! दिल्ली पुलिस को इतनी सदबुद्धि कहां से आती है ।वैसे इतना तय हो गया है कि पुलिस माने-मर्द !
वाह दिल्ली पुलिस आपके लिए आपके साथ सदैव!
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