भूगोल मेरा अपना विषय कभी नहीं था पर मानचित्र पढ़ना मेरा ऐसा शौक है जिसका कारण मैं खुद ही अच्छे से नहीं समझ पाता। बचपन में घर में एक एटलस होती थी शायद ब्रजवासी एटलस या ऐसा ही कुछ नाम था, बहुत अच्छी शायद नही ही रही होगी पर काली पक्की जिल्द की एटलस हमारी प्रिय किताबों में से थी। घंटों हम भाई-बहन इसमें शहर-नगरों के नाम खोजने का खेल खेलते थे। एटलस में मानचित्रों के रंग, रेखाएं कितनी सारी सूचनाएं समेटे होते हैं इसे जानना सदैव ही प्रिय होता था। एक सेमेस्टर तक सिविल इंजीनियरिंग के फंडामेंटल्स पढे़ थे, मानचित्र बनाना तो इतने से समय में क्या आता पर इतना जरूर पता लग गया कि इस छोटे से चित्र को बनाने में कार्टोग्राफरों को कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। आज भी जब हम कहीं बाहर घूमने का कार्यक्रम बनाते हैं तो जनपथ के सर्वे आफ इंडिया से उस इलाके के नक्शे ,खरीदना एक जरूरी काम लगता है- ये बात अलग है कि अक्सर 10-12 साल पुराने नकशे हाथ लगते हैं जो जमीनी हालात से काफी अलग होते हैं :( । जो भी हो नक्शे आज भी हाथ लगते हैं तो रम के पढ़ता हूँ।
गूगल अर्थ सर्वे आफ इंडिया से अद्यतन तस्वीरें देता है- विकी मैपिया जिस पर हाल में कई सवाल उठाए गए हैं से भी नक्शों का आनंद मिलता है और जब भी वक्त मिलता है इस पर खूब लुटाते हैं। खासकर स्थानीय नक्शों या उपग्रह चित्रों पर। मसलन दिल्ली विश्वविद्यालय की आर्ट्स फैकल्टी का यह चित्र देखें
या फिर यह चित्र जो जेएनयू के संस्कृत अध्ययन विभाग का है तथा इसके स्वास्तिक चिन्ह के आकार में होने के कारण प्रगतिशीलता से जूएनयू का रिश्ता थोड़ा दरकता है, कुछ लोगों के लिए। रिवर तो एक बार बहुत दुखी हुईं थीं इस कारण।
आजकल हम विकीमैपिया में जो सूचनाएं लोग जोड़ते हैं, उन्हें पढ़ पढ़ मजे लेते हैं- कोई अपनी गर्लफ्रेंड के घर पर निशान लगाता है ता कोई अपने पंसारी पर। मानचित्र व भौगोलिक छविचित्र शायद इसलिए आकर्षित करते हैं क्योंकि स्मृतियॉं स्पेस के सहारे ही स्थाई हो पाती हैं। अब देखिए जब हम अनूपजी के पास कानपुर गए तो पते को विकीमैपिया पर देखकर गए थे- उनका गुलमोहर, केंद्रीय विद्यालय और भी बहुत कुछ जो आप उनकी पोस्टों में पढ़ते रहे हैं इसमें ही कहीं न कहीं हैं- :)
4 comments:
ब्रजवासी एटलस.. :) याद आ गए स्कूली दिन। गूगल अर्थ फ़िलहाल स्थिर चित्र देता है. ऐसा भी कोई दिन आएगा जब नेट पर बैठने वाला सेटेलाइट के ज़रिए चलती-फिरती दुनिया को गूगलाते हुए देखेगा।
काग़ज़ पर खिंची हुई लकीरों ने हज़ारों लोगों की जान ली है। ये युद्ध की बात नहीं बल्कि आपको आश्चर्य होगा कि Trigonometric Survey के दौरान दुर्गम स्थलों पर नाप-जोख के लिए बहुतों ने अपनी जान गवां दी थी। उन दिनों जॉर्ज एवरेस्ट की अगुवाई में भारत का पहला मानक नक्शा आकार ले रहा था। यह पूरी रोचक गाथा कैसे शुरू हुई और कैसे आगे बढ़ी..यह जल्द ही मैं प्रकाशित करूंगा।
हां है तो सही कहीं न कहीं हमारा घर इनमें।
एटलस देखना मेरा भी प्रिय शगल रहा है। घंटो नक़्शे की आड़ी तिरछी रेखाएं देखने में बचपन से ही बेहद लुत्फ़ आता रहा है। गूगल के मैप्स का प्रयोग तो हम लोग आजकल राँची में बैठे बैठे अपने संयंत्रों का बेसिक लेआउट देखने में भी करने लगे हैं।
हम तो बचपन से आज तक एटलस पर ही विश्व भ्रमण कर रहे हैं। बहुत बढ़िया पोस्ट है।
अब तो हमारा बेटा भी एटलस सैलानी बन चुका है। कुछ अर्सा पहले ही उसे ब्रिटेनिका का एटलस ले कर दिया है।
शुक्रिया...
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