हिन्दी कलमघसीट का चिट्ठा
कहना चाहता हूँ बहुत कुछ है भी कहने को किन्तु प्रतीक आकर पकड़ लेते हैं बात का गिरेबान भाषा तौलकर घोंपती है चाक़ू बात चाक चाक हो तड़पती है भीड़ बजाती है ताली मुशायरा देता है दाद हर शब्द मंतव्य का हत्यारा है।
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