चिंतन उपाध्याय नाम के एक चित्रकार को हाल में अपनी पत्नी और उसके वकील की नृशंस हत्या के लिए गिरफ्तार किया गया। तफ्तीश बताती है कि उसकी अपनी पत्नी से घृणा इतनी अधिक थी कि उसने अपनी दीवार पर एक पेंटिग बना रखी थी जिसमें उसकी पत्नी को कुत्तों के साथ संभोगरत दिखाया था जांहिर है एक कलाकार जिसके संवेदनशील होने की अपेक्षा अन्यों की तुलना में अधिक है का यह कृत्य झिंझोड़ता है। अरविंद शेष ने इस पर लंबी टिप्पणी अपने वॉल पर लिखी है-
व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए ऐसे व्यक्ति का व्यक्ति छोडि़ए कलाकार, नेता, एक्टिविस्ट के रूप में सम्मान करना कठिन है जो इतना अपराधिक, घृणित व मर्दवादी हो। किंतु ये मेरी अपनी व्यक्तिगत सीमा भी हो सकती है।
इस 'महान' कलाकार ने दो कुत्तों के साथ अपनी पत्नी की सेक्स करते हुए पेंटिंग घर की दीवारों पर बनाई। अब तक सामने आ सकी खबर के हिसाब से पत्नी के खिलाफ नफरत करते हुए वह जितना घटिया स्तर पर गिर सकता था, गिरा। और इससे भी आगे बढ़ा तो पत्नी और उसके वकील की हत्या करा दी।यह 'महान' कलाकार चिंतन उपाध्याय हाल ही में संघियों-भाजपाइयों के नफरत के एजेंडे गाय को निशाना बना कर जयपुर में गाय की कलाकृति को हवा में लटका कर सुर्खियों में था। इसके अलावा, यह गुजरात दंगे के मसले पर सरकार के खिलाफ निर्वस्त्र होकर विरोध जता कर 'क्रांतिकारी' घोषित हो चुका है। भगवा सियासत के खिलाफ और भी क्रांतिकारी उपलब्धियां इसके नाम है। यह एक मशहूर कलाकार है।अरविंद का सवाल कि यदि कोई कवि, कोई रचनाकार अपनी निजी जिंदगी में बेहद घृणित है अपराधिक हरकतें करता है तब भी उसे कबूला जाना चाहिए ? अच्छी रचनाएं क्या उसे उसके अपराधों से मुक्ति दे सकती हैं ? मैं इसमें ये सवाल भी जोड़ना चाहूँगा कि क्या एक पाठक के रूप में हम उसके अपराधों पर जज़ हो जाने की सत्ता भी पा जाते हैं?
अब भविष्य में दुनिया इसके अपनी पत्नी हेमा के खिलाफ जघन्य और निकृष्ट स्तर तक जाने और हत्या तक करा देने के किस्से की हकीकत को भूल जाएगी और इसकी शानदार कलाकृतियों-पेंटिगों को याद रखेगी, इतिहास में यह एक महान कलाकार के तौर पर जाना जाएगा।
पिछले पांच-सात सालों के दौरान इस मसले पर दर्जनों 'क्रांतिकारियों' से टकराना पड़ा है कि अगर कोई बतौर रचनाकार अपने आसपास के लोगों या समाज को प्रभावित कर रहा है, तो उसकी निजी गतिविधियों और चरित्र को नजरअंदाज करना कितना मुमकिन है! लेकिन मुझे सुनना यही पड़ा कि रचनाकार को सिर्फ उसकी रचना के जरिए देखना चाहिए। बाकी निजी जिंदगी में वह क्या है, इसे मुद्दा नहीं बनाना चाहिए।
सवाल है कि एक बहुत अच्छी कहानी या कविता या कलाकृति बनाने वाला रचनाकार या कलाकार अगर निजी मोर्चे पर बेहद निकृष्ट और आपराधिक हरकत करता है, तब भी क्या उसे उसकी रचना के जरिए कबूल कर लिया जाए? यह एक जटिल सवाल के तौर पर हमारे सामने परोसा जाता रहा है। लेकिन आखिर वे कौन-सी वजहें हैं कि गुजरात दंगों में दो हजार से ज्यादा लोगों के मारे जाने के खिलाफ या देश में नफरत का जहर फैलाने वाली भगवा राजनीति के खिलाफ एक कलाकार इतना संवेदनशील है कि वह अपने विरोध जताने के तरीके को लेकर सुर्खियों में भी रहता है, लेकिन घर की चारदिवारी के भीतर वह अकेली पत्नी के खिलाफ इस कदर बर्बर, कुंठित, स्त्री-द्वेषी, पिछड़ा और सामंती होता है? लगातार कलाकृतियां बनाने के बावजूद कहां से उसके भीतर इतनी कुंठा और नफरत जमा हुईं, जिसने उसे अपनी पत्नी को कुत्तों के साथ सेक्स करते हुए पेंटिंग बनाने की जरूरत पड़ी?
क्यों ऐसा हुआ कि अपनी पेंटिंग में हर रंग से लेकर कलाकारी को लेकर बेहद संवेदनशील यह शख्स स्त्री को गुलाम के तौर पर कबूल करने वाला इस निकृष्टतम पैमाने का मर्दवादी सामंत बना रह गया? दुनिया के सामने 'दिखने' और वैसा ही वास्तव में 'होने' की कसौटी पर वह इस हद तक पाखंडी क्यों था? मुझे समझ में नहीं आता है कि मैं क्यों किसी रचनाकार या कलाकार की सामंती मर्दवादी निकृष्टताओं को सिर्फ इसलिए भूल जाऊं कि उसने नाम कुछ महान रचनाएं हैं...! एक पाखंड निबाहते हुए किसी व्यक्ति के मुकाबले कोई सीधा अपराधी मेरी निगाह में ज्यादा बेहतर है। यह मेरी दिमागी सीमा है कि मैं जो लिखता या दिखता हूं, वह मैं होने की भी मांग खुद से करूंगा।
मेरे पास इन सवालों के तय जवाब तो नहीं हैं किंतु मेरा सोचना मात्र इतना है कि पाखंड या दोहरापन देखना या दिखाना कुछ सरलीकरण है तथा ये भी कि अंतर्विरोधों के पूर्ण शमन के ही बाद कोई रचनाकार लिख या रच सकता है कि शर्त तो दुनिया को कला से शून्य ही कर देगी किंतु तब भी कोई भी कलाकार मात्र कलाकार होने भर से अपने अपराधों की सजा से मुक्ति नहीं पा सकता। एक अन्य पक्ष हिंसा व नफरत को पालने की हमारी संस्कृति का भी है। एक कलाकार पर तो सवाल है ही पर उससे ज्यादा समाज पर भी तो एक सवाल है न। एक समाज के तौर पर हम प्यार करना नहीं जानते, हमें नफरत करनी तक सलीके से नहीं आती तिसपर 'प्यार न करना और आजाद छोड़ देना' इसका भी सलीका होता है ये तो हम जानते तक नहीं।
व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए ऐसे व्यक्ति का व्यक्ति छोडि़ए कलाकार, नेता, एक्टिविस्ट के रूप में सम्मान करना कठिन है जो इतना अपराधिक, घृणित व मर्दवादी हो। किंतु ये मेरी अपनी व्यक्तिगत सीमा भी हो सकती है।
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