Saturday, February 10, 2007
पेशेगत हिंदी ब्लागवाद से अभी कितना दूर हैं हम???
मैं अभी तक एक ही ब्लागर मीट में गया हूँ और वहॉं भी मैं अकेला हिंदी ब्लागर था वहीं मैंने अपने बगल मैं बैठे शिवम से जिनसे मेरा परिचय पहले से था फुसफुसाकर पूछा ‘अमां यार। ये प्राफेशनल ब्लागर क्या होता है क्या ब्लाग से पैसा भी कमाया जा सकता है ? अब शिवम अंग्रेजी में ब्लागिंग करते हैं और इस दुनिया के कही ज्यादा पक्के खिलाड़ी हैं। उन्होंने जो बताया वह मेरे लिए अप्रत्याशित तो न था पर अवास्तविक सा अवश्य था मतलब बही एडमनी बगैरह। मुझे तब लगा था कि हिंदी ब्लागिंग कम से कम अभी तो स्वांत: सुखाय ही चलने वाली है। अब मैं फिर से इस सवाल से दो-दो हाथ करना चाहता हूँ कि पेशेगत हिंदी ब्लागवाद से अभी कितना दूर हैं हम ?
आप में से कुछ कह सकते हैं
हैं जी ।।। क्या मतलब है आपका ? हम लोग बाकायदा पेशेवर ब्लागर हैं ! हो सकता है कुछ ब्लागर ऐसा सोचने लगे हैं पर मुझे इसमें शक है। इस सवाल के कई आयाम हैं सबसे पहले तो यह कि क्या ब्लागर समुदाय का आकार है कितना ? गूगल पेजरैंक में तो लगता है कि हममें से अधिकतर 4 के आंकड़े पर हैं। सौ या अधिक पेजलोड प्रतिदिन की औसत वाले हिंदी ब्लाग कितने है इसकी भी मुझे जानकारी नहीं। पर शायद अभी तक फुलटाईम हिंदी ब्लागर का अवतरण हो नहीं पाया है। प्रोफाइलों से सर खपाने से तो मुझे ऐसा ही लगा। रवि रतलामीजी इस पद के सबसे निकट हैं शायद, पर वे भी मुझे लगता है कि घर का राशनपानी अपनी पेंशन या अन्य स्रोतों से चलातें होंगे अभी तक।.......यह सब मैं हिंदी ब्लागजगत की निराशाजनक तस्वीर खींचने के लिए नहीं कह रहा हूँ बल्कि इसके ठीक विपरीत कारण से कह रहा हूँ।
मेरी मान्यता है कि अब वह समय आ गया मान लिया जाना चाहिए जबकि हिंदी ब्लाग पत्रकारिता अपना अगला कदम उठाए और यह कदम केवल एक ही दिशा में हो सकता है.....आगे की ओर। मुझे इंटरनेट विज्ञापन जगत की अधिक जानकारी नहीं पर हम में से कुछ चिट्ठाकार जरूर होंगे जो अन्य लोगों को राह दिखाएं, मसलन यदि किसी ब्लागर ने एडसेंस या किसी अन्य मार्ग से अपने लेखन के गुजारे लायक आमदनी का जुगाड़ कर लिया हो तो वह अपनी सफलता की कहानी को बांटे ताकि अन्य लोग प्रोत्साहित हों।
एकाध सवाल और :
आपके अनुसार कब यानि कितने अरसे के बाद ब्लागरों को हिंदी ब्लाग में विज्ञापन चस्पां करने शुरू करने चाहिए ?
क्या हिंदी ब्लाग पाठक विज्ञापनों को क्लिक करने से विशेष रूप से परहेज करते हैं ?
अंग्रेजी ब्लागों के पेशेगत हो जाने के अनुभव और सिद्धांत हिंदी ब्लागिंग पर कितना लागू होते हैं ?
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5 comments:
यह सही है कि मैंने पिछले कुछ समय से कोशिश तो की है. अब आपने सार्वजनिक प्रश्न पूछा है, तो एक चिट्ठापोस्ट कर अपनी अब तक की राम कहानी बताता हूँ.
वैसे, परिदृश्य उत्साहजनक नहीं है तो पूरी तरह निराशावादी भी नहीं है.
मैं जाँचने की कोशिश जरूर की थी कि चिट्ठे से कमया जा सकता है या नहीं, म्गर कभी गम्भीर नहीं हुआ. अब तो विज्ञापनी आय के चक्कर में न पड़ मन की लिखता हूँ, तथा 100 के करीब पाठक है.
मुझे नहीं लगता अभी चिट्ठे से कमाया जा सकता है.
फिर कमाई के फेर में मुक्त मन से लिखा भी नही जाता. ऐसे में चिट्ठाकारी की आत्मा तो मर ही जाती है.
प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है, और सामयिक भी। उत्तर यही है कि इस समय हिन्दी चिट्ठाकारी से नहीं कमाया जा सकता। पर इस से लेखन की स्वतन्त्रता में कोई बाधा आती हो, यह मैं नहीं मानता। सफलता की कुंजी है volume में। लेखों का वाल्यूम, पाठकों का वॉल्यूम। अंग्रेज़ी वालों के पास पाठक संख्या का लाभ तो है ही, पर मेहनत भी बहुत चाहिए। यदि भारत के सब से मशहूर पेशेवर ब्लॉगर अमित अग्रवाल का यह लेख आप ने नहीं पढ़ा हो तो अवश्य पढ़ें।
कई बातें हैं जी, एक तो हिन्दी का पाठकसमुदाय अभी सीमित है, दूसरा हम सब लोग मुफ्त के शौकीन हैं, एड आदि से कुछ लेते तो हैं नहीं, तीसरा हम लोगों का लेखन अभी भी खिचड़ी ले्खन ही है।
विस्तार से विचार अपने चिट्ठे पर लिखूँगा।
लो जी अपने चिट्ठे पर लिख दिया हमने फुरसत से, जरुर पढ़िए और अपनी राय (टिप्पणी पढ़ें) दीजिए।
हिन्दी में व्यावसायिक चिट्ठाकारी का वर्तमान और भविष्य
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