हलफनामों की लड़ाई शुरू हो गई है, त्रिशूल लहराते बजरंगियों की बेरोजगारी दूर हो गई है। अब उनके पास करने के लिए काफी कुछ है और कम से कम अगले चुनावों तक तो रहने ही वाला है।
याद पड़ता है कि हम ब्लॉगरी में इस किस्म के आचरण से दोचार हो चुके हैं, हॉं यही तो ट्राल था। पहचान के मारे लोगों द्वारा उक्साऊ किस्म की हरकतें और लो अब राजनीति में भी होने लगा। मामला क्या है यह कि राजा दशरथ के पुत्र ने कभी एक पुल बनाया था और उसके अवशेष पाक जलडमरूमध्य के नीचे दबे हुए हैं उन्हें न खोदा जाए... क्या तर्क है। ऊपर से सरकार और भी तुर्रम खां है जो कोर्ट से यह तय करने को कह रही है कि बताओ राम थे कि नहीं।
राम सेतु पर हमें कुछ नही कहना, हमने तो वजीराबाद के सिग्नेचर सेतु पर ही कुछ नहीं कहा जो हमारे घर से दो किलोमीटर पर बनना था और हमारी जिंदगी पर असर डालता और अब शीला दीक्षित आंटी ने तय किया है कि नहीं बनाया जाएगा, तो भला इस दो हजार किलोमीटर दूर दबे न जाने किस पुल पर क्या कहें। पर हमारे कानून मंत्री ने पूरी बेशर्मी से कहा - 'मैं ब्राह्मण हूँ मुझसे ज्यादा राम पर आस्था कौन रख सकता है'..
हम ब्राह्मण नहीं है और हर कोई राम पर हमसे ज्यादा आस्था रख सकता है फिर भी जब सगुणभक्ति पढ़ाते हैं तो बताते हैं कि राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं - वे आदर्श राजा, आदर्श भाई, आदर्श पुत्र, आदर्श मित्र और यहॉं तक कि आदर्श शत्रु हैं, पर लगता है इस ब्राह्मण मंत्री ने उनसे किसी आदर्श में कोई आस्था नहीं सीखी है (यूँ भी हमारे मंत्रियों की सच्ची आस्था केवल 'मैडम' के प्रति होती है) वरना वे जानते कि कानून मंत्री को कानूनी दृष्टि से बात करनी थी और बताना था कि 'पुल' का क्या होगा।
इंटरनेट भरा पड़ा है यह प्रमाणित करता कि भई देखो ये जो है उथला समुद्र है और उस पर वो देखो पुल सा ही कुछ है- तुम्हीं देखो यार, पर तुम्हारे इतने बड़े पुल से दो चार जहाज भर निकलने लायक रास्ता दे ही दोगे तो क्या रामजी नाराज हो जाएंगे- उन्होने भी तो अपनी पत्नी को फिर से हासिल करने के लिए पुल बनाया ही था न, यानि यदि उदृदेश्य पवित्र हों तो थोड़ी बहुत छेड़ छाड़ समुद्र से की जा सकती है, पुल बनाने या तोड़ने की।
पर थोड़ा वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखो वैसे वैज्ञानिक मित्र शास्त्रीजी हम से ज्यादा योग्य हैं पर वे करेंगे तो लोग धर्म को बीच में ले आएंगे इसलिए हम ही कहते हैं हमें तो ज्यादा से ज्यादा धर्मद्रोही कह बैठोगे- हमारे परिवार वाले भी कह बैठते हैं पर रामजी जहॉं भी हैं जैसे भी हैं वे नाराज नहीं हुए। हॉं तो भई बजरंगियों एक बात बताओ कि ज्ञान- विज्ञान की दिशा सदैव अग्रमुखी होती है- वह सरल से जटिल की ओर चलता है। फिर यहॉं विज्ञान उलटा कैसे चल रहा है कि हजारों साल पहले बहुत प्रगति थी कि समुद्र पर पुल बना लें अब पीछे चले गए... पर जाने दें क्या विज्ञान की बातें करनी...भई ये तो आस्था का मामला है ...है तो गूगल अर्थ से तस्वीर लो और मंदिर में सजा लो...जलाओ अगरबत्ती कौन रोकता है। और अगर पर्यावरण, कोरल जीवन जैसी बातें तो बजरंगियों को उनसे क्या लेना लडि़ए पर्यावरण की लड़ाइयॉं उसमें धर्म या हमारे परम आस्थावान ब्राह्मण कानून मंत्री को ऊटपटांग हरकतें करने की क्या जरूरत है।
हमें तो लगता है कि बजरंगी राम, एक चुनावी ट्रॉल है जिसे हर मतदाता को इग्नोर करना चाहिए।
3 comments:
शानदार टिप्पणी। कम प्रतिक्रियाओं से कभी परेशान मत होइएगा। इसे एक सही और दमदार बात के सामने सबकी बोलती बंद हो जाने जैसा समझकर अपने इस सिलसिले को हमेशा जारी रखेंगे- आप जैसे बुद्धिजीवी, मसिजीवी से यही उम्मीद है।
shandar.
hamesha ki tarah 100 poston ki ek post. badhiya hai.
आपसे पूर्ण रुप से सहमत नहीं लेकिन आपके तर्क अच्छे हैं।
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