भारत ने पाक को एक कांटे के मैच में 'हराया' मैच तो खैर टाई हुआ था पर एक नए अंदाज में टाईब्रेकर का आयोजन हुआ जिसके तहत खाली विकेट पर गेंदबाजी करके गिल्लियॉं उड़ाकर यह तय किया गया कि हमारे गेंदबाजों ने (उनमें रोबिन उत्थपा शामिल हैं) बचपन में ज्यादा कंचे खेले थे इसलिए भारत जीत गया। हमें पहले भी लगा कि टी-20 में क्रिकेटीय तत्व कम हैं और इस जुगाड़ से तो और भी लगा। किंतु रवि शास्त्री ने जब अंपायर से पूछा जो खुद पहली बार बॉल आऊट का आयोजन करने वाले थे कि भई ये तो क्रिकेट नहीं है...तो अंपायर ने गोल मोल सा कहा कि है तो गेंदबाजी का कौशल ही। हमने उम्मीद जाहिर की थी कि प्रभाष जोशी जरूर इस पर कुछ कह पाएंगे, उनहोंने हमें निराश नहीं किया है।
आज के जनसत्ता में इस टी-20 पर, विशेषकर बॉल आऊट पर अपनी राय जाहिर करते हुए कहा है कि जहॉं क्रिकेट, गेंदबाजी, क्षेत्ररक्षण, बल्लेबाजी आदि तत्वों के समन्वित रूप से बनती है वहीं खाली विकेट पर निशाना लगाना तो किसी भी तरह क्रिकेट नहीं ही है, क्योंकि क्रिकेट का कोई भी तत्व अकेले क्रिकेट का विकल्प नहीं हो सकता।
आगे इस बॉल आऊट जुगाड़ की जड़ में जाते हुए प्रभाष बताते हैं कि इंग्लैंड में क्रिकेट को फुटबॉल से कड़ी प्रतियोगिता करनी पड़ती है तथा उससे लड़ने पर ही वहॉं क्रिकेट का वजूद निर्भर करता है इसलिए फुटबॉल के लोकप्रिय तत्वों को क्रिकेट में लाया गया है पर यह ध्यान नहीं रखा गया कि इससे क्रिकेट, क्रिकेट रह भी जाती हे कि नहीं।
4 comments:
मैं भी आपके और प्रभाष जोशी जी के नज़रिये से सहमत हूं.
बालआऊट कहीं से भी भी क्रिकेटीय नहीं है.
पूरा खेल ही क्रिकेट नहीं है, इसे सिर्फ़ ट्वेंन्टी20 कहना चाहिए, यह क्रिकेट का 420 है. बेसबाल टाइप कुछ बनाने की कोशिश हो रही है, किसी सच्चे क्रिकेट प्रेमी को यह सब रास नहीं आ रहा, क्रिकेट का नाश कर रहे हैं, सिर्फ़ बाज़ार बढ़ाने के लिए. जिनको खेल नहीं देखना वे चियरलीडर का डांस ही देख लेंगे.
नया स्वरुप है. धीरे धीरे आदत में आ जायेगा इसे देखना भी.
मगर क्लासिकल क्रिकेट तो फिर भी टेस्ट क्रिकेट ही रहेगा.
बेसबाल टाइप कुछ बनाने की कोशिश हो रही है
अनामदास जी, मेरी जानकारी अनुसार तो बेसबॉल प्रति टीम नौ सत्रों(innings) का खेल होता है, एक दिवसीय क्रिकेट से लंबा भी जा सकता है, तो Twenty20 की उससे कैसे तुलना कर रहे हैं?
मैं समझता हूँ कि आज के समय में लोगों को एक-दिवसीय क्रिकेट के लिए 7-8 घंटे निकालने भारी पड़ते हैं, सारा वर्ष ही क्रिकेट खेला जाता है(पहले सिर्फ़ कुछ माह ही एक टीम एकाध टूर्नामेन्ट खेलती थी)। इसकी लंबाई भी एक कारण है जिससे क्रिकेट न देखने वाले इसकी ओर आकर्षित नहीं होते, उनको नब्बे मिनट के फुटबॉल मैच, सत्तर मिनट के हॉकी मैच, 40/48 मिनट के बास्केटबॉल मैच आदि अधिक बेहतर लगते हैं, क्योंकि कम समयावधि होने के कारण बोरियत भी नहीं होती और रूचि बनी रहती है। कदाचित् इसलिए Twenty20 का concept निकाला गया ताकि समयावधि कम होने के कारण अधिक दर्शक इसका आनंद लें।
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