शास्त्रीजी द्वारा प्रस्तुत दीपक के लेख में आज कहा ही था कि क्रिकेट में से खेल अब लुप्त होता जा रहा है। आज ही T-20 का विश्वकप शुरू हुआ है और क्या कार्यक्रम है हुजूर- हमें क्रिकेट तो नहीं लगा एक मनोरंजन का वैराइटी प्रोग्राम भर लगा। अपने टीवी से कुछ तस्वीरें कैप्चर की हैं देखें- भला जेन्टलमैनों के 'खेल' ऐसे होते हैं क्या -
वैसे कुछ क्रिकेटीय क्षण भी थे। जैसे गेल का शतक-
कुल मिलाकर हमें तो लगता है कि मीडिया के लिए मनोरंजन का तमाशा तैयार करने के लिए खेल हो रहा था। पता नहीं अब प्रभाष जोशी क्या लिखेंगे ?
3 comments:
आपकी बात से मै भी इत्तेफ़ाक रखता हूं..अब तो कम से कम शास्त्रीय क्रिकेट तो बहुत दूर की कौड़ी होती जा रही है..
शास्त्रीय क्रिकेट?? :)
-मगर आने वाला समय इसी २०/२० का है. किसके पास समय हैं पाँच दिन बैठकर अपनी हार देखने का.
प्रिय मसिजीवी,
मेरे हिसाब से तो क्रिकेट को अब हिन्दुस्तान से देशनिकाला दे देना चाहिये -- शास्त्री जे सी फिलिप
आज का विचार: चाहे अंग्रेजी की पुस्तकें माँगकर या किसी पुस्तकालय से लो , किन्तु यथासंभव हिन्दी की पुस्तकें खरीद कर पढ़ो । यह बात उन लोगों पर विशेष रूप से लागू होनी चाहिये जो कमाते हैं व विद्यार्थी नहीं हैं । क्योंकि लेखक लेखन तभी करेगा जब उसकी पुस्तकें बिकेंगी । और जो भी पुस्तक विक्रेता हिन्दी पुस्तकें नहीं रखते उनसे भी पूछो कि हिन्दी की पुस्तकें हैं क्या । यह नुस्खा मैंने बहुत कारगार होते देखा है । अपने छोटे से कस्बे में जब हम बार बार एक ही चीज की माँग करते रहते हैं तो वह थक हारकर वह चीज रखने लगता है । (घुघूती बासूती)
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