मेरे एक साथी अध्यापक हैं डा. साहा। वे एक वरिष्ठ व प्रसिद्ध गणितज्ञ हैं जिन्हें गैर रेखीय गणित का विद्वान माना जाता है। उनका एक प्रस्तुतीकरण था, हमें भी होने का अवसर मिला। अब था तो निखट्ट गँवारों के बीच, मतलब डिग्रियॉं तो उनमें से शायद ही किसी के पास हम से कम हो पर वही समस्या जो हमारी शिक्षा पद्धति की है यानि ज्ञान तो शायद कम देती है पर ज्ञान का दंभ ज्यादा भर देती है। खैर उस प्रस्तुतीकरण को विशेष सराहना न मिल सकी किंतु मैं उसपर वाकई मुग्ध था। क्यों...यह अभी बताता हूँ।
जब तक गणित पढ़ा मेरा प्रिय विषय था और ऐसा इसलिए कि यह अमूतर्न को जिस माहिर अंदाज से साधता है खुद धर्म और दर्शन भी उसके सामने पानी भरते नजर आते हैं। हॉं तो डा. साहा की प्रस्तुति का विषय था ‘आर्डर एंड केओस’, गणितीय तो नहीं किंतु भाषा में इस विषय पर मैं लगातार सोचता रहता हूँ। शायद इसी वजह से यह संभाषण मुझे पसंद आया हो।
नीचे कही गई बातें उसी व्याख्यान का या तो अंश थीं या बाद में काफी सुढ़कते हुए उनसे हुई बातचीत के आधार पर लिखी गई हैं-
हम प्रकृति को जानना चाहते हैं, इसलिए नहीं कि वह उपयोगी है वरन इसलिए कि वह खूबसूरत है।
प्रकृति खूबसूरत है क्योंकि वह लीनीयर नहीं है, वह व्यवस्था व गैर व्यवस्था (केओस) का मिला जुला रूप है। मसलन एक बागीचे में कतार से लगे पौधों में व्यवस्था है पर इन पौधों की विविधता एक प्रकार के केओस से उपजती है।
हर व्यवस्था को रेखीय समीकरण में बदला जा सकता है इसलिए वह इन समीकरणों के आधार पर व्याख्यायीत की जा सकती
हैं। किंतु गैर रेखीय समीकरणों के साथ ऐसा नहीं है, वे जिन भी वैरिएबलों (चरों) पर निर्भर करते हैं उनमें जरा सा बदलाव अंत में बहुत ही बड़ा अंतर ला देते हैं। पृथ्वी पर जीवन का उदय होना, पेड़ की पत्तियाँ, आदि आदि की व्याख्या इससे की जा सकती है। दरअसल कम से कम तकनीकी तौर यह संभव है कि पूरे ब्रह्मांड के जन्म या मृत्यु की व्याख्या की जा सके बशर्ते हम इतनी गणनाएं कर पाएं। कुछ सरल गणनाएं करना अब कंप्यूटर से संभव हो गया है। और उसका उदाहरण फैक्टल होते हैं। (मुझे याद है कि इस चिट्ठे पर मैनें कुछ फ्रैक्टल पोस्ट किए थे....वे यहॉं, यहॉं, यहॉं और यहॉं हैं।) और भी कुछ खूबसूरत व्याख्याएं थीं और यह भी कि गणित ने ये सब बातें 1886 में ही कह दी थीं और सैद्धांतिक तौर पर ये आईंस्टाइन के सिद्धांत का विरोध करती हैं।
मुझे सबसे रोचक लगता है जब मैं इसे भाषा पर लागू करता हूँ, सोचिए जरा कि एक आम व्यक्ति भाषा में चंद ही शब्दों का इस्तेमाल करता है (शायद आधारभूत शब्दावली के शब्द 2000 से कम होंगे) पर इनसे इतने संवाद बन जाते हैं कि न केवल कोई भी अपने जीवन में कभी कोई भाषिक संवाद नहीं पूरी तरह दोहराता वरन मानव सभ्यता में ही कोई भाषिक संवाद जस का तस आज तक नहीं दोहराया गया। (शब्द, वाक्य, क्रम,वक्ता, श्रोता, प्रभाव, आदि के स्तर पर कोई न कोई अंतर अवश्य आ जाएगा चाहे आप स्वयं ऐसा जानबूझकर ही क्यों न करने की कोशिश करें) हॉं लिपि इस केओस में व्यवस्था लाने का प्रयास करती है और खूबसूरती से स्वयं केओस का शिकार हो जाती है।
लंबी बोझिल पोस्ट के लिए क्षमा मुझे डर था कि कहीं मैं बाद में लिखूंगा तो वह यह नहीं होगा जो अब है। पोस्ट के फ्रैक्टल मेरे पुराने बनाए हुए हैं। आप भी कोई टूल डाउनलोड कर कोशिश करें। ये बिल्कुल आसान है।
6 comments:
आपका ये लेख बहुत जानकारी पूर्ण है। फ्रैक्टल देखते रहे आपके लेकिन समझ में आज आये। इसपर आगे भी लेख लिखें!
वाकई । ऐसी जानकारी ब्लाग पर व्यतीत समय को सार्थक करती है । गणित और अन्य चीज़ों के रिश्तों पर कुछ ओर लेख प्रस्तुत करें तो मज़ा आ जाए । मैं गणित से घबराता था । लेकिन उसके सामाजिक पहलु ने पहली बार आनंद का अहसास कराया है ।
रवीश कुमार, कस्बा
naisadak.blogspot.com
अरे गणित को छोङिये और फ्रैक्टल के मजे लीजिये.
इस अंतहीन कला को आपने कई गानों मे देखा होगा.... विशेष तौर पर MTV पर.
कुछ सरल से गणितीय सूत्र कितने सुन्दर हो सकते हैं, इसका उदाहरण फ्रैक्टल से अच्छा क्या हो सकता है ? :)
जब आपने ये पोस्ट चढ़ाया तो पता नहीं कैसे देख नहीं सका.. आज देखा.. अच्छा लगा.. गणित की और बातें ले कर आइये सब के बीच..एक अच्छा संगम बना सकते हैं आप भाषा और गणित का.. कविताग्रस्त हिन्दी जगत को लाभ होगा..
"ठेठ हिंदीवाला पढ़ने पढ़ाने लिखने और सोचने के अलावा कुछ सोचता तक नहीं"मसीजीवी
फ़िर गणित के बारे मे कैसे सोच लिया ? :)
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
बहुत अच्छा लगा आपके फ्रैक्टल देखकर... आप भाषा के आदमी ठहरे और मैं गणित का, पर भाषा से भी मुझे बहुत लगाव रहा है... और अभी एक पढ़ाई पूरी कर के भाषा की पढ़ाई में वापस आने की योजना भी है. खैर योजनाओं का क्या बनती रहती हैं... अपने ब्लॉग पर गणित को अगणितीय रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास है... देखिये कितना सफल हो पाता हूँ. फ्रैक्टल के अलावा 'गेम थियोरी' भी काफ़ी रोचक होती है... और भी बहुत रोचकता है गणित में... मुझे तो डर था की गणित जैसे नीरस शब्द देखकर कोई आगे पढेगा ही नहीं, पर कई लोगों ने हौसला बढाया है... देखिये कहाँ तक जा पाती है श्रृंखला.
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