Friday, September 07, 2007

उनकी विश्‍वसनीयता में सेंध- हमारी ओर से शुद्ध खेद खेद खेद

हमने उमा खुराना प्रकरण पर एक पूरी पोस्‍ट लिखी थी, अब कहानी की असलियत सामने आ गई है- उमा शिक्षिका हैं और हमने राय व्‍यक्‍त की थी कि शिक्षक होने के नाते हम उस शर्मिंदगी में साझा हैं जो उमा के 'आचरण' से उपजती है। तीन-चार दिनों में मामला पलट गया है- हम अपनी गलती को ओन करते हैं तथा इस विषय में अपनी क्षमा याचना व्‍यक्‍त करते हैं- उस पोस्‍ट में कम से कम कुछ वाक्‍य तो ऐसे हैं ही जो उस शिक्षिका को दोषी मान लेने की ध्‍‍वनि लिए हैं।


हम गुमराह हुए- बाकायदा किए गए। पत्रकार बिरादरी ने किए (चलिए बिरादरी नहीं कहते....कुछ पत्रकारों ने किए) सिर्फ हम ही नहीं हुए पूरा देश हुआ। चंद पत्रकारों ने कहा कि शिक्षक इतने पतित हो गए हैं कि धंधा करने लगे हैं- हम झट आत्‍मालोचना के मोड में गए-



जनता में गुस्‍सा है, सरकार में भी और कानून तो जो और जैसे करेगा वो करेगा ही (दिल्‍ली में इम्‍मोरल ट्रेफिकिंग के केसों में कन्विक्‍शन की दर बहुत ही कम है) पर हमें सबसे खतनाक वह चुप्‍पी लगती है जो इस तरह की घटनाओं के बाद शिक्षक समुदाय में आंतरिक रूप से देखने को मिलती है



अब सवाल यह है कि सब जानते हैं कि एक पत्रकार (चैनलों की कार्यप्रणाली जानने वाले मानेंगे कि ये स्टिंग एक पत्रकार भर की हरकत नहीं ही होगी) ने टीआरपी के लिए एक और साथी पत्रकार को वेश्‍या के रूप में अभिनय करने के लिए कहा और नकली स्टिंग में उस अध्‍यापिका को फंसाया गया। पत्रकार मित्र कहें कि इसे क्‍या कहें। उमा के कपड़े फाड़े गए- हम जैसे गैर जिम्‍मेदार लोगों की ही हरकत थी। पर पत्रकारिता की कोई जिम्‍मेदारी बनती है कि नहीं। टी आर पी के लिए पत्रकार अपनी साथी को ही वेश्‍या बना डालेंगे- ये भूख फिर अब कब थमेगी।


हमें लगता है कि स्‍त्री के सम्‍मान का सवाल, छात्र-शिक्षक संबंधों के विश्‍वास हनन का सवाल, पत्रकारिता के मूल्‍यों का सवाल और संभवत चिट्ठाकारिता के दायित्‍व का सवाल इसमें शामिल है। अपने तईं हम पुन: स्‍वीकार करते हैं और पूरी शर्मिंदगी से स्‍वीकार करते हैं कि हम मीडिया रिपोर्टों पर विश्‍वास करने की गलती कर बैठे हमें खेद है।


14 comments:

विपुल जैन said...

शिक्षक को फँसाया गया से जरूरी है समझना, एक आम आदमी किस तरह इन चंद भ्रष्ट पत्रकारों का शिकार बन सकता है।

Unknown said...

dukhad baat hai yah

Anonymous said...

sir
many times we see what we are shown you were no exception so dont blame your self for making a post on it

Udan Tashtari said...

दुर्भाग्यपूर्ण बात. यह सब क्या हो रहा है?? कब और कहाँ थमेगी इनकी भूख?

उमाशंकर सिंह said...

दरअसल समस्या कर्तव्य का बोध हुए बिना अधिकार मिल जाने की है...और कुछ मछलियां पूरे तालाब को गंदा कर रही हैं।

ghughutibasuti said...

मसिजीवी जी आपने बात साफ की इसका धन्यवाद । आपके साथ हम सब भी, जो बात की तह तक ना जाकर बोलने लगे, वे भी गलत हैं । उनके स्थान पर मैं या आप कोई भी हो सकते थे । हम तो क्षमा याचना ही कर सकते हैं, पर आशा है ये अध्यापिका मान हानि का दावा अवश्य करेंगी । इस तरह से बिना छानबीन किये किसी की इज्जत की धज्जियाँ उड़ाने वाले छोड़े नहीं जाने चाहिये । यहाँ यह भी कहना पड़ेगा कि यदि अब का समाचार सच है ।
घुघूती बासूती

अजित वडनेरकर said...

समूचे मीडिया जगत की नहीं सिर्फ न्यूज़ चैनलों की विश्वसनीयता खतरे में है। आपने जो कुछ लिखा उससे सहमत हूं।

Dr Prabhat Tandon said...

पत्रकारिता के नाम पर इन न्यूज चैनलों पर अब लगाम कसने की आवशकता है !

अभय तिवारी said...

मैं सोच ही रहा था कि इस पर आप ही की तरफ़ से पोस्ट आनी चहिए.. ठीक किया आप ने लिख के..

Arun Arora said...

यही है जी चौथा खंबा,और ये भी बाकी तीनो से कम भ्रष्ट नही है जी..:)

Anonymous said...

what really is surprising in the larger picture that why the teacher was trapped . how can some one trap you if you retailte immediately with not interested or what is this non sense . why did she not react this way whether in camera or without camera . why did she aggree to bring in the lady journalist posing as decoy girl/student and the reporter posing as the decoy customer together

संजय बेंगाणी said...

जब आजादी का सही उपयोग नहीं होता तो वह छीन ली जाती है. आजादी के पक्षधरों सावधान. हमारी लिखने-दिखाने की आजादी हमसे छीन जाये, इन भ्रष्ट पत्रकारो के चलते.

आप आज देख रहे हैं, हमने पत्रकारों की करतुतें वर्षो पहले देख ली थी.

डॉ .अनुराग said...

ragaryaआपने साहस से हामी भरी इस प्रकरण मे अपनी ग़लती क़ी. आप बधाई के पात्र है.इसे कितने प्रकरण हुए है जहाँ मीडीया सिर्फ़ ख़बर दिखाने भर क़ी ज़िम्मेदारी लेता है, बाद मे लंबे समय तक ना उन तथ्यो क़ी जानकारी लेता, ना उस केस क़ी है.
साह्यद मीडीया अभी शिशु अवस्था मे है,इसे किसी सजग, अनुभवी,संवेदनशील अभिवावाक क़ी आवश्यकता है.

Shastri JC Philip said...

किस तरह से एक अध्यापिका को झूठा फंसाया गया यह देख कर दुख होता है -- शास्त्री जे सी फिलिप


हे प्रभु, मुझे अपने दिव्य ज्ञान से भर दीजिये
जिससे मेरा हर कदम दूसरों के लिये अनुग्रह का कारण हो,
हर शब्द दुखी को सांत्वना एवं रचनाकर्मी को प्रेरणा दे,
हर पल मुझे यह लगे की मैं आपके और अधिक निकट
होता जा रहा हूं.