Monday, July 02, 2007

बिनायक के बहाने असहमति के पक्ष में

डा. बिनायक सेन अब एक अपरिचित नाम नहीं है। ब्लॉगजगत में ही उनपर कुछ मित्रों ने लिखा है मसलन परवेज साहब ने लिखा, रियाज ने लिखा संजीव तिवारी ने भी लिखा पर जाहिर है हम अपनी चिंताओं व सरोकारों की वरीयताएं स्‍वयं तय करते हैं- इन चिट्ठाकार मित्रों ने इस विषय पर अपनी अलग अलग राय ही रखी है जिसमें जाहिर है असहमतियॉं हैं और गनीमत है कि वे हैं। हाल में नेपकिन विवाद में जब हम चिट्ठाकार असहमतियों को सम्‍मानजनक जगह देने की मांग पर बहस कर रहे थे तभी देश में डा. बिनायक के अधिकारों को लेकर एक बहस जारी थी- ऐसी ही एक साहसी पोस्‍ट डा. सुनील दीपक ने समलैंगिकों के अधिकारों को लेकर पेश की है- चिट्ठाकारी ने अपने दायित्‍व संभालने शुरू कर दिए हैं। इसका श्रेय हमें पसंद हो या न हो हमें सुनीलजी व अविनाश जैसे चिट्ठाकारों को देना होगा जो अपने अपने तरीके से असहमत व विविध की अभिव्‍यक्ति के प्रति कटिबद्ध दिखते हैं।


नक्सल समर्थन के आरोप में गिरफ्तार, पेशे से बाल चिकित्‍सक डा. बिनायक पी यू सी एल से जुड़े रहे हैं। उनकी पत्‍नी इलीना सेन ने आज अखबार में लिखा कि डा. बिनायक पर नक्‍सलियों को समर्थन देने का आरोप है- उनके बच्‍चे की ट्रिग्‍नोमैट्री की कापी को सबूत के तौर पर पेश किया गया है। पुलिस ऐसा करती है इस बात का भान मुझे है- हमारे कॉलेज के डा. जीलानी पर संसद पर आतंकवादी हमले का आरोप था और इसी किस्‍म के ‘प्रमाण’ जुटाए गए थे- जो कोर्ट में धराशाही हो गए- खुन्‍नस में जीलानी पर हमला किया गया और स्‍पेशल सेल के खिलाफ कोई प्रमाण नहीं मिला (संयोग से उसी स्‍पेशल सेल में अपना एक पुराना सहपाठी भी था- उसने क्‍या बताया ये नहीं बताउंगा पर ये मान लीजिए कि सब ठीक तो नहीं ही था)। अब जाहिर है कोई ‘मसिजीवी की आत्‍मा’ बनकर कहेगा कि देश की पुलिस के खिलाफ लिखना जयचंदी काम है पर क्‍या करें हमें लगता है कि यही राष्‍ट्रभक्ति है- देश की संसद पर हमला हो और आप इस-उस को पकड़कर दोषी सिद्ध करने में ताकत झोंको, जिसका मतलब है कि दोषी आतंकवादी अगला हमला करने के लिए अभी भी बाहर मजे में घूम रहे हैं- दूसरी ओर किसी विचारधारा से भयंकर तौर पर भयभीत होकर आप एक डाक्‍टर को जेल में ठूंसो क्‍योंकि आप उससे सहमत नहीं हैं।

डा. बिनायक के विषय में हमें नहीं पता कि वे कितने नक्‍सली हैं जैसे कि अफजल व जीलानी के विषय में नहीं पता था कि वे कितने बड़े आतंकवादी थे – किंतु एक बात सहजता से पता लग रही है- राज्‍य अपनी वैधता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है और हॉं उसी व्‍यकितगत अनुभव से ये भी जानते हैं कि जीलानी को राज्‍य के दमन के विरुद्ध प्रतीक बनाने में सरकार की वही भूमिका है जो बजार1 जैसे बदमजा चिट्ठे को असहमति की अभिव्‍यक्ति का प्रतीक बना देने में नारद की थी।

जिस तरह कश्‍मीरी अलगाववाद से हम असहमत है, राहुल की भाषा को अनावश्‍यक रूप से बदमजा मानते हैं तथा अधिकतर समय हमने नए नए मार्क्‍सवादी रंगरूटों से उनके विचारों से गहरी असहमति जाहिर करते हुए गुजारा है- अब भी उस विचारधारा से अपना असहमति का ही रिश्‍ता है पर पुलिस स्‍टेट कायम करने के खिलाफ लोकतंत्र के पक्ष में हम राहुल, जीलानी और बिनायक के पक्ष में खड़े हैं।

7 comments:

Anonymous said...

aapne theek baat uthaayi... humein vinayak sen ka saath dekar is mulk ko bachaanaa hogaa... warna sanjit tripathi to un jaison ke khilaaf zahar ugal hi chuke hain...

note pad said...

जी सही कहा । जनसत्ता मे आज पढा इलीना सेन को ।एक अर्थ मे हम भी नक्सलाइट ही माने जाएन्गे जो विनायक सेन के पक्ष मे, असहति के पक्ष मे है‍ ‍ ।

Sanjeet Tripathi said...

नज़रिया सही है!!

मुआफ़ी चाहूंगा मसिजीवी जी कि आपके चिट्ठे पर अविनाश जी को यहीं पर जवाब देने की गुस्ताखी कर रहा हूं,

प्रिय अविनाश भाई
धन्यवाद मुझे यह बताने के लिए कि मैं किनके खिलाफ़ जहर उगल चुका हूं। जहां तक मुझे याद है कि मैने अब तक अपनी किसी पोस्ट में डॉ विनायक सेन के खिलाफ़ नही लिखा है, ना ही प्रतीकात्मक रुप से उनका विरोध किया है!

मेरा विरोध सिर्फ़ और सिर्फ़ आम आदिवासियों के मारे जाने के खिलाफ़ है चाहे वह नक्सलियों के द्वारा हो रहा हो या फ़िर सलवा जुडुम के माध्यम से हो रहा हो!

अगर आप या दूसरे पढ़ पाने में सफ़ल हो तो मेरे चिट्ठे पर देख सकते हैं कि मैने क्या और कि्नके बारे में लिखा है और किस संदर्भ में लिखा है!
दूसरी बात अविनाश जी यह कि आप उकसाने वाले लहज़े (जैसा कि आपने लिखा-- जहर उगलने जैसी ) का प्रयोग कृपया कर ना किया करें। अच्छा नही लगता कि आप जैसा इंसान इस लहज़े का प्रयोग करे!!

बाकी आप तो मुझसे ज्यादा वरिष्ठ और समझदार हैं क्योंकि मुल्क को बचाने जैसी ज़िम्मेदारी हम साधारण लोगों की है ही नही !!

मसिजीवी और अविनाश जी से क्षमा याचना सहित!!

ढाईआखर said...

मसिजीवी जी, इस पोस्ट के लिए शुक्रिया। विनायक सेन इस देश में जन स्वास्थ्य के प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं। सुख सुविधाओं को तिलांजलि देकर आम जन के लिए डॉक्टरों का समूह तैयार करने वालों में विनायक प्रमुख हैं। उन्होंने छत्तीसगढ् में शहीद शंकर गुहा नियोगी की याद में अस्पताल कायम करने में अहम भूमिका निभायी है। राज्य सत्ता का हाल यह है कि पूरे देश में विरोध के बावजूद, कही कोई सुगबुगाहट नहीं है।
आपने एक जरूरी पोस्ट डाली है।

अनूप शुक्ल said...

खड़े रहना आपका संविधान सम्मत अधिकार है, खड़े रहिये।:)
एक बात आपको समझनी चाहिये कि आप राज्य और नारद की तुलना करके दोनों में घालमेल करने का प्रयास कर रहे हो। मैं नारद के समर्थन में कुछ नहीं लिख रहा हूं न उसके पक्ष-विपक्ष में कुछ लिख रहा हूं। लेकिन जितनी मेरी समझ है उससे मुझे लगता है कि आप इस पोस्ट में नारद के प्रकरण का हवाला देकर डा.बिनायक सेन के पक्ष/सहमति में पोस्ट को अगम्भीर बनाते हो। इससे लगता है कि न आपको डा.बिनायक सेन से कुछ मतलब है न नारद ,राहुल प्रकरण से। खाली मुद्दा उछालना आपका उद्देश्य है। मैंने कल आपकी इसी प्रवृत्ति की तरफ़ कल इशारा किया था। यह आदतन है।

मेरी अपनी समझ यह है कि जितना अच्छा रिस्पांस इस पोस्ट पर बिना नारद का जिक्र किये मिल सकता था (डा.बिनायक सेन का पक्ष समझने के मामले में) वह आपने नारद प्रकरण का जिक्र करके गंवा दिया। आप संभव है इस पर तमाम टिप्पणियां पायें लेकिन नारद से जुड़े जो लोग इस बात से चिढ़ते हैं उनको आपने एक और मौका दिया कि बिना डा. बिनायक का पक्ष समझे इसे मटिया दें या नारद के समर्थन में चिल्लाने लगें।

यह टिप्पणी आपकी इस पोस्ट की प्रवत्ति पर है। नारद विवाद और डा.सेन से इसका कुछ लेना देना नहीं है।:)

मसिजीवी said...

@अनूपजी, आप ही ने तो कहा कि हम इसके लिए कोई 'प्रयास' नहीं करते वह अपने आप हो जाता है। :)

लेकिन वो आपने कहा था, हमने डिनाई किया था, अब भी करते हैं। सही है कि पोस्‍ट डा.बिनायक को निशाना बनाए जाने की प्रवृत्ति पर ही है- प्रतिरोध का हमारा स्‍वर है- उससे किसी के कान पर जूं नहीं रेंगती हम जानते हैं- रेंगती है क्‍या- राज्‍य तो यह भी कभी नहीं कहने वाला कि ये दुखद था- पर फिर भी जरूरी है कि प्रतिरोध को दर्ज किया जाए।

@'इससे लगता है कि न आपको डा.बिनायक सेन से कुछ मतलब है न नारद ,राहुल प्रकरण से। खाली मुद्दा उछालना आपका उद्देश्य है।...'

इस बात पर यह ही कह सकते हैं कि 'मतलब' के आशय से तय होता है कि हमें मतलब है कि नहीं- मुझे इस बात की वाकई गुंजाइश नहीं दिखाई देती कि मैं आंदोलनरत होकर कूद पड़ूंगा- इनमें से किसी भी मुद्दे पर, बहुत हुआ तो किसी हस्‍ताक्षर अभियान में हस्‍ताक्षर कर दूंगा या जंतर मंतर पहुँच जाऊंगा- समर्थन विरोध के लिए- पर आंदोलनरत हो सकने में मेरे साहस की कमी क्‍या मुझे आंदोलित होने के हक से भी वंचित करेगी। उसीको कहा बस।

और यदि आपको नारद/बिनायक/जीलानी/समलैंगिकों के सवाल अलहदा दिखते हैं तो विशेष हैरानी नहीं- स्‍पेशल सेल वाले मेरे मित्र को कोई अफसोस नहीं था, जीलानी और संसद कांड में संबंध स्थापना के लिए किए उसके कामों के लिए।
किंतु हमें ये प्रवृत्तियॉं एक सी दिखती हैं- असहमतियों के प्रति असम्‍मान की अभिव्‍यकित- आप हम से असहमत हैं- हम आपकी असहमति का सम्‍मान करते हैं।

अनूप शुक्ल said...

चलिये आपने जो ठीक समझा आपने लिखा। मेरी समझ हमने बता दी।