Friday, July 06, 2007

नारदजी छुटि्टयों में क्‍या कर रहे हैं :~)))

आजकल जितेंद्रजी नारदजी छुट्टियों पर हैं। इधर उधर घूम रहे हैं- पिछले दिनों जबलपुर में थे- हमारी स्टिंग आपरेशन टीम ने उन्‍हें वहीं पकड़ा। वहॉं वे धुरविरोधी भोलाराम के जीव को खोजने में लगे थे। आपको मालूम ही है कि भोलाराम का जीव अपने चिट्ठे की अपनी मौत के बाद से ही लापता है। स्टिंग वीडियों देखें और अपनी राय दें-




हमारे द्वारा इंटरनेट उपभोग योग्‍य बनाने से पहले मूल वीडियों का निर्देशन-अनवर जमाल

5 comments:

Anonymous said...

कोई देवकांत बरुआ नाम के सज्जन थे इमर्जेंसी के पहले के सालों में उन्होने एक फ़िकरा उछाला था जिसे बाद के काफ़ी सालों तक इधर उधर उछाला लोका जाता रहा. इन्दिरा इज़ इण्डिया एण्ड इण्डिया इज़ इन्दिरा.
आज कल लोगों को किसी बरुआ फ़रुआ की ज़रूरत नहीं पड़ती आप ही घोषित कर देते हैं कि व्हाट संस्था?व्हाट समूह? आइ एम नारद? तो किस बहरुपिये को नारद कह रहे हैं जा के मेरा पन्ना पर पढ़िये नारद इज़ ऑन लीव? हाउएवर आई वन्डर हाउ द हेल एन्ड हू द हेल इज़ रनिंग द फ़ीडेग्रीगेटर? इफ़ नारद इज़ नॉट द वन हू रन्स इट एन्ड इट कैन रन ऑन ऑटो पायलट, देन व्हाट ड्ज़ जीतेन्द्र डू आई मीन नारद डू? बॉस अरॉउन्ड क्लेमिंग द रिटर्न्स ऑफ़ सेल्फ़लेस सर्विस ऑफ़ हिन्दी?

Udan Tashtari said...

भोला राम का जीव पढ़ी तो कई बार है, आज आपकी वजह से उसका नाट्य रुपांतरण भी देख लिया. साधुवाद!!

Yunus Khan said...

अरे वाह वाह मज़ा आ गया । अरे भईया ये तो अपने जबलईपुर इप्‍टा यानी विवेचना के लोग लगते हैं । मजा आ गया । मेरा अड्डा कई दिनों तक विवेचना में रहा है । हिमांशु राय, नवीन चौबे और अरूण पांडे अपने कॉमरेड रहे हैं । परसाई जी की कई रचनाएं परसाई कोलाज के रूप में की जाती रही हैं । ये लोग मुंबई भी आ चुके हैं । यहां भी छप्‍पर फाड़ शो हुए थे । दर्शक इतने थे कि कुछ को खड़े रहकर शो देखना पड़ा था । ये है छोटे शहरों का रंगमंच

Srijan Shilpi said...

सुन्दर नाट्य रूपांतरण, परसाई जी की रचना का।

विजेंद्र एस विज said...

सुन्दर प्रस्तुति है..परसाई जी की रचना की.
साधुवाद!