Sunday, July 29, 2007

आइए आज अपने प्‍यारे अंतर्जाल पर ही सवाल उठाएं

अंतर्जाल पर विचार एक तरह से खुद अपने रवैए पर विचार है ये आत्‍मालोचन ही है। आत्‍मालोचन एक ऐसा शुद्धि अनुष्‍ठान है जो हम नियमित करते रहे हैं लेकिन क्‍या करें कमजोर व्‍यकित हैं, एक कमी को पहचान भर पाते हैं, दूर पता नही कर पाते हैं कि नहीं, पर पचास और कमियॉं तब तक अर्जित कर बैठते हैं।

अस्‍तु, पिछले कुछ महीनों में हमारी अंतर्जाल से दोस्‍ती इतनी ज्‍यादा हुई है कि हमें विश्‍वास सा होने लगा है कि ये बात अपने आप में ही इस बात का प्रमाण है कि ये चीज़ यानि इंटरनेट सिर्फ अच्‍छा अच्‍छा नही हो सकता- तो क्‍यों न इसकी कमियों पर विचार किया जाए- और विचार का मतलब सिर्फ इतना नहीं कि भई समय बहुत खाता है- पैसा लगता है वगैरह वरन ये भी कि इअस माध्‍यम की मुलभूत प्रकृति में क्‍या लोचा अपन को दिखाई देता है।

अंतर्जाल में लाख अच्‍छाइयॉं हों पर ऐसा नही कि इसमें केवल हसनजमाली परेशानियॉं ही है और भी होंगी। एक तो हमें साफ साफ दिखाई देती है और वह है कि ये ऐसा माध्‍यम है जो सूचनाओं को भयानक शातिरता से ज्ञान बनाकर पेश करता है, कम से कम मुझे तो साफ ऐसा ही दिखाई देता है। सूचनाएं जिस आलोचनात्‍मक विवेक की भट्टी में पककर ज्ञान का दर्जा हासिल करती हैं वह इंटरनेट के माध्यम में से सिरे से गायब है- और ऐसा नहीं कि ये अनायास हो गया काम भर है, कम से कम हमें तो अब यह मानने का मन करता है कि ऐसा शातिरता से सप्रयोजन किया जा रहा है मसलन जिस तीव्रता से किसी छोटे मोटे विषय पर गूगल से की गई छोटी सी मांग बिजली की फुरती से लाखों सुचनाओं को आप पर फेंकती है, उससे खुद अपने विवेक के खो जाने का भय होता है। ये अनंत सुचनाओं का स्वामी होना या अनंत सुचनाओं तक पहुँच होने का अहसास होना एक छद्म किस्‍म का आत्‍मविश्‍वास प्रयोक्‍ता में भरता है कि हम सब जानते हैं या जान सकते हैं, आभासी दुनिया से वास्‍तविक दुनिया में आ पसरा ये छद्म आत्‍मविश्‍वास भयावह है।

एक अन्य बात जो हमें इस माध्‍यम में परेशान करती है वह है, असमानताओं को बेहद सुविधाजनक तरीके से नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति। आर्थिक व सामाजिक को जाने भी दें तो भी कम से कम डिजीटल डिवाइड जैसी असमानता तो विचार क्षेत्र में होनी ही चाहिए पर शायद है नहीं। अगले युग की पूंजी सूचना है इसका अहसास कर चुके लोग पहला काम ये करना चाहते हैं कि अधिकाधिक सूचना को अपने नाम कर लेना चाहते हैं पर इस क्रम में ऐसे अनेकानेक लोग तैयार हो रहे हैं जिनकी पहुँच आर्थिक, सामाजिक, भाषिक कारणों इन सूचनाओं तक उतनी निर्बाध नहीं है जितनी कुछ अन्‍य की है। ये माध्‍यम सूचना समाज में भी सूचना सर्वहाराओं को तैयार करने में अहम भूमिका अदा कर रहा है और जाने अनजाने हम इस दुष्‍कृत्‍य में हम इसके मोहरे बन रहे हैं।

ऊपर की बाते हैं और भी होंगी (इसी बात को लें कि इस विषय पर इंटरनेट पर अच्‍छे शोधपत्र खोजने की कोशिश के कुछ खास नतीजे नहीं निकले) पर चूंकि विकास यूअर्न नहीं लेता इसलिए रास्‍ता तो इस माध्‍यम कोस्‍वीकार करने से ही निकलेगा- भाषाई रूप से विविध अंतर्जाल इस दिशा में एक सही कदम हो सकता है शायद।

2 comments:

ALOK PURANIK said...

सत्यवचन महाराज

Neeraj Rohilla said...

मसिजीवीजी,
वर्तमान की स्थिति पर एक बहुत ही सधा हुआ लेख लिखा है । कुछ मिलते से विषय पर हमने भी लेख लिखा था, समय मिले तो देखने का कष्ट करें ।

http://antardhwani.blogspot.com/2007/07/blog-post_15.html

साभार,