राजकोट में पूजा चौहान को जो करना पड़ा उससे यह सारा समाज और खासतौर पर पितृसत्ता कटघरे में खड़ी होती है। राखी सावंत जैसी मॉडल व अभिनेत्रियॉं अक्सर नग्नता का उपयोग करती हैं पर वह कामुकता का एक बाजार होता है। नग्नता के सौंदर्य से भी सुनील दीपक हमारा परिचय करवा चुके हैं जहॉं सामूहिक नग्नता एक कलाकृति बन जाती है पर चौथी जमात तक पढ़ी पूजा किसी कलाकृति के लिए निर्वस्त्र नहीं हुई, न ही वह कामुकता की जिन्स का व्यापार कर रही थी- वह प्रतिशोध ले रही थी- प्रतिरोध कर रही थी अपनी ससुराल वालों, अपने पति के विरुद्ध जो उसका जीना मुश्किल किए हुए थे। ये प्रतिरोध की सृजनात्मकता थी और इस नग्नता से समाज की- उसी समाज की जिसमें गोत्रो के लिए, दहेज के लिए, जाति के लिए, परिवार के सम्मान के लिए स्त्रियों को मार दिया जाता है या मरने पर विवश कर दिया जाता है।
हो सकता है लोगों को लगे कि क्या क्या सिर्फ यही रास्ता था पूजा के बाद- यकीन मानिए वह जिस रास्ते को चुनती यही पूछा जाता। हमारी एक मित्र थी अर्चना, अर्चना मिश्रा ( संजयजी उंची जाति की ब्राह्मण) उसने एक दलित से विवाह किया- जैसा कि हममें से अधिकांश पुरुष होते हैं- ये दलित युवक भी था- फिर दौर शुरू हुआ प्रताड़ना का और 24साल की अर्चना, शोध छात्रा- स्वावलंबी शिक्षिका पंखे से लटक गई- सबने यही सवाल उठाया – ऐसा क्यों किया- प्रतिरोध करती, कोई और तरीका अपनाती।
पर मुझे तब भी लगता था अब भी लगता है और शिद्दत से लगता है कि हर प्रतिरोध अलग होता है तथा प्रतिरोध का हर तरीका मौलिक होता है। आत्महत्या भी प्रतिरोध ही है- हमें कायरता लगती है क्योंकि हम खुद को कटघरे में देखना नहीं चाहते। बेसबाल बैट हाथ में लेकर निर्वस्त्र हो गली में ललकारना भी प्रतिरोध ही है- किसी को बेशर्मी लगती है क्योंकि वह पूरे समाज को कटघरे में नहीं देखना चाहता।
11 comments:
शर्मसार तो हुए ही है ।चाहे शर्मसार कितने हुए है यह अलग बात है ।प्रतिरोध का यह तरीका भारत जैसे देश के लिए वाकई शॉकिंग था । जहाँ स्त्री को हमेशा से घर की इज़्ज़त का वास्ता दे देकर घर के लोग अपमानित करते रहे उत्पीडन करते रहे उनके खोखलेपन और मानसिक शोषण को धता बताते हुए पूजा का यह प्रतिरोध एक असरकार तमाचा साबित हुआ है ।
बेहद अफ़सोस जनक घटना है यह कि एक महिला को बच्ची पैदा करने पर उसको घर से निकल जाने को कहा जाये।
पता नही हम कब एक सभ्य समाज बन पायेगे,इनसान के अंदर का जानवर कब बाहर निकल आये कॊइ भरोसा नही...?
खबर पढ कर दिल दहल गया कि लोगों को महज जीने के अधिकार के लिया क्या क्या सहना पढता है.
मसिजीवी जी,
यह तो है ही दिल दहलाने वाली खबर पर एक बात से मैं असहमत हूँ वह है राखी की कामुक नग्नता…पर जरा सोंचे की इस नग्नता को देखने वाला कौन है…एक बड़ा बाजार है इनका…राखी जैसी लड़कियाँ हम पुरुष की कामुकता पर बहुत भरी व्यंग कर रही हैं जिसके पिछे हमने घुड़-दौड़ मचा रखी है…।
शर्मनाक-बेहद अफसोस जनक.
अभी और कितनी ही पूजाऎ और अर्चनाऎ हमारे समाज में कैद हैं उन घरों में जो स्त्री का सम्मान करने का भ्रम बनाऎ रखने के सदियों पुराने नुस्खों पर अमल करते आ रहे हैं !
यह मुल्क अपने बर्बर खोल में घुसने को तैयार है... इसका कुछ नहीं किया जा सकता... इस मुल्क को पूजा जैसी इरादे वाली महिला ही औकात बता सकती है...
समझ नही आ रहा कि क्या हो रहा है जो औरत एक माँ है बहन है जिसकी कोख से ही पुरूष जन्म लेता है उसी का निरादर...बेहद शर्म की बात है...
आज पूजा के साथ एसा हुआ है कल किसी और के साथ भी हो सकता है...और हुआ भी होगा जो हमे नजर नही आया होगा...
सुनीता(शानू)
( संजयजी उंची जाति की ब्राह्मण)भाई हम जानना चाहते हैं कि इसका मतलब और मकसद क्या है? कौन से संजय जी को संबोधित है यह वाक्य?
अनूपजी हाल में दिल्ली के पत्रकार मित्र संजय तिवारी जी ने गोत्र (और ब्राह्मणत्व) की 'वैज्ञानिकता' पर अपनी राय रखते हुए पोस्टें लिखी थीं- उन्हीं का संदर्भ है-
इन सब क्षुद्रताओं का लोप नहीं हो गया है न ही इनके नाम पर होने वाले अत्याचार खत्म हो गए हैं- जो इनका अतिक्रमण करते हैं उन तक के जीवन में ये अत्याचार जारी रह सकता है- यही संकेत है ?
आपको क्या लगा ? :)
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