यूँ तो ब्लॉगराइनें भी मनुष्य प्रजाति की ही प्राणी होती हैं और यह वृत्ति उन्होंने अपनी पसंद से नहीं चुनी होती वे इस दुनिया में धकेल दी गईं होती हैं। उनके पिताओं ने या खुद उन्होंने तो अच्छे खासे खाते पीते और जिंदा इंसानों को चुना था पर बुरा हो उस आलोक जो ये लिख मारा।
नमस्ते।
क्या आप हिन्दी देख पा रहे हैं?
यदि नहीं, तो यहाँ देखें।
हाँ भैया हम तो देख पा रहे हैं पर क्या तुम देख पा रहे थे कि ये लिखकर तुम कितने घरों की बरबादी का सामान लिख रहे हो। मुआ मरद सुबह से शाम तक नौकरी पीट कर आता है और घर में घुसते ही बिना कमीज उतारे, जूते रैक में रखे सीधा कंप्यूटर की ओर लपकता है, कंप्यूटर ऑन करके बाथरूम में घुसता है ताकि जब तक वापस आए कंप्यूटर ऑन हो जाए और फिर गिटर पिटर शुरू।
....हम तो खरीदी हुई लौंडी हो गई हैं अरे इससे तो बाहर कोई चक्कर वक्कर ही चला लेता कम से कम घर में तो हमारा होता। ओर फिर तब तो तमाम दुनिया की सहानुभूति हमारे साथ होती। अब सारी दुनिया समझती है कि कितना शरीफ आदमी है सर झुकाए मोहल्ले भर से गुजरता है किसी की तरफ ऑंख उठाकर देखता तक नहीं- अब कौन बताए कि देखेगा क्या खाक चलते चलते तक तो दिमाग नारद पर अटका होता है...मन मस्तिष्क ऑनलाइन होता है टिप्पणियॉं सोची जा रही होती हैं स्माइली लग रही होती हैं...हाय मॉं मेरे ही साथ ऐसा होना था। ओर यह प्रोषित पतिका विरहिणी जार जार रोती है। वह अचानक त्रिलोचन की चम्पा बन जाती है-
चम्पा काले पीले चिट्ठे नहीं चीन्हती...
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नारद पर बजर गिरे
इस चिट्ठा प्रेरित विरहावस्था का आलम यह है कि पति पर अब धमकियों का असर नहीं होता...मायके चले जाने को वह अवसर की तरह लेता है और लौटने पर उसके चिट्ठे का टैंपलेट बदला हुआ होता है...कई जुगाड़ी लिंक उसने जॉंच लिए होते हैं, उसके गूगलटॉक में कई नए चिट्ठेकार जुड़ गए होते हैं। पत्नी मन मसोसका अगली बार मायके न जाने की प्रतिज्ञा करती है। इस विरहावस्था में वह विरह की दसो दशाओं से गुजरती है।
अभिलाषा- आज जब ब्लॉगर आएगा तो उसे ब्लॉग नहीं मैं याद होंगी, या काश आज तीन घंटे बिजली न रहे।
चिन्ता- कहीं मुआ रास्ते में ही किसी साईबर कैफे में न घुस गया हो।
स्मृति- उसे याद आते हैं वे रात दिन....जब कोई कंप्यूटर न था, नारद न था...बस मैं थी और तू था।
गुणकथन – वह बहुत संवेदनशील था, प्यार करता था मतलब जो कुछ वह प्रोफाइल में लिखता है चिट्ठों में बताता है पहले सच में वह ऐसा था।
उद्वेग – सौतन कंप्यूटर के पास रखे होने के कारण ए.सी. की हवा भी लू के समान प्रतीत होती है।
प्रलाप - हाय।। इस नारद को, आलोक को, चिट्ठे को मेरी हाय लगे...नारद पर बजर गिरे
उन्माद – आज...आज या तो इस घर में मैं रहूँगी या ये कंप्यूटर....(फिर इसका मतलब समझ में आ जाता है कि कंप्यूटर का विरहिणी कुछ बिगाड़ नहीं पाएगी इसलिए शांत हो जाती है)
व्याधि – अब क्या होगा...इस चिंता में ब्लॉगराइन बिस्तर पकड़ लेती है- कमबख्त ब्लॉगर इस पर भी साथी बलॉगर से राय लेकर ही कुछ करने का विचार करता है।
जड़ता – अब ब्लॉगर के आने की घंटी बजती है, बलॉगराइन पर कोई असर नहीं होता वह सुख दुख से दूर हो गई है।
मरण- इसका वर्णन निषिद्ध है वरना ये भी संभव है।
तो हे चिट्ठाकारो।। जागो अपने अमर्त्य चिट्ठाजीवन में ब्लॉगराइन के प्रति इतने निष्ठुर न हो जाओ। वैसे है तो ये हमारी धूर्त ब्लॉगिंग ही कि ब्लॉगिंग के अनाचार को भी एक पोस्ट बना दिया जाए पर क्या करें आदत से मजबूर हैं।
23 comments:
वाह वाह वाह
मगर हम जैसों के लिए जिनकी ब्लागराइन न हो, सिर्फ़ ब्लाग ही हो, बात बहु चिंता की नहीं है. फ़िर भी हमारी सारी सहानुभूति ब्लागराइनों के साथ है.
हमारी ब्लोगराईन बहुत खुश है ..पढ़के बोली इ तो हमरी पूरी की पूरी बात ही लिख दिये हैं .. वैसे सचमुच काफी अच्छा लिखा और सही भी..
बहुत सही है। लेकिन यह सब बातें सबको काहे बता दिये आप। वो तो कहो हमारी श्रीमती ब्लाग पढ़ती नहीं वर्ना सारी बातें जान जातीं।
:)
ghughutibasuti
वाह-२, क्या बात है। लेकिन हमार तो कोई ब्लॉगराईन है ही नहीं!! :( हम प्रतिज्ञा करता हूँ कि जिस दिन हो गई उस दिन खुशी में २ ब्लॉग और खोल दूँगा। :D
महोदय,
मील का पत्थर है, यह आलेख।
हाँ भैया हम तो देख पा रहे हैं पर क्या तुम देख पा रहे थे कि ये लिखकर तुम कितने घरों की बरबादी का सामान लिख रहे हो।
और तो और आलोक जी ने तो जगायी अलख (लगायी आग) और बन गये दृष्टा! लोग चिट्ठा / नारद देखें और वे लोगों को।
प्रत्येक वाक्य, (पर/स्व)-अनुभूत का कितना गहन अध्ययन! सहानुभूति की उपमा।
वाह वाह, मजा आ गया पढ़कर। बहुत समय बाद ऐसी लाजवाब पोस्ट पढ़ने को मिली, इतना अच्छा आप ही लिख सकते थे।
"मुआ मरद सुबह से शाम तक नौकरी पीट कर आता है और घर में घुसते ही बिना कमीज उतारे, जूते रैक में रखे सीधा कंप्यूटर की ओर लपकता है, कंप्यूटर ऑन करके बाथरूम में घुसता है ताकि जब तक वापस आए कंप्यूटर ऑन हो जाए और फिर गिटर पिटर शुरू।"
अमां यार आप ज्योतिषी तो नहीं हो, ये तो बिल्कुल मेरी कहानी है। स्कूल में फ्री पीरियड में, बस में घर आते वक्त दिमाग ऑनलाइन, मन में नारद। अगली पोस्टों पर चिंतन, क्या लिखना है कब लिखना है। घर में आते ही आपके बताए अनुसार सीधे कंप्यूटर पर आकर ऑन करके बाथरुम में घुसना, खाना खाने जाना इतनी देर में कंप्यूटर ऑन, नारद जी कमिंग, नारद जी कमिंग ब्लॉग पढ़िंग, ब्लॉग पढिंग तो टिप्पियायिंग, पढिंग एंड टिप्पियायिंग..., पढिंग एंड टिप्पियायिंग...
"साफ बता दें कि ये हमारी या हमारी पत्नी की व्यथा नहीं है क्योंकि हमारी गत तो और बुरी है। एक ही उल्लू काफी होता है बरबादे गुलिस्तां करने को यहॉं तो सभी ब्लॉगर हैं....पर वो फिर कभी। आज तो शुद्ध ब्लॉगराइनों पर लिखा जाए।"
आपकी ब्लॉगराइन खुद ब्लॉगिया हैं ? कौन हैं वो, हमें तो मालूम ही नहीं ?
तो अमित भाई खोज शुरु करदो,
गर किसी महिला को एक ब्लागिया स्वीकार है तो संपर्क करे अमित जी से, साथ मे दो ब्लोग मुफ़्त
(एक बिमारी के साथ दो बिमार मूफ़्त)
व्यथा का अच्छा चित्रण किया है और हमने तो ब्लोग लिखना ही इसी लिए शुरू किया है।
मास्टरनी-मास्टराइन ,डॉक्टरनी-डोक्टराइन में फर्क है।वैसे ही ब्लॉगरनी भी ब्लॉगराइनों से अलग हुईं,उनकी व्यथा भी अलग होगी ।
महिला मास्टर = मास्टरनी,मास्टर बो =मास्टराइन
बहुत शानदार लिखा है..
अब दूसरी श्रेणी के ब्लॉगरों की भी व्यथा लिख डालिए...
हमें अपना भविष्य दिख गया है।
भई वाह।आपने तो कलम तोड़ कर रख दी। बधाई।
wah :):):)
हमारी श्रीमतीजी भी यही कहा करती थी कुछ दिनों पहले तक। वो हमें सब्जी में नमक की पूछें और हमारा ध्यान टिप्प्णी में हो और मुंह से निकल जाता कम है। फिर क्या होता बताने की जरूरत शायद नहीं है ..........:)
मजेदार लेख, दिल को गुदगुदाने वाला।
अमित, रियाज, अतुल बंधु लोग आप शराब पीते हों, सिगरेट पीते हों, 'इधर उधर' कुछ करते हों और छुपा जांए ...कोई बाम नहीं पर शादी के समय अपनी भावी पत्नी को ये जरूर बता दें कि आप ब्लॉगर हैं (कयोंकि वे तो मनुष्य समझकर शादी के लिए राजी हुई होंगी)
सभी मित्रों का इसे पसंद करने के लिए शुक्रिया।
अनूपजी वो.... ही... ही... ही तो मैं कहूँ कि आप इ...तना लंबा लेख लिख कैसे पाते हैं, ब्लॉगराईन को गच्चा दिए हुए हैं कोई।
अमां श्रीश क्या पूछते हो..पूरी रामायण के बाद...सृजन से पूछो नहीं तो जब आन लाइन मिलो तब पूछना।
सागर...आपको अभी तक सब्जी रोटी मिलती है घर में...पहले हमें भी मिलती थी,...वो भी क्या दिन थे :)।
मजा आ गया!!
भाई वाह, मज़ा आ गया.
क्या खूब लिखा है.
हम तो अभी अभी नया शौक पाले हैँ अतः अभी इस दौर से नही गुजरे.क्या पता कब यह नौबत आ जाये.
हाँ, ब्लौगरानी तथा ब्लौगराइन का फर्क़ तो होना ही चाहिये.
अरविन्द चतुर्वेदी ,भारतीयम्
http://bhaarateeyam.blogspot.com
क्या भाई, इस पोस्ट को कलटी कर देते ना, काहे छपवाये। कही इधर उधर की सारी ब्लगाराईन एक हो गयीं तो? बहुत सही कथा लिखी है ब्लागर की और सही व्यथा कही है ब्लागराईन की।
थोड़े समय बाद, वैवाहिक विज्ञापन कुछ इस तरह होंगे:
जरुरत है सुन्दर,सुशील,गृहकार्य कुशल युवती हेतु योग्य वर की..................
ब्लॉगर, चिट्ठाकार, पत्रकार और टीवी एंकर नीड नाट एप्लाई।
एकदम झकास रहा यह प्रयास… व्याख्या मजेदार रही :)
अभी लौटे बाहर से, मजा आ गया आपका ब्लागराईन आख्यान देखकर. बहुत खूब, गुरु. सही संभाले माहौल, जब हम यहाँ नहीं थे.... साधुवाद संभालने के लिये, कितना ख्याल रखते हो. :)
हा हा!!!
बहुत बढ़िया रहा, लगे रहो!!!
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