मसिजीवी ने पिछले दिनों मुझ पर एवं मेरे चिट्ठे सारथी पर एक लेख लिखा था:
आइए शक करें......क्या शास्त्रीजी का सारथी एक निजी चिट्ठा है इस लेख में उन्होंने मेरे चिट्ठे के बारें में एवं मेरे बारे में कई बातें पूछी हैं, एवं उन बातों के जवाब में मैं निम्न बातें पाठकों के ध्यान में लाना चाहता हूं:
1. सारथी वाकई में मेरा निजी चिट्ठा है, एवं इसको मैं अकेले ही संभालता हूं. यही नही, मेरे अपने 25 और जालस्थल हैं जिनको मैं अकेले ही संभालता हूं. यदि आपको एक पर ताज्जुब हो रहा हो तो 25 सुनकर आप आसमान से गिर पडे होंगे. यदि आपको लगता है कि एक अतिमानव ही अकेले यह सब कुछ कर सकता है तो यह आपकी गलतफहमी है. आप भी यह सब कुछ कर सकते हैं, बशर्ते आप
भी वही सब तय्यारी करें जो मैं ने की है, एवं आप भी वे सब गुर सीख लें जिनका प्रयोग मैं करता हूं.
2. सामान्य से अधिक दक्षता से काम करने के लिये काफी तय्यारी करनी पडती है, जिस के बारे में इस लेख में मैं सिर्फ इशारा मात्र करूंगा. लेकिन सारथी के काफी सारे पाठकों के आग्रह पर मैं "सफलता के गुर" नामक एक लेखन परम्परा अपने चिट्ठे पर चालू करने जा रहा हूं. यदि 100 लोग भी इन बातों में से 10% को अपनायें तो मैं अपने आप को धन्य मानूंगा, क्योंकि मेरा जीवन समाज-सेवा एवं सामाजिक नवीकरण के लिये समर्पित है. सिर्फ 10% जैसी छोटी संख्या मैं इसलिये रख रहा हूं क्योंकि जीवन में
दक्षता बढाने के गुर और तत्व के बारे में हर कोई सुनना पसंद करता है, लेकिन इसके लिये जरूरी कीमत चुकाने के लिये एवं समय देने के लिये बहुत कम लोग तय्यार होते हैं. वे यह भूल जाते हैं कि वे सही निवेश करें तो परिणाम चुकाई गई कीमत से 1000 गुने या अधिक होता है. हम सब कामना करने में व्यग्र, एवं कर्म करने में आलसी हैं.
3. अब मेरे बारे में: पिछले 20 साल से मैं समय-नियंत्रण के बारे में बहुत जागरूक हूं. घर में आज भी टीवी नहीं है. आवश्यक सारी जानकारी एवं खबर अखबार, पुस्तकों एवं जाल से लेता हूं. मित्रों के साथ राजनीति, क्रिकेट, परनिन्दा में समय नहीं बर्बाद करता. हर तरह के अनावश्यक गतिविधि, कार्यक्रम, आदि से दूर रहता हूं. जहां तक हो सके यात्रा रेलगाडी से करता हू, जिससे वह समय पढनेलिखने में बिता सकूं.
4. दक्षता बढाने के लिये कहीं भी कुछ भी दिख जाये, मिल जाये, तो आजमा लेता हूं. ठीक लगे तो तो वह मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाता है. बचपन में ही टंकणकला सीख ली, अत: अंग्रेजी में 60 से 90 शब्द प्रति मिनिट वेग से टंकण कर लेता हूं. सौ रुपये के कीबोर्ड के बदले 3500 रुपये का "प्राकृतिक कीबोर्ड" प्रयोग में लाता हूं जो हर तरह से मेरे टंकण को आसान बनाता है. नियमित रूप से जो जानकारी बार बार टंकित करता हूं (जैसे मेरा नाम, पता, जाल पता) उनको एक "क्लिपबोर्ड" तंत्राश में रखता हूं एवं एक से तीन कीस्ट्रोक में दो शब्द से लेकर 100 शब्द तक का मजूमन छाप लेता हूं. बैजू बावरे के समान मैं दक्षता-वर्धन के साधन/तंत्राश तलाशता हूं. (इन में से सारे हिन्दी सक्षम औजार अगले महीने से आप सारथी से प्राप्त कर सकते हैं. अंग्रेजी सक्षम औजार अभी भी आप
http://mustdownloads.com या http://hi.mustdownloads.com से प्राप्त कर सकते है). व्यायाम करते समय टेपरिकार्डर से भाषण सुनाता रहता हूं. समय की दुहरी कीमत वसूल हो जाती है.
5. अपने आप को चुस्त एवं तंदुरुस्त रखने के लिये मैं नियमित रूप से व्यायाम करता हूं, शाकाहार को जीवन में महत्वपूर्ण मानता हूं, जम कर सोता हूं, एवं रोज इतना पानी पीता हूं कि मेरे आयुर्वेद डॉक्टर को भी हैरानी होती है.
6. हर काम में मैं दूसरों को शामिल करने की कोशिश करता हू. इससे भार घटता है, दक्षता बढती है, एवं इस "सहक्रिया" के कारण इस में भागीदार हर व्यक्ति को परिणाम बहुत अधिक मात्रा में मिलता है. उदाहरण के लिये, मेरे चिट्ठे पर मैं अकसर अन्य चिट्ठाकारों के लेख एवं कवितायें (कडी, टिप्पनी, विश्लेषण सहित) छापता हूं. इससे उनको नए पाठक, अतिरिक्त प्रशंसा, एवं एक नये पाठकसमुदाय से सम्मान मिलता है. लेकिन इससे मुझे कोई नुक्सान नहीं होता, बल्कि इस कारण मेरे चिट्ठे
पर जनोपयोगी जानकारी की मात्रा बढती जाती है एवं पाठक भी बढते हैं. एक नये लेखक/रचनाकार को ढूंढ कर जब मैं उसको सारथी के पाठको के समक्ष प्रस्तुत करता हूं तो वह इस प्रोत्साहन के कारण कहीं से कहीं और पहुंच जाता है. यह आसान काम नहीं हैं क्योंकि हम भारतीय लोग अपना नाम एवं अपने हिस्से की प्रशंसा दूसरों के साथ बांटना पसंद नहीं करते. आधिकतर चिट्ठे अपने जमे जमाये पाठकों के सामने अन्य प्रतिभाओं को लाकर अपनी जमी जमाई "ग्राहकी" खराब करना पसंद नहीं करते. मैं ने इस सोच के विपरीत काम किया, एवं मुझे (कई गुना ब्याज सहित) उसका परिणाम मिल रहा है.
7. और भी बातें हैं जो मैं आप लोगों के समक्ष रखना चाहता हूं. अपनी सफलता के किसी भी कदम को मैं रहस्य नहीं रखना चाहता. लेकिन इस के लिये कई लेख लगेंगे,जो जल्दी ही सारथी पर प्रगट होंगे. ये लेख मैं मसिजीवी को नहीं दूंगा. (उनको एक लेख मुझ पर छापो, एक मुझ से लो का मोलभाव करूंगा. फायद दोनों को है).
8. मसिजीवी के लेख के शीर्षक पढ कर बहुतों को लगा के वे मेरी आलोचना कर रहे हैं. ऐसा नहीं है. उनके लेख का चरमोत्कर्ष उनके आखिरी वाक्यों में है जहां उन्होंने कहा है: "हम तो मानते हैं कि शास्त्रीजी के रूप में कोई दैवीय पुरूष, शायद खुद ईसामसीह हिंदी के उत्थान के लिए हमारे बीच हैं". प्रिय
मसिजीवी, प्रिय पाठकगणों, मैं इस योग्य नहीं कि मुझे इतने उन्नत आसन पर बैठाया जाये. मैं तो सिर्फ ईसा का चरणसेवक मात्र हूं, जो "सारथी" के द्वारा ईसा के निम्न निर्देशन का पालन करने की कोशिश कर रहा हूं: "अपने पडोसी से अपने समान प्रेम करो. जो तुम मेरे नाम में उनके लिये करोगे, मैं मानूंगा कि वह तुम ने मेरे लिये -- अर्थात अपने स्वामी ईसा के लिये -- किया"
9. मसिजिवी ने अपने लेख के अंत में लिखा, "हमें उनका पूरा समर्थन करना चाहिए- कम से कम मैं तो करता ही हूँ। इसलिए इसे सिर्फ निजी चिट्ठा न माना जाए उससे कहीं ‘अधिक’ मानकर पढ़ा जाए।"
प्रिय मसिजीवी, आप से 2500 किलोमीटर दूर स्थित मुझ एक पराये व्यक्ति के कार्य को देख कर आप ने इस तरह से जो प्रोत्साहन दिया है उस के लिये आपको मेरा शत शत नमन !!
पुनश्च: सारथी चिट्ठे के पास बहुत सर्वर-स्थान है. आप में से कोई भी व्यक्ति हिन्दी या हिन्दुस्तान के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये किसी भी प्रकार की रचना सारथी पर छपने के लिये भेजें तो उसका स्वागत होगा. सम्पादन हम कर लेंगे. क्रांतिकारियों एवं हिन्दुस्तान के प्राचीन एवं अधुनिक महान नायकों की जीवनियों में आजकल हमारी विशेष रुचि है।
18 comments:
नमन है आप को शास्त्री जी..और मसिजीवी को साधुवाद कि आप पर शक कर के उन्होने आप को अपने बारे में बताने के लिए प्रेरित किया..
शास्त्री जी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा.आगे भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा उनसे इसी आशा है.आपको भी धन्यवाद शक करने के लिये.
शास्त्री जी का व्यक्तित्व और कार्य सचमुच अनुकरणीय है
मसिजीवी भाई और शास्त्री जी, आप दोनों बधाई के हकदार हैं। शास्त्री जी की कार्यक्षमता और कुशलता दोनों अद्भुत है। वाकई में अगर शास्त्री जी की दस फीसदी सलाह भी अपना ली जाये तो काफी कायाकल्प मुमकिन है।
सराहनीय!!!
मसिजीवी जी, अगला शक किस पर और कैसा?
शास्त्री जी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा
मैने पहले भी लिखा था, फिर कहूँगा, शास्त्रीजी, सिर्फ सारथी ही की नहीं सूत्रधार की भी भूमिका निभा रहें है। साधुवाद,
शुक्रिया मस्टडाउनलोड्स को जगह देने का।
भईया मसिजीवीजी,
शास्त्रीजी को नमन है, पर उनकी राह पर गमन न करें। इत्ती अनुशासित और अच्छी जिंदगी बहूत बोरिंग हो जाती है। अपना मानना है कि अच्छे सदाचारी आदर्श अनुकरणीय आचरण बहुत बोरिंग हो जाते हैं। क्या करना है बोरिंग जिंदगी का।
शास्तीजी,
आपके व्यक्तिगत जीवन के बारे में और आपकी महान आदतों के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। यह हमारा सौभाग्य है कि ऐसा ऋषितुल्य महापुरुष हिन्दी की सेवा में समप्र्पित है।
अच्छा है। आलोक पुराणिक भी सही कह रहे हैं।
" ALOK PURANIK said... शास्त्रीजी को नमन है, पर उनकी राह पर गमन न करें। इत्ती अनुशासित और अच्छी जिंदगी बहूत बोरिंग हो जाती है। अपना मानना है कि अच्छे सदाचारी आदर्श अनुकरणीय आचरण बहुत बोरिंग हो जाते हैं। क्या करना है बोरिंग जिंदगी का।"
मेरे जीवन में हर तरह के आवश्यक आनंद के लिये पर्याप्त समय है. बीबी बच्चों के भी बहुत समय दे पाता हूं. अनुशासित जीवन का मतलब हर तरह से अनुशासित जीवन है -- जहां धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, एवं परमानंद की गुंजाईश है -- यांत्रिक जीवन नहीं.
मसिजीवी जी और सास्त्रीजी दोनों को साधूवाद..
शास्त्री जी के लिखे "सफलता के गुर" सीखने की तमन्ना है।
शास्त्री जी के बताए कुछ प्वाइंट्स तो मैं भी फॉलो करता हूँ पर सभी को फॉलो करना उन जैसे व्यक्ति के लिए ही संभव है। धन्य हैं शास्त्री जी!
वैसे एक बात शास्त्री जी के बारे में मैं भी जानना चाहता हूँ। वे अपने नाम के साथ 'शास्त्री' शब्द लगाते हैं, यह 'डॉ.' की तरह ही एक डिग्री (उपाधि) है जो कि संस्कृत में १०वीं कक्षा के बाद पाँच वर्ष की तथा १२वीं कक्षा के बात तीन वर्ष की अवधि का पाठ्यक्रम है। क्या शास्त्री जी ने इसे संपन्न किया है यदि ऐसा है तो वे विलक्षण व्यक्ति हैं कि विज्ञान के साथ-साथ संस्कृत का भी इतना लंबा और गहन कोर्स कर रखा है।
अभी तक एकमात्र ऐसे व्यक्ति जिनको मैं जानता हूँ वे हैं डॉ. शक्तिधर शर्मा जो कि पंजाब विश्वविधालय में भौतिकी विभाग के HOD हैं। नाभिकीय भौतिकी में पीएचडी के साथ-साथ वे शास्त्री तथा आचार्य का कोर्स भी किए हुए हैं। कुराली से निकलने वाले मार्तण्ड पंचाग के कर्ता-धर्ताओं में वे शामिल हैं।
साधुवाद शास्त्री जी का और मसिजीवी जी का इस पत्र को हम तक लाने के लिये.
@Shrish
यह एक सुखद संयोग है!! संस्कृत की जुड्वां बहन ग्रीक भाषा के अध्ययन के कारण मुझे शास्त्री सम्बोधन मिला है. मै नाभिकीय क्वाण्टम भौतिकी में पीएचडी हूं.
शास्त्री जी को नमन्.
शास्त्री जी, आप कौन सा प्राकृतिक कुंजीपट इस्तेमाल करते हैं हमे भी बताएं - उसका ब्रॉण्ड नाम, खासियतें वगैरह...
शास्त्रीजी, पढ़कर आपके बारे में जानने का मौका मिला। बिना किसी से बात किये जो पूर्वाग्रह हमारे मन में घर कर लेते हैं मैं भी उसका शिकार रहा हूं, ईमानदारी से कहूं तो मुझे ये लगता था कि दूसरे चिट्ठों की तारीफ/लिंकिंग कर एक बार आप जैसे ही लोकप्रिय होंगे कि आप का असल अजेंडा, यानी जीसस का प्रचार, शुरु हो जायेगा। ब्लॉगिंग एक Narcissist प्रक्रिया है, लोग तारीफ और नाम के लिये ही यहाँ आये हैं, पर कई लोग इस बात का फायदा उठा कर अपना उल्लू सीधा करने आ जाते हैं। खुशी हुई जानकार कि आप उनमें से नहीं हैं।
एक बात औरः अपने चिट्ठे पर दूसरों के पोस्ट छापने की प्रथा हिन्दी चिट्ठाजगत में लोकप्रिय न सही पर नई नहीं है, रचनाकार में रवि रतलामी दूसरों की ही रचनायें छापते आ रहे हैं, और नुक्ताचीनी पर भी ये हुआ है, इस कड़ी को देखियेगा। और अंत में गुर्दे की पथरी के शिकार के रूप में दिन में ढेर सारा पानी पीने की बात का में कायल हूं।
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