अमित आजकल कार्टून पर हाथ साफ कर रहे हैं । कार्टून और व्यंग्य की विधा की खास बात यह है कि यूँ तो आप लिख या बना रहे होते हैं पर हाथ के हाथ, हिसाब भी बराबर कर सकते हैं। ये पूरा सृजन ही होता है एक स्माईली, बेचारा पिटने वाला बुरा नहीं मान सकता। कार्टूनिस्ट से बुरा मानने वाला बुरा माना जाता है। अब पिछले दिनों अमित ने ये कार्टून बनाया।
अब जो बेचारे लल्लू के पापा सच में पोस्ट डालते ही तडफने लगते हैं कि एग्रीगेटर पर दिखे तुरंत दिखे वे तो जाहिर है बुरा महसूस कर रहे होंगे, अरुण होते तो छट मेल भेज देते। इसी व्याधि से दु:खी एक अन्य प्राणी ने ब्लॉगवाणी के सौहर पर ही पुकार लगा दी ये हैं चिट्ठाकारी के सुपरस्टार इन वेटिंग आलोक पुराणिकजी- ये भी व्यंग्यकार हैं वही ‘जूता इन स्माइली’ विधा के रचनाकार। इन्होंने ब्लॉगवाणी के विमोचन पर अपनी राय रखी-
रंग संयोजन बहुत धांसू है। फास्ट खुलता है। बस एक चीज का ध्यान रखियेगा कि ब्लागर का विरह टाइम कम होना चाहिए। दरअसल ब्लागर चाहता तो यूं है कि उसके दिमाग में जब पोस्ट छपती है, तब ही ब्लाग एग्रीगेटरों पर आ जाये। पर चलिए इतनी छूट वह देने को तैयार होता है, ब्लाग पर पोस्ट डालने के बाद पांच-सात मिनट में पोस्ट आ जाये, ब्लागर-विरह समय कम होगा, तो ठीक होगा। ब्लागरों की दुनिया में आपका स्वागत है। शुभकामनाएं।
तो भैया पता नहीं मैथिलीजी ने ये कैसे किया है- बताएंगे तो भी अपने को समझ में नहीं आएगा- देबाशीष दादा और अमित समझ सकते हैं इसलिए समझें, पर ब्लॉगवाणी ने ये कर दिखाया है।
जी ब्लॉगवाणी ने एक टैग बनाया है जिसे अपने ब्लॉग पर चेप लीजिए और पोस्टियाते ही इस टैग्ा पर जो खुद आपके ब्लॉग पर है, क्लिक कीजिए और ...जादू.. आपकी पोस्ट एग्रीगेटर पर सबसे ऊपर विराजमान दिखेगा। वो घंटों का इंतजार वो षडयंत्र का आरोप लगाने की सुविधा सब खत्म हो गई। अब बेचारे अरुण पंगेबाज क्या करेंगे- किसे कहेंगे कि हमसे भेद भाव होता है। पर एक दिक्कत है हमने देखा कि पोस्ट करने के बाद टैग को क्लिक करने में भी 5-7 सेंकेंड लग जाते हैं- उतना विरह तो झेलना ही पड़ेगा चिट्ठाकारों को।
हमने इस टैग को अपने ब्लॉग पर चेप लिया है, अब इसमें कोई स्पाईवेयर (देबू दादा ने कुछ बताया तो था अपनी पोस्ट में पर हमें पता नहीं कि क्या होता है..) हो तो हो , हमारे बारे में ऐसा क्या है जो लोग हमसे पूछें तो हम नहीं बताएंगे। हमारा टैग यहॉं है और पोस्ट तैयार है। आप भी आ जाएं मैदान में।
13 comments:
इस तकनीकी चमत्कार पर मैथिली जी को ढेरों बधाइयां.अमित जी की 20 सेकंड की मांग थी उसे 5-7 सेकेंड में पूरा कर दिया.धन्यवाद ...
मसिजीवी जी,
इतने अच्छे लेख के लिये धन्यवाद, ब्लागवाणी के इस नये फीचर को सब तक पहुंचाने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता था. आशा है बाकी सभी को भी ये पसंद आयेगा. हम कोशिश जारी रखेंगे की ब्लागवाणी को ब्लाग लेखकों और पाठकों की पसंद के अनुरूप ही आगे बढ़ाते रहें.
आइला जे क्या हो रहा है ।मै तो चली अपने ब्लाग पर इसे डालने ट-टा .............
अच्छा तरीका है। अब कतार का झंझट खतम।
हम भी इसे अपने ब्लाग पर डालते हैं।
साधुवाद ,पर मसीजीवी जी सही कह रहे है हमारा इस मामले पर हर हफ़्ते कम से कम चार पोस्ट लिखने का इरादा था,वो सिरिल जी ने जड से खत्म कर दिया है,अब तक हम जब पोस्ट ६ /८ घंटे नही दिखे तो पंगा ले लेते थे,अब कैसे लेगे,बहुत दुख भरी बात है जी,आपने हमारे से हमारी पोस्टे लिखने का कारण ही छीन लिया,लेकिन इस से ये बात सिद्ध हो गई है कि ब्लोग वाणि वाले टैकनीकल लोग नही है,अरे जहा टैक्नीकल पंगा ही ना हो,वो लोग कैसे टैक्निकल...?..:)
भईया
मसिजीवीजी
आप तो मित्र हैं, अभी तो हमने ब्लागर मुहल्ले में अपना खोमचा लगाया है और आप अभी सूपर-ऊपर स्टार टाइप इन वेटिग टाइप कुछ बताकर मामला डेंजर किये दे रहे है। जरा खोमचे को कच्ची दुकान होने दीजिये।
मैथिलीजी ने तो कमाल कर दिया है।
सारे विरही ब्लागरों के लिए मैथिलीजी इतिहास पुरुष हो लिये हैं। आज से पांच सौ सालों बाद जब हिंदी ब्लागिंग का इतिहास लिखा जायेगा, तो यह कोई नहीं याद रखेगा कि कौन क्या लिखता था। ब्लागर विरह का खात्मा किसने किया था, सब इस प्रश्न का उत्तर पूछेंगे। मैथिलीजी ब्लाग विरहांतक पुरुष के रुप में याद रखे जायेंगे। न हो तो मैथिलीजी अपना तखल्लुस रख लें-विरहांतक। अहा, क्या धांसू च फांसू नाम बनेगा मैथिली विरहांतक।
नहीं क्या।
आलोक पुराणिक जी की बात का मैं समर्थन करता हूँ - विरहांतक!
पर क्या कोई ऐसा ईजाद मैथिली जी करेंगे कि चिट्ठा लेखक हर आधे घंटे में ऐसी किसी कड़ी को क्लिक करता रहे तो उसका चिट्ठा ब्लॉग वाणी में सबसे ऊपर ही बना रहे ?
ब्लॉगवाणी वालों ने पिंग करने की बहुत अच्छी फीचर उपलब्ध कराई। इसके लिए वो वाकई बधाई के पात्र हैं।
नए-नए एग्रीगेटरों के आने से हम लोगों की मौज हो रही है। :)
खूब! ;)
मसिजीवी भाई,
मैंने आपकी पोस्ट देखी नहीं और मैंने भी ब्लागवाणी के फीचर पर चंद लाइनें लिख दीं। ख़ैर, आपने ज्यादा अच्छा लिखा है। साहित्यकार और साहित्य के पाठक में यही फर्क है।
अरे, हम तो चूक ही गये थे, समझो. अभी ब्लॉगवाणी का टैग लगाते हैं अपनी दुकान पर. आभार बता देने के लिये वरना तो कोई हमें बताया ही नहीम था. आप ही सच्चे साथी निकले.
मालिक शकोशुबा में आप जो हैं, हमसे कई प्रकास बरस आगे निकल चुके हैं। ब्लॉगबानी के जिस स्पाईवेयर की ओर मेरा शक था वो था उनका कथित फ्रीवेयर, और लिंकवेयर और स्पाईवेयर को आप तौर पर समानार्थी माना जाता है।
रही बात इस कड़ी की तो ये जुगाड़ है काम का, पर अपन देखेंगे कि जब सन् 2009 के पूर्वाद्ध में ढाई हजार लोग एक साथ अपने चिट्ठे रिफ्रेश करने का आदेश देंगे तो उनके सर्वर के सीपीयू की सेहत कैसी रहती है। बकिया ई फेसीलिटी कई एग्रिगेटर में है जैसे कि हम ग्रेगेरियस इंस्टॉल किया था कड़ीघर पर, ये डोमेन हम बेचने का मन बनाया पर कोई सरउ खरीदा नहीं तो हम एक्सपायर होने तक इसको जरा दुह रहा हूं, इस पर भी रिफ्रेस किजियेगा तो ताजा पोस्टवा एकदम सरपट दौड़ा चला आयेगा।
कुल मिलकार कोई तूफानी ईजाद नहीं है (क्या? आप सुनें कि हम नारद की जय बोले? ऐसा नहीं है मालिक...हीं हीं हीं हीं)
हे हे हे
हम तो बिना शर्म के यहॉं वहॉं मत पूछों कहॉं कहॉं नारद की जय बोलते ही रहते हैं
जय नारद की।
वेसे भी ब्लॉगवाणी बनानें में तो फिर भी मैथिलीजी के सामने नारद था, नारद क ेसामने तो नारद भी नहीं था। :)
Post a Comment