Tuesday, July 17, 2007

आइए समझें ग़ीक मन को

ग़ीकपन पर इधर कुछ बातें हुई हैं पर हाल में इसे गीकपन से गीकमन की तरफ मुड़ते देखा और अच्‍छा लगा। दरअसल एक किस्‍म के भोंपूवाद के बीच खब्‍त और जुनून की बात सुनना मोहक हैं। ये हमारी प्रिय प्रजाति है- खब्ती और जुनूनी। ऐसा नहीं कि ये केवल प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में ही पाए जाते हैं, बल्कि सच तो ये है कि दरअसल इनके सही अभयारण्‍य तो विश्‍वविद्यालय ही हैं-

हमने डा. साहा के विषय में लिखा था एक बार- पिछले दिनों जब कॉलेज में प्रवेश शुरू होने वाले थे इसलिए कॉलेज खाली सा था- डा. साहा अपनी धुन में पहॅँचे..साथ में दो बच्‍चे थे, एक सहकर्मी के पुत्र उम्र 8 साल और शायद 10-11. गए कोने की सीट पर जाकर जमे और लगे पढ़ाने एक को भिन्‍न (fractions) दूसरे को भी ऐसा ही कोई आधारभूत सा ही कंसेप्‍ट। धोड़ी ही देर में हमारे एक सहयोगी जो गणित पढ़ाते हैं पर कभी खुद साहा सर के ही विद्यार्थी रहे थे वे भी पहुँच गए और जाकर विद्यार्थी मुद्रा में ही बैठ गए- और पंद्रह मिनट में दो शोध छात्र जो साहा सर के साथ पीएच.डी. कर हे हैं वे भी आकर जम गए। संगीत का रसिक कभी नहीं रहा लेकिन इस विचित्र संगम में और जिस कदर डूबकर ये गणित के नामी विद्वान बच्‍चे को भिन्‍न पढ़ा रह थे ये किसी रहस्‍यमयी जुगलबंदी का ही आभास दे रहा था। उनका इसमें रम जाना वह आत्मिक आनंद है जिसके हम कायल हैं- और जिसका पण्‍यकरण (कोमोडिटिफिकेशन) अभी बाजार के लिए मुश्किल होगा, ये जानते हैं। एक नोन लीनियर गणित कर विद्वान एक साथ शोध गणित, भिन्‍न, ब्‍याज  और रीयल एनालिसिस से जूझ रहा है और इतना रमा हुआ है कि सुध बुध नहीं कि दूसरी कक्षा से लेकर पीएच.डी. तक के छात्र एक साथ इकट्ठे कर इस औपचारिक जगह पर कितना मनोरंजक दृश्‍य उपस्थित हो गया है।

साहित्‍य में काव्‍यानंद की रस अवस्‍था जिस साधारणीकरण के बाद उत्‍पन्‍न मानी गई है वह भी रागात्‍मकता की वह उच्‍चावस्‍था है और हमें केवल कविता, फिल्‍म, रंगमंच, पर ही वह प्राप्‍त नहीं होती रही है वरन हर किसी अटके हुए गणित के सवाल, छोटे मोटे कंप्‍यूटर के जुगाड़ या बच्‍चे के बिगड़े खिलोने की सफल मरम्मत में वही आनंद प्राप्‍त होता रहा है- मैं वही कह रहा हूँ, न कि उस जैसा। ये प्राब्‍लम साल्विंग का आनंद एक मानसिक शगल है एक खब्‍त है एक जुनून है। यही ग़ीक मन है।

जिस व्‍यक्ति ने हमारा परिचय इंटरनेट से कराया वह दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के भौतिकी विभाग का एक शोधछात्र था- पूरा फंडू। विश्‍वविद्यालय में तब नवस्‍थापित इंटरनेट सुविधा का समन्‍वयक था। बाद में उसने पीएच.डी ली एक 70 पेज की पतली सी लेकिन दमदार थीसिस पर। ये दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय केलिए हेरान करने वाली बात थी- आखिर विश्‍वविद्यालय का विधान ही ये मांग करता है कि थीसिस 300 के जगभग पेज कर होनी चाहिए। उसने खोजा..लिख दिया कहा यही है नई बात लगे तो मान लो नहीं छोड़ दो। 

 

इसी दौरान  ग्‍वायर हाल के टीचर्स कोर्ट में  प्रो. सी आर बाबू रहते थे सारी जिंदगी हॉस्‍टल में ही बिता दी क्‍योंकि वहॉं से चुपचाप हवाई चप्‍पल पहने अपनी लैब में जा सकते थे सारी रात तो वहीं कटती रही। जब मान मनौवल कर उन्हें प्रो वाइस चांसलर बनाया गया तो उनकी सबसे बड़ी दिक्‍कत थी कि बंगले में रहना जरूरी हो गया और उनके पास कोई सामान ही न था जिसे वे बंग्‍ले में ले जसकर रख सकें। लैब और उद्यान ही उनकी जिंदगी हैं आज तक। 

इनमें से कोई भूखा नंगा नहीं था कि ये लगे कि भई बिना कारण मुफलिसी को ग्‍लैमराइज किया जा रहा है पर दरअसल ये थोड़ा थोड़ा कला कला केलिए जैसा मामला है। कलाकार कलाकृति बनाता है उसे बेच भी देता है पर कला और उस बिक्री से भिन्‍न भी कहीं कुछ हो रहा होता है- ये भिन्‍न वह आनंद है जो उसके उस प्रसन्‍न चित्‍त मूर्ख का आनंद है जो कलाकार,  कारीगर, वैज्ञानिक, रचनाकार,प्रोग्रामर सबके भीतर कहीं बैठा हो ता है। पर एक बात....इनके पास दर्प का अवकाश नहीं..मेरे पास ये है..ये विकसित कर लिया इस दर्प में डूबकर कीचड़ लपेटने के स्‍थान पर उस आनंद में डुबकी क्‍यों न लगाई जाए जो एक और कोड को लिखने से मिल सकती है। और हॉं ये कोड, मूर्ति, फ्रेक्‍टल किसी उत्‍थान, सेवा के लिए नहीं होते ये किसी अन्‍य के लिए नही होते ये बस खुद के लिए होते हैं।

7 comments:

काकेश said...

आपकी इस लेख से मुझे कम से कम कई सवाल मिले..

यदि मै सही समझा तो आपके अनुसार गीक वो है जो बिना किसी बात की चिता किये अपनी धुन में लगा है तो क्या ये केवल प्रोग्रामर ही है या तकनीक का जानकार ही है??यदि नहीं तो क्या एक अतकनीकी व्यक्ति गीक नहीं हो सकता ? या फिर सारे तकनीकी लोग गीक हैं ?

तो फिर हम क्या हैं जो हिन्दी और हिन्दी ब्लॉग के पीछे पागल हुए जा रहे हैं क्यों..? क्यों हो रहे हैं ? क्या केवल हजार लोगों में नाम कमाना है या फिर कुछ पैसा कमाना है या फिर कुछ लोगों से मेल जोल बढ़ाना है .. क्यों हैं हम पागल..यदि फिर पागल हैं तो क्या हम भी गीक हैं...

जबाब हों शायद आपके पास..जानना चाहुंगा.

मसिजीवी said...

सवाल तो मेरे पास और भी ज्‍यादा हैं क्‍या करें :)मुझे नहीं पता कि अपनी खब्‍त व जुनुन में धुने हुए बलॉगर जो ओर छोड़ खुद अपनी छवि की भी चिंता नहीं कर रहे वे गीक हैं कि नहीं...शायद नहीं हैं क्‍योंकि इससे शब्‍दकोशों में बदलाव करने पड़ेंगे- पर इतना तय हैं कि वे गीकमना हैं- ये खब्‍त ही है प्‍यारे और किसी और के लिए नहीं, किसी पर अहसान के लिए नहीं बस खुद के लिए...

Arun Arora said...

कृपया दोनो लोग मिल बैठ कर सारे सवाल तथा हो सके तो जवाब भी एकत्र कर एक बार मे प्रस्तुत करे..
ताकी हम भि अपने सवाल जारी कर सके..?

Udan Tashtari said...

फिर भी नहीं समझ आ पाया गीक मन...अब आपका और काकेश का मामला तय हो जाये और फिर अरुण के प्रश्न-तब एक बार और कोशिश करेंगे समझने की. यहीं किनारे बैठे हैं. :)

Anonymous said...

यदि मै सही समझा तो आपके अनुसार गीक वो है जो बिना किसी बात की चिता किये अपनी धुन में लगा है तो क्या ये केवल प्रोग्रामर ही है या तकनीक का जानकार ही है??यदि नहीं तो क्या एक अतकनीकी व्यक्ति गीक नहीं हो सकता ? या फिर सारे तकनीकी लोग गीक हैं ?

काकेश जी, मेरी समझ और अंग्रेज़ी ज्ञान अनुसार geek का समानार्थ शब्द nerd है। और यह किसने कहा कि गीक केवल प्रोग्रामर या तकनीकज्ञ ही होते हैं? गीक होने का तकनीक वगैरह से कोई लेना देना नहीं है, वह किसी भी क्षेत्र में हो सकते हैं। और सभी तकनीकी लोग गीक नहीं होते। गीक वे होते हैं जो अपने क्षेत्र/कार्य आदि के बारे में हद से अधिक passionate होते हैं और उससे संबन्धित कार्य कर उनको आत्म-संतोष की प्राप्ति भी होती है। बहुत से तकनीकी लोग ऐसे भी हैं जो अपने काम को सिर्फ़ एक काम की भांति लेते हैं, सुबह दफ़्तर आए, काम किया और शाम को निकल गए, तकनीक वहीं दफ़्तर में रह गई। तो वे तकनीकी होने के बाद भी गीक नहीं हुए।

Anonymous said...

ये गीक का मतलब ढीट है जो हर समय हर जगह बदतमीजी वो भी ढीट बन कर दिखाये अपनी अज्ञानता से लोगो के ज्ञान को चिल्ला चिल्ला कर बडा बनाने की कोशिश करे
उदाहरण अमित से अच्छा कहा से मिलेगा ,अगर नाम ही ले लेते ,तो भी सब समझ जाते गीक मतलब अमित

अनूप शुक्ल said...

ये भैये हमारे नाम से अमित के लिये कौन कमेंट कर गया ऊपर। जो कहना है अपने नाम से कहो।