मास्टर हैं और इस प्रजाति के जीव अक्सर 'सम्मानीय' कैटेगरी में बाई डिफाल्ट माने जाते हैं। दसेक साल से बच्चों की हर फेयरवेल में गुरू गोविंद दोनों खड़े.... सुनता रहा हूँ। कोई असर नहीं हुआ होगा ये कहना तो कठिन है पर इससे चिढ ज्यादा होती है। अभी सुनीलजी ने बताया कि बेचारा डाक्टर मेडिकल कॉलेज के जमाने से ही 'सोबर' होने के लिए विवश है। मुझे याद है कि एक दोस्त मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेने वाले साल में अपने फेस्टिवल वाले दिन सिर्फ इसलिए खुश था कि टीशर्ट व जींस पहन कर कॉलेज आ सके' - तब इन्हें कॉलेज सॉबर ड्रेस में शुमार नहीं करता- हम खुद ही टीचिंग प्रेक्टिस में सॉबर कपड़े पहनकर जाने के लिए अभिशप्त थे अपने टीचिंग स्कूल में, ये अगल बात है कि लड़कियों की गत और बुरी थी जिन्हें साड़ी पहननी पड़ती थी- जिसकी अधिकांश को आदत नहीं थी- कुछ बेचारी बैग में भरकर लाती थीं और एनसीसी की वरदी की तरह कॉलेज से पहनकर निकलती थीं- ये सब क्यों था, इसलिए कि शिक्षक एक 'सम्मानित' वर्ग है जिसे इस सम्मान जैसा व्यवहार भी करना चाहिए हु..ह.ह तेल लेने गया सम्मान जिसकी वजह से हम अपने पसंदीदा छोल कुलचे जो नई सड़क पर एक खोमचे वाला बेचता है खान में झिझकते हैं क्योंकि कॉलेज के अधिकांश विद्यार्थी चांदनी चौक ही रहते हैं- देखेंगे तो उनके सम्मान बोध को झटका न लग जाए।
दूसरे पक्ष की हालत और खराब है- आपका मास्टर कितना ही लंपट, डाक्टर कितना भी ढक्कन क्यों न हो आप उसका सम्मान करो, क्यों भई। उससे भी मुश्किल ये कि कैसे करें- सम्मान कोई साधुवाद की टिप्पणी तो है नहीं कि कापी कर के रख ली कंट्रोल वी और हो गया सम्मान, ऐसा नहीं होता सम्मान- वो तो उपजना चाहिए- अब देखो न अमित को अपनी राष्ट्रपति का सम्मान करने का झोले भर भर सुझाव देश परदेस सब जगह से दिया गया- यूँ ही अमित से किसी का भी सम्मान करने की अपेक्षा ही सिरे से गलत है :) पर उसे छोडों किसी से भी ये कहना कि अमुक का सम्मान करना ही पड़ेगा- ये तो नहीं चलेगा। अमित तो सिर्फ कार्टून बना रहे हैं हम साफ साफ बिना स्माईली कह रहे हैं कि प्रतिभा ताई के लिए हमारे मन में कोई अतिरिक्त सम्मान नहीं है- हमें एक बार भी नहीं लगा कि व्यक्ति से निरपेक्ष हो पद का स्वमेव सम्मान किया जा सकता है, किया जाना चाहिए। हमारे पिछले स्कूल में एक मास्टर थे वे श्रीमान 'ठीठा सर' वे अगर प्रिसीपल रूम बंद भी हो या खुला हो पर प्रिंसीपल न हों तो भी उनकी कुर्सी की ओर देखकर प्रणाम करते थे- तर्क ये कि ये सम्मान व्यक्ति का नहीं पद का है- छोटी समझदानी के लिए माफी पर ये हम से नहीं होने का- हमारे विद्यार्थी इसलिए हमारा अतरिक्त सम्मान करें क्योंकि हम मास्टर हैं ये हमें नहीं पसंद- हमसे कोई अपने देय से अधिक सम्मान की अपेक्षा इसलिए रखे क्योंकि महामहिम सोनिया गांधी को वे निरापद राष्ट्रपति लगती हैं- ये हमसे होने से रहा।
ऑंचल ढके, मातृवत महिला सहज ही किसी सम्मान के लायक हो जाती है- मैट्रोट्रेन में दिखें तो मैं सहज ही अपनी सीट सहर्ष छोडे जाने के लिए उन्हें अनुकूल पात्र समझता हूँ- स्त्री होने के नाते का भी सम्मान दे सकता हूँ पर भैया बस यहीं तक। जिस देश का राष्ट्रपति इस या उस नाते प्राप्त सम्मान के भरोसे रहे वह बहुत अभागा देश होगा। पर इतने कुंद भी नहीं है कि अगर प्रतिभा सम्मानयोग्य करें तो भी नत न हों। पर अभी तो मोल लाकर सम्मान अपनी मुद्रा पर नही ही चेप सकते।
13 comments:
साहब अब मास्साब वाली बात ले या किसी और की
मुख्य बात यह है कि हम सम्मान ना करे पर अपमान भी ना करे.
मुझे यह साफ़ साफ़ कहने में कोई आपत्ति नही कि प्रतिभा जी का सम्मान मेरे मन मे तो नही उमड रहा ।मै किरण बेदी का सम्मान करती हूं उन्हे ही राष्टअपति बना देते तो शायद महिला सशक्तिकरण का तर्क मै मान लेती ।महिला सशक्तिकरअण का इससे कमज़ोर उदाहरण मैने नही देखा ।और हां मुझे अपने समने झुकने के लिए शायद मनुष्य तो मजबूर नही ही कर सकते ।वैसे कुर्सी भी नही :)
और बात यह भी है कि झुकना ही सम्मान का सूचक नही और वाह वाह ही प्रशन्सा का सूचक नही ।कुछ अमूर्त भाव भी होते है ।सम्मान का पात्र कुर्सी कैसे हो सकती है ?जब तक कि वह अपने बास की न हो ?
सबसे पहले तो शुक्रिया मेरे चिट्ठे पर आने के लिये,आपको याद होगा ब्लागर मीट में आपने हँसते-हँसते हमसे यूँही कह दिया था लेख लिखने के लिये और हमने कहा था लिख देंगे...बात हास्य ही बनी थी उस वक्त मगर आज वो हास्य नही वरन एक ख्वाहिश बन गई है कि मै भी अपने दिल की बात आप लोगो तक पहुँचाऊं...आप सब के सहयोग से मै सफ़ल भी हो गई हूँ...धन्यवाद
आप ठीक कह रहे है सम्मान जबर्दस्ती नही लिया जा सकता जब तक प्रतिभा ताई कुछ कर के नही दिखा देती हम सम्मान कैसे करेंगे...मगर पहले वो विवादो के घेरे से निकल तो पायें...
सुनीता(शानू)
लगता है कि अनजाने में आप की किसी दुखती रग को जगा दिया! :-)
पद का सम्मान करना चाहे व्यक्ति के लिए मन में कोई सम्मान नहीं हो यह एक तरफ से चापलूसी और हाइपोक्रेसी का सूचक है. दिक्कत यह भी होती है कि हम पद के सम्मान को अपना सचमुच का सम्मान समझ बैठते हैं और जिस दिन पद न होने से लोग हमारी ओर देखते ही नहीं तो इसका बहुत दुख होता हो!
समय. समय की प्रतीक्षा की जाये. समय आने पर कई सिफर शिखर साबित हुये हैं. कई इसके उलट.
प्रतिभा ताई पर लास्ट लाइन अभी नहीं लिखी जा सकती.
हमने तो अपने दिल की बात पहले ही कह दी थी यहां --
http://vadsamvad.blogspot.com/2007/06/blog-post_20.html
हमारे घर वाले भी अक्सर जोर देते हैं कि घर आये हुए साधू संतों का सम्मान करो, उनके दर्शनों को जाओ पर मुआ यह मन है कि साधू संतों को छोड़; एक गरीब ठेले वाले पर सम्मान उड़ेल देता है।
अब जबरन सम्मान कैसे करें किसी का? चाहे वह प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या शिक्षक हो?
सही बात है !! जैसे मेरा swiming के कोच कहा करते था कि अगर मेरे पाँओं नहीं छुओगे तो विद्या नहीं आयेगी!!! :)
सो हमने कहा देखो भाई अगर विद्या ऐसे ही आ जाती हो तो ठीक है, हम छू लेते हैं। उसके बाद swiming तो आ गयी पर सबके पाँओं छूने की आदत पड़ गई :)
पर अब इसलिये भी छू लेते हैं कि " ना जाने किस रूप में नारायण मिल जायें "
पहले मास्टर वाली बात.( एक मास्टर से दूसरे को क़ान में)जी हां कई बार सार्वजनिक स्थानों पर भी मन की बात नही कर सकते .डर लगा रहता है कि कोई हमारा पढाया हुआ तो आस्पास नही है. अब तो झिझक चली गयी. परंतु मुसीबत तो नौजवान मास्टर लोगों ही है. बिचारे इश्क- मुश्क भी नही फरमा सकते आराम से.
अब दूसरी गम्भीर बात . सिर्फ दुश्यंत का ये शेर काफी होगा--
ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दोहरा हुआ होगा,
मैं सजदे में नही था, आपको धोखा हुआ होगा.
आज ही के दिन दो दो लेख मास्साब पर ;) क्या करें हम आते ही इतनी देर में हैं पढ़ने। खैर सम्मान व्यक्ति का होना चाहिये लेकिन ये शायद गये जमाने की बात है, आजकल तो बात और रिश्ते पद जानने के बाद बनाये और बढ़ाये जाते हैं।
Post a Comment