माना ब्लागिंग करते हैं जिसमें समीर भाई साथी हैं इसलिए वे स्थानीय लिखें तो समझ आता है, भई उनके स्थानीय तक में नियाग्रा रहेगा और 120 मील की 'धीमी' गति से चलती कारें पर हम क्या खाकर स्थानीय की रट लगा सकते हैं- हमारे तो हाईवे तक पर भैंसा-बोगी से साईड मांगनी पड़ती है जो वह दे या नहीं ये उसकी मर्जी है। पर भई फिर भी हम स्थानीय ही लिख्खेंगे और जबरिया लिखेंगे- और कोई हाईवे-फाइवे नहीं ठेठ पड़ोस इतना कि छत पर चढ़ जाएं तो सामने दिखे। जी हम आपकी वाकफियत कराएंगे आज दिल्ली (जो भारत नाम के देश में हैं- देश में भी क्या है उसकी राजधानी है) के ही एक उपशहर रोहिणी में स्थित एक पार्क से- इसका नाम है स्वर्ण जयंती पार्क। नाम से अंदाजा लगाना आसान है कि 1947 की स्वर्ण जयंती यानि 1997 से इसे सामने आया मानें- कुल जमा एक दशक।
इस पार्क का अल्फ्रेड पार्क या जलिया वाला बाग की तरह कोई राष्ट्रीय ऐतिहासिक महत्व नहीं है
पर हमारे लिए है- ये हमारे इलाके के फेफड़े का काम करता है- हमारे इलाके के प्रेमियों के लिए है जिनके प्रेमालाप, प्रेमाजाप, प्रेमाताप के लिए यह जगह इतनी महत्वपूर्ण है कि दूसरे इलाके तक के युगल यहॉं का वीजा लेते नजर आते हैं। इलाके के बच्चों के लिए है क्योंकि पूरी दिल्ली में रोलर स्केटिंग की इतनी विस्तृत सतह कहीं नहीं है, डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण) के लिए जिसके 130 के लगभग कर्मचारी यहॉं कार्यरत हैं यह पार्क डीडीए की बेबसाईट पर खास हरितक्षेत्रों में सबसे ऊपर दर्ज है। तथा आरएसएस के लिए है जिसकी एक से अधिक शाखाएं हमने इसी पार्क में लगती देखी हैं (पार्क इतना बड़ा है कि एक ही जगह लगाने की जिद करने से कुछ ग्राहक लौट जाने का खतरा है) तो मतलब ये कि इस पार्क को खास मानने के पर्याप्त कारण हैं और ऐसे कई तबके हैं जिनके लिए यह पार्क भारत की संसद से ज्यादा अहम है।
कुल मिलाकर 250 एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में फैला ये पार्क शहर का एक खुशनुमा चेहरा सामने रखता है।
इस पार्क में एक बड़ा एम्यूजमेंट पार्क (एडवेंचर आइलैंड), एक माल (मैट्रो वाक) भी है तथा इसके दो सिरों पर दो मैट्रो स्टेशन हैं। पार्क में दो झीलें (जिनमें से एक में नौका सवारी की भी सुविधा है दूसरी में जलपक्षी क्रीड़ा करते हैं। कई बड़े जॉगिंग ट्रेक हैं, बच्चों के पार्क हैं, एक छोटा चिडि़याघर भी था पर मेनका गांधी ने बंद करवा दिया, दो वन क्षेत्र हैं, पुष्प उद्यान हैं, बच्चों के मनोविनोद के स्थान हैं। मॉल गनीमत है पार्क से अब सीधे जुड़ा नहीं है जहॉं फूड स्ट्रीट में बीसियों रेस्तरां व कुछ बार हैं। फव्वारे व एक और नौकासवारी की सुविधा सहित झील है तथा शापिंग की ढेर सारी सुविधा है। और हॉं आधुनिक किस्म के बीसियों झूले हैं। लेकिन इस एम्यूजमेंट पार्क को छोड़े हमारे लिए तो मजे की चीज खुद पार्क है।
पार्क की अंतरिक्ष में 216 मीटर ऊपर से ली गई तस्वीर इस तरह दिखती है-
गूगल अर्थ की यह तस्वीर काफी पुरानी लगती है क्योंकि कई चीजें दिख नहीं रही हैं।
ये तस्वीर हमारे कैमरे से है
हमें ये पार्क इसलिए अहम सिखाऊ स्थान लगता है कि किसी भी शहर में अलग अलग तबके किसा सार्वजनिक स्पेस को कैसे साझा करते हैं इसकी खास मिसाल है ये पार्क। टाईम व स्पेस दोनों में यह बंटवारा अच्दे से दिखता है। सुबह मार्निंग वाकर, दोपहर में युवा प्रेमी, शाम को बच्चे व विवाहेतर प्रेमी व बुजुर्ग इसका मोटा मोटा कालिक वितरण है पर इसमें में स्पेस के अनुसार हिसाब बदलता है। झील किनारे युगल पसंद करते हैं इसलिए वे वहॉं होते हैं तथा उन्हें कनखियों से चुंबित देख सकने की चाह वाले अधेड़ भी जमे होते हैं। बच्चे झूलों व स्केटिंग सुविधाओं के आसपास रहते हैं। मुख्य केंद्रीय हरित क्षेत्र पारिवारिक है और पूरे परिवार व धार्मिक सतसंग-भजनादि वहॉं दिखाई देता है। सब को दूसरे वर्ग की उपसिथति का पता है तथा उसके लिए स्पेस भी है तथा सहिष्णुता भी। सार्वजनिक स्पेस की यह सहिष्णुता ही हमें इस शहर की नइ्र बनती पहचान लगती है- और हमें पसंद है।
11 comments:
(कनखियों से चुंबित देख सकने की चाह वाले अधेड़ भी जमे होते हैं) दिल्ली पार्क का हाल चाहे कैसा भी हो आपका चित्रण बडा भाया पारखी कलमकार को नमस्कार ।
शुक्रिया अपने इलाके के पार्क से परिचय करवाने के लिए!!
पार्क कहीं का भी हो, उसमें कुछ अलग हो, चाहे ज़ू हो या ना हो , चेहरे चाहे बदल जाएं पर दृश्य एक से प्रतीत होते हैं
वाह मसिजीवी भाई! वर्णन तो आपने बढिया किया, लेकिन दो-चार ठो जिंदा टाइप फोटो भी लगा दिया होता तो क्या बुरा हो जाता!
maan gaye ji aapke niyagra ko,kabhi ghumane aayege idhar chay to aap pilaa hi doge na,..?puchhanaa padataa hai bhaai kahi blgar meet samajhali to...?
@ ईष्टदेव जी - एक तसवीर जोड़ दी है- देखें आपको पसंद आती है कि नहीं
चिट्ठाकार मिलन के लिये एक बहुत ही उप्युक्त स्थान।
क्या कहते हैं अगली मीटिंग वहीं जमा ली जाये?
पार्क मेरा देखा हुआ है अभी हाल ही में जब वहां गये तो नौका वगैरह बंद थी :(
जब यह पार्क बन रहा था तो छोटे छोटे खरगोश वगैरह के घर भी थे वहां जो अब नहीं हैं :(
बहुत सही विवरण दिये हैं. कनखियों से चुंबित देख सकने की चाह वाले अधेड़ भी जमे होते हैं--हमें भी जाना है यह वाला पार्क घूमने. :)
नियाग्रा में तो कनखियों से देखने की जरुरत नहीं-खुले आम देखिये!! :) आईये कभी तो घुमवाया जाये १२० किमी पर.
दो साल पहले देखा था यह पार्क। अच्छा लगा लेकिन क्या वहां दफ़ा १४४ लगा कर फोटो लिये थे!
तस्वीरें और प्रस्तुति बहुत बढिया है।बधाई।
जगदीश जी एक सुझाव मेरे मन मे ब्लागर मीट के लिए यह आया था ।पर अब तो इस को भी विवाद का विषय मानाना पडेगा कि ब्लागर मीट कहा हो ?
:(
आपका लेखन अब काल-स्पेस की बात करने लगा है ।हम दम साधे हैं।:)
अमां आपकी हर फोटो में छायावाद काहे होता है? शायद आपको ये साहित्यिक विधा बहुत पसंद है।
वैसे बात क्या है भाई, दोनों बंदे प्यार-व्यार के बारे में लिखे जा रहे हो। कुछ अनबन चल रही है क्या? :)
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