इधर एक एक कर कई पोस्टें आई हैं जो अक्सर व्यंग्य में यह बताने का प्रयास करती हैं कि हिट पोस्ट कैसे तैयार हों। हिट होना शायद एक हुनर है जो मंडी की ताकतों पर निर्भर करने वाली चीज है ( इसीलिए तो आलोकजी आजकल हिट पर हिट पोस्ट डाल रहे हैं, आखिर वाणिज्य के शिक्षक हैं J ) हम इस हुनर में न तो कोई महारत रखते हैं न हमें ऐसी कोई उम्मीद है कि चाहें तो भी ये हुनर सीख पाएंगे। जब अपनी किसी पोस्ट को अधिक लोग पढ़ते हैं तो अक्सर ये तसल्ली तो होती है कि चलो लोगों की नजर गई पर यह भी सच है कि अक्सर हमें पता होता है कि पोस्ट में कोई विशेष दम नहीं था...या तो भीड़तंत्र के बहाव में लिखी (और पढ़ी) गई है या दिन विशेष को लोगों के पास खाली समय था तो उन्होंने इस कीबोर्डपीट पर नजरे इनायत डाल दी हैं। इससे तसल्ली तो मिलती है पर आनंद...रचना का आनंद जरूरी नहीं कि मिल ही जाए। पोस्ट की रचना का आनंद कैसे मिलता है ? इसके कुछ बाहरी मापदंड भी हैं किंतु दरअसल उनकी कोई जरूरत ही नहीं होती आपको रचते ही अहसास हो जाता है कि इसे लिखकर वह आनंद आया जिसकी कुलबुलाहट में रात काली किए फिरते रहे हैं। मसलन मैं अपनी पोस्टें देखता हूँ तो टिप्पणियॉं, हिट, लिंक किसी भी नजरिए से खास नहीं मानी गई पर ‘...क्योंकि भाषा भी एक फ्रैक्टल है’ वह पोस्ट है जिसने मुझे रचना का संतोष दिया। पर यह भी जरूरी नहीं कि चिट्ठाकार को केवल वहीं पोस्ट संतोष दें जिनके अपराध समय लिखता हो- मतलब विवादों से दूर.. जी नहीं। ‘ये धुरविरोधी कौन है ’ बाकायदा एक धुरविरोधी स्टैंड लेती पोस्ट है तथापि एक जरूरी किस्म की पोस्ट है।
पर ये आंतरिक किस्म की बात को जाने दें तो एक अच्छी पोस्ट जो ट्राल न हो- थुक्का फजीहत में न लिखी हो, उसकी पहचान का क्या तरीका हो। एक तरीका तो गूगल-टेक्नाराटी का आजमाया हुआ है और हमें सटीक जान पड़ता है- ये है लिंक का। देखें कि पोस्ट को कितनी बार और किस किसने लिंक किया है। दरअसल जब कोई किसी को लिंक देता है तो वह उसके लेखन को महत्व दे रहा होता है और यदि आप यदि कोई बेहद अक्खड़ बकरी की लेंड किस्म के लेखक नहीं हैं तो आप सिर्फ खुद को ही फन्ने खां नही मानते वरन दूसरों को पढ़तें हैं व उनके लिखे का सम्मान करते हैं- ऐसा अक्सर आप टिप्पणी करके करते हैं। लेकिन यदि कभी आप उससे जुड़े किसी विषय पर लिखते हैं तो जाहिर है कि आप पहले लिखे गए को संदर्भित कर उसे उसका देय सम्मान अर्पित करते हैं- ये लिंक इस पोस्ट के महत्व को रेखांकित करते हैं। लेखक को संतुष्टि व पाठक को गुणवत्ता का प्रमाण इन लेखों से मिलता है। इस लिंकों की तुलना सहज ही किसी अच्छी किताब के फुटनोटों से की जा सकती है- अगर आपके काम को लोगों के लेखन के फुटनोट में जगह मिलने लगे तो जान जाइए कि अब आप काम का लिखने लगे हैं- ये ब्लॉगरोल से भिन्न और ज्यादा जरूरी लगती है हमें। बलॉगरोल तो आप दोस्ती निबाहने के लिए भी डाल लेते हैं पर पोस्ट में बिना संदभ्र के दिया गया लिंक झट दिखाई देता है।
हिंदी चिट्ठाकारी में बाकी बिमारियों के अलावा दूसरों के महत्व के कम होने में ही मेरा महत्व है किस्म की गलतफहमियॉं भी हैं। ऐसे कई अवसर दिखाई देते हैं जहॉं केवल सम्मान देने के लिए या प्रमाणिकता लाने के लिए नहीं वरन लेखन को सुपाठ्य-सुबोध बनाने के लिए भी यह जरूरी होता है कि लिंक दें वहॉं भी लिंकन से बचने का प्रयास किया जाता है। आशय यह है कि किसी पोस्ट की गुणवत्ता का अनुमान लगाने में यह तथ्य भी सहायक हो सकता है कि उसे कितने लोगों ने लिंक किया है किंतु इस मापदंड के कारगर होने की शर्त यह भी है कि साथी चिट्ठाकार अन्य लोगों को पढ़ने व उन्हें लिंक देने की जहमत उठाएं।
इसके अलावा टिप्पणियॉं व हिट तो पैमाना हैं ही जिनपर पहले ही कई गीगाबाईट लिखा जा चुका है- कहें तो लिंक दूँ। हम तो ये करते हैं कि कोशिश करते हैं कि एक संतुलन बन पाए तो भला। कुछ चिट्ठापाठकों के लिए लिखते हैं तो बीच बीच में कुछ कुछ अपने लिए भी लिख बैठते हैं- लोग पढ़ें और सराहें तो भी ठीक है- वरना खुद को तो आनेद मिला। इसलिण् साथी चिट्ठाकारो सबके लिए लिखो लेकिन कभी कभी सिर्फ अपने लिए भी लिखें।
10 comments:
विचार उत्तम हैं। लोग अक्सर स्वत:स्फूर्तटिप्पणी से इललिये भी बचते हैं कि वही टिप्पणी उनका अंतिम स्टैंड मान ली जाती है। फिर ज्ञानी लोग उसको दूसरी टिप्पणियों से तुलना करके बताते हैं इनका तो स्टैंड ही बदलता रहता है। ऐसा ही लेखन के बारे में भी होता होगा। है कि नहीं! :)
अनहिट और टिप्पणीशून्य लिखने की ज़रूरत नहीं है। ज़्यादातर पोस्ट खुद-ब-खुद इसी श्रेणी में आ जाती हैं। :)
मसिजीवीजी, मेरी पोस्टों को हिट बताने के लिए तहे दिल से शुक्रिया। पर सरजी जरा सोचिये, पांच छह सौ लोगों के कुनबे में काहे का हिट और काहे का फिट। कुल मामला यह है कि एक मजमा सा लगा हुआ है, थोड़ी विस्तृत सी गोष्ठी टाइप। सब अपने आइटम लिये खड़े हैं। देख लो जी मेरी भी। कोई कह रहा है-बचना ऐ हसीनों, लो मैं आ गया टाइप। अभी हिंदी की ब्लागिंग इत्ती शैशवावस्था में है, कि हिट ऊट मानना सिर्फ गलतफहमी की बात है।
आलोक भाई ने बिलकुल ठीक कहा..काहे की हिट ?अपन लोग ज़रा अपने आपको पहले उस टेप से नाप लें जो श्रीरामचरितमानस से शुरू होता है और शिव खेडा़ पर आकर ख़त्म होता है.मुग़ालते में रहने की ज़रूरत नहीं.और एक ख़तरा में भाँप रहा हूं वह यह कि ज़्यादातर लोग ऐसे लिख रहे हैं जो किसी पहचान के लिये विचलित हैं ...इसमे कुछ बुरा नहीं ..किसी के घर डाका थोडे़ ही डाल रहे हैं.दूसरी बात यह कि ब्लागिंग लिखने वालों की निजी ज़िन्दगी में एक हंगामा और क्लेश भी बन सकता है क्योंकि ये काम बहुत टाइम खाता है (खा़सकर परिजनों का)और आख़िर में एक सबसे बडे खतरे की ओर इशारा...हम हाथ में पुस्तक लेना भूलते जा रहे है...भगवान सबका भला करे !
"बीच बीच में कुछ कुछ अपने लिए भी लिख बैठते हैं- लोग पढ़ें और सराहें तो भी ठीक है- वरना खुद को तो आनेद मिला।"
सचमुच कुछ भी लिखना, अगर पेशेवर लेखक नहीं और रोजी रोटी लिखने पर न टिकी हो तो अपने लिए ही होना चाहिये. यूँ भी अधिकतर जीवन वह सब करने में गुजरता है जिसे अन्य लोग चाहते हैं, अगर चिट्ठे भी दूसरों का सोच कर लिखने लगे तो क्या मजा रहेगा?
masIjIvI jI हर किसी का अपना एक ढंग होता है .आप हमेशा किसी गंभीर मसले को लेकर इक विशिष्ट शैली मे लिखते है आलोक जी बहुत पुराने स्थापित व्यंगकार.
आप माने या ना माने मै यह व्यंग मे नही कह रहा हू नारद की हिट कॊई माने नही रखती है क्योकी यहा भी लोग मैने प्राक्सी करते देखे है मने रखती है लोगो की राय जिसके लिये आप की भी पोस्ट तरसती नही और इसके लिये अपन जब और जो मन मे आ जाये वही लिखे यही सही ब्लोगिंग है मेरे हिसाब से...?
हा हा 6 टिप्पणियां तो मिल छुकी आपको । वैसे बात ठीक है । नारद और अन्य आइने न हो तो क्या मायने है हिट वगैरह के ।आप लिखें ,पढा जयेगा अगर पडने लायक होगा और टिपियाया भी जाएगा ।पर जैसा कि कुछ्अ लोगो के लिए यह छ्पास का इलाज है सो रचना के आनन्द से बडा हो जाता है छपने और पहचाने जाने का आनंद ।और फिर यह ब्लागिन्ग है जनाब ! कोई मज्बूरी नही । ।
सत्य वचन!!
आलोक जी की बात का भी पूर्ण समर्थन करता हूँ.
वैसे आप भी हिट लिस्ट में ही है जनाब...हम आते तो रोज है आपके चिट्ठे पर बस टिप्पणी नही देते है...मेरे ख्याल से टिप्पणी तो सिर्फ एक दिल बहलाव है असली बात तब है जब कोई पढ़कर टिप्पणी दें...
शानू
अच्छा लगा, इसका शीर्षक देखकर भी और पढ़कर भी। विशेषकर इसलिये कि मैंने भी ऐसा लिखा है, जो टिप्प्णीशून्य है। अधिक चर्चा शायद किसी पोस्ट पर कर दूँ।
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