भारत-पाक विदेशमंत्री टाईप फोटोऑप मुस्कान के पीछे की असलियत तो मालूम ही है- मामले की जड़ में था कि पंगेबाज की जिद थी कि अविनाश को हटाओ- नहीं हटाए गए- पंगेबाज नाराज हुए और लिखना बंद किया- फिर शुरू हुआ पर अब देखो ये दोनो महानुभाव पिछले कुछ समय से एक जगह एक साथ हैं-
ये जगह है, सुनो नारद का इनबॉक्स। नारद ने नहीं कहा कि हम हटा रहे हैं पर खम ठोंक ठोंककर बार बार कहा कि हिम्मत है तो मेल भेजकर दिखाओ- अब चिट्ठाजगत, ब्लॉगवाणी, हिंदी ब्लॉगस के समय में कौन नारद-कैसा नारद, इसने उसने मत पूछो किस किसने मेल भेज दी है।
अब नारद क्या करेगा ? हमारे लिए जरूरी है ये पूछना कि जाने कि हम नारद से क्या चाहते हैं कि वह करे। हम नारद से क्या करने के लिए कहेंगे। कुछ लोगों ने कहना शुरू कर दिया है मसलन ज्ञानदत्तजी ने कहा कि यह पैंतरेबाजी है- मेल भेजा तो भेजा पर नारद पर विज्ञापन क्यों किया- हम कुछ कहेंगे तो अंग्रेजी में डांटने लगेंगे पर भैया अफसरजी अब तो आपके मेरे दफ्तर तक में सूचना का अधिकार आ गया है- ये मत बताओ, छिपा जाओ का क्या चक्कर है। कोई बेटे-बिटिया का रिश्ता थोड़े ही ठीक कर रहे हैं कि तय होने पर ही बताना वरना कोई भांजी मार देगा। ये एक सार्वजनिक बहस है- जब कोई एग्रीगेटर खुद ही जोड़ने की जगह पर हटाने पर जोर देकर खुद को वंचित करने पर उतारू है और अब किसी को न ये अप्रिय दिख रहा है न गलत तो सोचना तो चाहिए।
तो सोचें कि भले ही ये नारद के सर्वाइवल के सवाल की तरह न देखा जा रहा हो पर इतना तय है कि सवाल गंभीर जरूर है- चिट्ठाजगत जिस दिन 138 पोस्ट दिखाता है उस दिन नारद 78 अगर जीएमटी- आईएसटी से थोड़ा बहुत फर्क आया भी हो तो भी ये सवाल है तो वैध कि भई ये बचे हुए साठेक चिट्ठे सिर्फ गंदे नेपकिन ही हैं जिन्हें नारद पर नहीं दिखना चाहिए या और लोग भी हैं। अगर किसी संपादकीय विवेक के चलते इनमें से कुछ को नहीं भी दिखना चाहिए तो भी बाकी नारद पर क्यों नहीं दिख रहे- सिर्फ आधे चिट्ठों को दिखाकर कौन सी हिंदी सेवा हो रही है – ये तो हिंदी सेवा प्राईवेट लिमिटेड हुई(जो लिमिटेड भी है और प्राइवेट भी)। उत्तर तैयार है – भई जिसने पंजीकरण कराया उसे दिखा रहे हैं- बाकी जुड़ने या हटने की अर्जी लगाएगा तो मां-बदौलत विचार करेंगे किंतु हजुरे आला अर्जी-दरख्वास्त के दिन तो हवा हुए- चिट्ठाजगत कैसे बिना अर्जी के फीड लेता है- क्या वह गैरकानूनी काम करता है- नहीं, हम बार बार कह रहे हैं कि फीड सार्वजनिक संपत्ति है, उस पर खुद चिट्ठेकार का भी मालिकाना हक नहीं है- यदि वह नहीं चाहता कि चिट्ठा सार्वजनिक हो तो उसे पब्लिक डोमेन से हटा ले। इसलिए कोई पंगेबाज हो या नंगेबाज- अगर लिख रहा है तो हम तो उसे नारद पर ही दिखता हुआ चाहेंगे- उसे हम पढ़ें या नहीं ये हमारा चयन होगा- हम अपने इस चयन की मुख्तारी किसी एग्रीगेटर को सौंपना नहीं चाहते। और 'खबरदार जो हमें गाली दी तो.....'- बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति नहीं है- और 'हम बहुत बड़े हिदी सेवक हैं...' - ये खुद का बहुत अच्छा परिचय नहीं है, लोग अपने चिट्ठे पर आपको गंदा-साफ नैपकिन फिर भी कहते रहेंगे और यह पढ़ा भी जाता रहेगा- अगले को पता होगा कि आपको ऐसा कहे जाने पर आपको मिर्च लगती हैं तो वह और जोर से कहेगा- पुलिस अदालत में आपकी रुचि हो तो खूब करें लेकिन यदि विवेक को तरजीह देते हैं तो ईस्वामी जी की बात मानें, इन्हें बकने दें- इनके लिए या अपने अहम के लिए नारद की बलि न दें।
8 comments:
ज्ञान के लिए धन्यवाद, मगर माँगा किसने था?
मसिजीवी उवाच > ... भैया अफसरजी अब तो आपके मेरे दफ्तर तक में सूचना का अधिकार आ गया है-
सूचना का अधिकार एक्ट अध्याय 2 में आप सूचनायें पब्लिक अथॉरिटीज से मांग सकते हैं. पब्लिक अथारिटीज की परिभाषा एक्ट की धारा 2.(एच) में है और उसमें मै एक व्यक्ति के रूप में अथवा अन्य जिससे आप पोस्ट में सूचना मांग रहे हैं कवर नहीं होते.
अत: सूचना के अधिकार के एक्ट का हवाला ठीक नहीं है. हां आप बहस और सार्थक बहस अवश्य कर सकते हैं.
व्यवधान के लिये खेद है.
सूचना का अधिकार एक्ट अध्याय 2.....
हम आपके बोधन के कायल हुए ज्ञानदत्तजी। यदि ऐसी कोई दर्ख्वास्त आपको इसमें दिखाई पड़ी है...उसे तत्काल खारिज करें...
हो सके तो कोई जुर्माना-उर्माना मत लगाइएगा हुजुर :)
ये सब क्या है जी...? आप हमारी फ़ोटो छाप कर हिट बढा रहे है..? और फ़िर आपने हमारी पोस्ट से मैटेरिअल भी उडा लिया,वो भी बिना परमीशन,देखिये आज तो हम अभी यही पर आपको परमीशन दिये दे रहे है.आप भले आदमी है इसलिये नही .इसलिये की आप रायलटी के पैसे का चैक जलदी भेज दे इसलिये...?
और रही बात आप्के द्वारा उटाई गई मेरे नारद छोडने की तो भाइ नारद जी को बहुत मजबूरी के साथ मेरी पोस्ट ४/८ घंटे बाद भी दिखानी पड रही थी,मैने उनसे कारण पूछा पता चला मेरी सारी पोस्ट तकनीकी पंगो मे फ़स जाती है,और इस सब के कारण नारद जी का वक्त भी ज्यादा खराब होता है अब वो शरम के मारे मुझे मना नही कर पा रहे है तो मैने उन्हे इस मजबूरी वाले कार्य से हमेशा के लिये मुक्ती दे दी,
"राम नाम सत्य है,गोपाल नाम सत्य है
नारद पंगेबाज की पोस्ट से मुक्त है"
नारद जी आज यही गा कर हरिद्वार मे घूम रहे है
बस इतनी सी बात है
मै आपको नारद की मेल दिखा सकता हू जिसमे नारद ने कहा है भाइ कुछ ढंग से लिखो तो हम दिखाये,तो भाइ हमे नही चहिये ना ऐसा मास्टर जो बहाने बनाने और खुद को हमारी पोस्ट को पढ कर हमे अपनी ओकात दिखाने की कोशिश करने ही लगा रहे ,चाहे खुद की ओकात दो कौडी की ना हो,
"जा तो मै रामायण लिखने रहा था पर क्या करु गाडी पर कपडा मारने से ही मालिक छुट्टी नही देता है" अब धृतराष्ट्र हमेशा कोरवो के ही साथ रहा है
उसमे हमारी क्या गलती,ये तो वही जाने...?
चाहो तॊ भाइ ध्यान देना नारद आजकल यही नाम से दिखाई दे रहा है,अब उम्मीद है आप कारण समझ गये होगे और अब जरा हम इंतजार मे है,हमारे पडोसी ने भैस खरीदी है,उस की डिलीवरी करीब है,जैसे ही कोई खुशी की खबर मिलेगी,आपके बछिया के ताऊ या बछडे के ताउ बनने की हम फ़ोरन फ़ोटो लेकर हाजिर होगे
आप चार लोग इकट्टे करके बहस करिए और उसके नतीजे भी छाप दीजिए।
रही बात सूचना के अधिकार की, तो हम उस पर विचार करंगे, आइडिया अच्छा है, लेकिन इसके लिए आपको जेब जरुर ढीली करनी पड़ेगी, पूरी सूचना आपको मय सबूत के दी जाएगी, लेकिन साथ मे एक शर्त है, कि एक बार मे एक ही सूचना पूछी जाएगी और हर सूचना के साथ दस अमरीकी डालर अथवा ५०१ रुपए, सहायता कोष मे दान किए जाए। इससे कम से कम दो कार्य होंगे, दान कोष बढेगा और हर व्यक्ति को सूचना पाने का अधिकार भी मिलेगा। हर व्यक्ति पोस्ट लिखकर, सब्मिट बटन बाद मे डालता है, पहले एक इमेल हमारे द्वारे इमेल पटक देता और बोलता है, पोस्ट नही आयी।
हम तकनीकी रुप से कोई पोस्ट रोक ही नही सकते, अगर कोई दिक्कत आएगी तो एक पोस्ट के लिए ना होकर, ढेर सारी पोस्ट के लिए आएगी।
तो अगली बार जानकारी पाने के लिए सुनो नारद पर इमेल करिएगा और हाँ डोनेशन मत भूलिएगा।
अब बहस करिए, आराम से।
आइडिया अच्छा है, लेकिन इसके लिए आपको जेब जरुर ढीली करनी पड़ेगी, पूरी सूचना आपको मय सबूत के दी जाएगी, लेकिन साथ मे एक शर्त है, कि एक बार मे एक ही सूचना पूछी जाएगी और हर सूचना के साथ दस अमरीकी डालर अथवा ५०१ रुपए, सहायता कोष मे दान किए जाए।
क्या जीतू भाई , यहाँ भी बिजनेस की बाँते , कुछ तो रहम खायें :)
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