कल काकेश जी ने एक पत्र भेजकर जानना कि हिंदी किताबों के लिए कुछ अड्डे बताएं इस शहर के। हमने किताबों की एकाध दुकान का पता भेजा और वायदा किया कि पुस्तकालयों को लेकर एक पोस्ट लिखी जाएगी। दिल्ली में ऐसी पुस्तकालय व वाचनालय परंपरा विद्यमान नहीं है जिस पर गर्व किया जा सके पर फिर भी कम से कम कुछ पुस्तकालय हैं जिनका उल्लेख आवश्यक है। वैसे सबसे महत्वपूर्ण पुस्तकालय संस्थाई पुस्तकालय हैं मसलन जवाहरलाल नेहरूविश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय के दोनों परिसरों के पुस्तकालय तथा स्टीफेंस, हिंदू व अन्य कॉलेजों के पुस्तकालय, केंद्रीय सचिवालय की तुलसी सदन का पुस्तकालय पर स्पष्ट है कि इन पुस्तकालयों का चरित्र सीमित पहुँच के पुस्तकालय हैं क्योंकि आप सहजता से इन तक पहुँचकर संदर्भनहींले सकते, पुस्तकें पढ़ने के लिए घर ले जानेकी भी सुविधा बाहरी पाठकों के लिए नहीं है।
अत: सार्वजनिक पुस्तकालय ही आम शहरी के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प हैं और जाहिर है दिल्ली में सार्वजनिक पुस्तकालय का मतलब है- दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने श्यामा प्रसाद मुखर्जी मार्ग पर स्थित ये पुस्तकालय इस मुख्य पुस्तकालय के अतिरिक्त अलग अलग कॉलोनियों में शाखाएं भी संचालित करता है।
इस पुस्तकालय की खास बात यह है कि यहॉं दिल्ली के अन्य पुस्तकालयों के विरीत हिंदी के प्रति एक खास लगाव देखने को मिलता है पर ये भी सच है कि अब ये पुस्तकालय खस्ताहाल स्थिति में है वैसे ये पूरी तरह निशुल्क पुस्तकालय है जहॉं दो रूपए में बने कार्ड से आप तीन किताबे तक घर ले जाकर पढ़ सकते हैं। सरकार की घोर उपेक्षा ने इस कभी बेहद संपन्न रहे पुस्तकालय का लगभग पूरी तरह ही नाश कर दिया है। उल्लेखनीय कि नियमत: हर प्रकाशित पुस्तक की एक प्रति इस पुस्तकालय व कोलकाता के राष्ट्रीय पुस्तकालय को भेजा जाना कानूनन अनिवार्य है पर पता नहीं इस कानून का कितना पालन होता है। इसी मुख्य पुस्तकालय के पीछे हरदयाल म्यूनिसिपल पुस्तकालय भी है हरदयाल पुस्तकालय की भी कई शाखाएं शहर में हैं, खासतौर पर दरियागंज व दीनदयाल मार्ग (आई टी ओ) की शाखा का उल्लेख किया जा सकता है।
इंटरनेट पर उपलब्ध दिल्ली के पुस्तकालयों के इस मानचित्र से दिल्ली के प्रमुख पुस्तकालयों का पता चलता है।
अगर आप साहित्य के कीड़े है या कला के प्रेमी तो दिल्ली के पुस्तकालयों की चर्चा बिना साहित्य अकादमी के उल्लेख के पूरी नहीं हो सकती। रवीन्द्र भवन मंडी हाऊस पर स्थित साहित्य अकादमी के पुस्तकालय में केवल हिंदी या अंग्रेजी ही नहीं वरन सभी भारतीय भाषाओं के साहित्य की पुस्तकें मिल जाती हैं खास बात यहॉं की वातानुकूलित व सुविधाजनक डिस्प्ले व वाचनालय सुविधा हैं। यहॉं के पुस्तकालय की कैटलागिंग व सूचना प्रबंधन काफी विश्वसनीय है। यदि आप नॉन देसी टाईप है तो आपको ब्रिटिश काउंसिल व अमरीकी व रूसी कल्चर हाऊस अथवा मैक्सम्यूलर हाडफस के पुस्तकालयों में रूचि हो सकती है ये सभी पुस्तकालय कनॉट प्लेस के इलाके में हैं। विश्वविद्यालय प्रणाली से बाहर दिल्ली का सबसे संपन्न पुस्तकालय तीनमूर्ति स्थित नेहरू मैमोरियल पुस्तकालय है जहॉं आप काफी विद्वान लोगों के सानिध्य में अध्ययन करने का गौरव पा सकते हैं। इसी प्रकार इतिहास के गीकों के अध्ययन का आनंद राष्ट्रीय अभिलेखागार (नेशनल आर्काइव्स) के पुस्तकालय में मिल सकता है, पुरातत्व विभाग का पुस्तकालय भी यहीं है।
तो कुल मिलाकर जहॉं उच्च स्तर के पुस्तकालयों की दिल्ली में भरमार हैं वहीं आम रुचि के लोगों के लिए पुस्तकालय सुविधाओं में बहुत सुधार की गुंजाइश है।
चित्र CCS की रपट से कीर्ति से साभार
6 comments:
अच्छी जानकारी है!
बहुत बेहतरीन जानकारी दी गई है. दिल्ली के पुस्तकालयों से परिचित कराने के लिये आभार.
सही बताया ।
मसिजीवी जी, आप ने तो पुराने दिनों की याद दिला दी. दिल्ली पब्लिक लायब्रेरी की करोलबाग शाखा और पूर्वी पटेल नगर शाखाओं से किताबों तो दिल्ली में जब तक रहा, पढ़ता ही रहा. बचपन की विभिन्न प्रदेशों की लोककथाओं से ले कर विमल मित्र और आशापूर्णा देवी जैसे बँगाली लेखकों के हिंदी अनुवाद सब वहीं से किताब ले कर पढ़े थे. यह पढ़ कर कि उनकी हालत अब बिगड़ चुकी है, बहुत दुख हुआ. हमारे राजेंद्र नगर में एक साईं पुस्तक पढ़ने का कक्ष भी था, जहाँ किताबें और पत्रिकाँए घर नहीं ले जाने देते थे पर वहाँ जा कर पढ़ सकते थे. जब यनिवर्सिटी जाने लगा था तब रफी मार्ग पर आईफेक्स में स्थित ब्रिटिश लायब्रेरी का सदस्य बना था. कस्तूर्बा गाँधी मार्ग पर हिंदुस्तान टाईमस के करीब अमरीकी लायब्रेरी भी थी, पर मुझे वह कभी अच्छी नहीं लगी! धन्यवाद.
धन्यवाद
शुक्रिया!!
हमारे अपने शहर में दो लायब्रेरी है, एक तो सरकारी और दूसरा रामकृष्ण मिशन का स्वामी विवेकानंद स्मृति, इनमे से विवेकानंद लायब्रेरी ही विख्यात है, चाहे वह छात्रों के बीच हो या फ़िर किताबों के शौकीनों के बीच, हम स्कूल से ही इस लायब्रेरी के सदस्य हैं। पर सरकारी लायब्रेरी की खस्ताहालत देखकर अफ़सोस होता है।
अभी दो साल पहले यहां शहीद स्मारक बना तो सरकारी लायब्रेरी को वहां स्थानांतरित कर दिया गया और सरकारी मदद बढ़ा दी गई है, आशा है कि अब हालत सुधरेगी वहां की!!
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